शिवेंद्र तिवारी 9179259806

रावण को हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे बड़े शिव भक्तों में से एक माना जाता है। उनकी भक्ति ज्ञान, तपस्या और कला से परिपूर्ण, किंतु साथ ही अहंकार और उग्रता से युक्त थी।
- शिव तांडव स्तोत्र की रचना:
ऐसा माना जाता है कि जब रावण कैलाश पर्वत को उठाने का प्रयास कर रहे थे तो भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया, जिससे रावण का हाथ दब गया और कई कोशिशों के बाद भी हाथ नही निकला। असीम पीड़ा में, अपने विरह और भक्ति की अभिव्यक्ति के रूप में रावण ने एक स्तोत्र (स्तुति) गाना शुरू किया जिसे “शिव तांडव स्तोत्र” के रूप में जाना गया जो आज भी शिवभक्तों द्वारा गाया जाने वाला एक अत्यंत लोकप्रिय और शक्तिशाली स्तोत्र है।
अपार पीड़ा सहन करने और वर्षों तक शिव की स्तुति करने के बाद, शिव ने प्रसन्न होकर उन्हे मुक्त किया और “रावण” नाम दिया (जिसका अर्थ है “जिसने चीख़ पैदा की”)। इसके बाद से ही उनका नाम दशग्रीव या दशानन के स्थान पर रावण पड़ा।
- वीणा वादन और संगीत में निपुणता:
रावण एक महान संगीतज्ञ थे। उन्होने अपने एक सिर से शिव की स्तुति की और अपने कई हाथों से “रावणहत्था” नामक वाद्य यंत्र बजाया, जो एक प्रकार की वीणा मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि उनकी संगीतमय भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हे कई वरदान दिए।
- भक्ति का उग्र रूप:
रावण की भक्ति शांत और सौम्य नहीं थी। वे अपनी तपस्या और भक्ति में पूर्णत: लीन रहते थे और इसे सिद्ध करने के लिए उन्होने कठोर तपस्या भी की।
कथाओं में उल्लेख है कि उन्होने अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिए थे, और शिव ने प्रसन्न होकर हर बार उनके सिर को पुनः जोड़ दिया।
रावण के शिव-संबंधी प्रतीक:
· रावणहत्था वाद्य: आज भी राजस्थान में यह वाद्ययंत्र प्रचलित है और इसे रावण का आविष्कार माना जाता है।
· शिव तांडव स्तोत्र: यह स्तोत्र भगवान शिव की सर्वोच्च स्तुतियों में से एक है।
· अतुल्य शक्तिशाली त्रिशूल: रावण के पास एक शक्तिशाली त्रिशूल था, जिसे उन्हे शिव से वरदान के रूप में प्राप्त हुआ था और यह उनके प्रमुख अस्त्रों में से एक था।
रावण का चरित्र विरोधाभासों से भरा है। वह एक ओर जहाँ एक राक्षस, हठी और अहंकारी राजा था, वहीं दूसरी ओर एक ऐसा भक्त था जिसने अपनी अनन्य भक्ति से स्वयं भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया। यही कारण है कि उन्हे “भक्त रावण” के रूप में भी याद किया जाता है।