Headlines

अलविदा ‘बाबू ,

शिवेंद्र तिवारी 9179259806

अलविदा ‘बाबू’
ये सीलन भरी छत उस शंकर की है, जिसने तीन पंचवर्षीय व्यापारिक नगरी में विधायक रहकर सत्ता की सियासत की। छत के नीचे आम मध्यमवर्गीय संघर्षरत परिवार की तरह लोहे की जंग खाती आलमारी। दीवारें बता रही हैं इस घर के मालिक को चकाचौंध से कोई मोहब्बत न थी। सब कुछ एक साथ देखोगे तो एक फक्कड़ का घर नजर आएगा।
●●●
कहते हैं न कि घर पहचान होता है गृह स्वामी की जीवनशैली का, तो ये घर बताता है कि इसकी चौखट को खटखटाने में एक गरीब को भी कोई संकोच न होता रहा होगा। यहां उसे आलीशान विला में रहने वाले जनप्रतिनिधियों से मिलने जैसी झिझक और संकोच भी न होगा। क्योंकि उसे इस घर के किवाड़ अपने घर से लगते होंगे। ऐसे घर में रहते थे जनता के बाबू शंकरलाल तिवारी।


●●●
98 का वक्त था। एक हार जो जीत से भारी थी। बरगद अपनी जड़ें जमा चुका था। वक्त आया, समय बदला और फिर अगली बार सतना की जनता ने शंकर को अपना मालिक मुमालिक बना दिया। जमीनी शंकर, चप्पल में चलने वाला शंकर, जहां बुलाओ पहुंचने वाला शंकर, गरीब के घरों का रहनुमा शंकर, अमीरों का विश्वास शंकर, गोले बाज शंकर, फक्कड़ शंकर, अखबारी शंकर और न जाने क्या क्या पहचान जुड़ती घटती रही।
●●●
गरीबों की झोपडी में जमीन पर बैठने वाला शंकर सियासत के पेंच में कद्दावर नेताओं से आसमान पर ही पेंच लड़ाते दिखे हैं। जिन पटवारियों के दम पर दीगर जनप्रतिनिधियों ने अपने किले खड़े कर लिए उन पटवारियों की नींव शंकर ने हिलाई। सियासत के रास्ते जमीन के कारोबार से फलने फूलने वालों पर सदन में नासूर बनकर उभरे थे शंकर। सरकारी जमीनों को बचाने की उनकी गूंज पर विपक्षी भी सिंहासन से सवाल करने लगते थे। गले तक भ्रष्टाचार में डूबे पंचायत राज के मसले पर अपनी ही सरकार को घेरने से नहीं चुके। बाइक की पिछली सीट पर बैठने वाला फक्कड़ विधायक इसी रुआब के कारण सत्ताधीशों की आंख की किरकिरी भी बनता गया और कई शकुनियों ने उनपर चौसर खेली। जिस फ्लाई ओवर को शंकर ने सतना को दिलाया उसी के उद्घाटन में दरकिनार किए गए।
●●●
जीवट ऐसे की कलेक्टर की कार के आगे लेटने का दुस्साहस था तो पानी की कमी से सूखते कंठों के लिए मटकी फोड़ने पुलिस से भिड़ने में भी पीछे नहीं हटे। किसानों के खेत में नुकसान हुआ तो मुख्यमंत्री का हाथ पकड़ तक खेत तक ले जाने वाले शंकर ही थे, जिसके बाद ये शिव का शगल बन गया था। बिजली कटौती जैसे साधारण मुद्दे पर थाने तक मामले को पहुंचने वाले भी शंकर थे तो रिक्शे वाले के घर बिजली का खंभा दिलाने वाले शंकर ही थे।
●●●
बहुत सी कहानी है जो शंकर को आम आदमी बताती हैं, लेकिन वो इतने कद्दावर थे उनके निधन की खबर के बाद पता चला। अंतिम पंक्ति का व्यक्ति भी बेचैन था, तो मिडिल क्लास की फीलिंग शैड इमोजी में झलक रही थी। एक खामोशी थी, एक रिक्तता थी वो भी तब जब शंकर तो पहले से ही नेपथ्य में थे।
●●●
इन सबके बीच एक सवाल है कि इस शंकर को इलाज के लिए दिल्ली ले जाने एयर एंबुलेंस नहीं मिली। ठीक वैसे ही जैसे सरकारी अस्पताल में भर्ती बीपीएल को नहीं मिलती। राजनीतिक बीपीएल ही तो थे शंकर, लिहाजा उनका दिल्ली रेफर मजाक की तरह लिया गया। परिजन हवाई अड्डे घूमते रहे तो सियासी मशीनरी आश्वासन का खेल करती रही। जनता को ये तो बताना होगा कि कौन था वो जो एयर एंबुलेंस का रस्ता रोक रखा था…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *