अधिकारियों की मिलीभगत या कुछ और?
आखिर शत प्रतिशत मीटरीकरण कब?
अनियमित विद्युत बिल में बड़ा खेल
सिटीरिपोर्टर,रीवा
एक तरफ कई उपभोक्ताओं के घरों में चलते हुये मीटर बदल कर स्मार्ट मीटर लगा दिये गये हैं वहंी दूसरी तरफ कई उपभेक्ता ऐसे हैं जिन्हें एवरेज बिल जारी किये जा रहे है। इससे कंपनी को कितना घाटा हो रहा है इसका कोई रिकार्ड नहीं है। किन्तु सवाल यह है कि मीटरीकरण की व्यवस्था में सुधार क्यों नहीं हो रहा है? उपभोक्ताओं के साथ समानता के साथ व्यवहार क्यों नहीं हो रहा है। इसके चलते उपभोक्ता एक वर्ग ऐसा है जो भारी भरकम बिल भर रहा है वहंी दूसरी तरफ उपभोक्ता वह वर्ग है जो एवरेज बिल भर रहा है।
लाखों में है एवरेज बिल भरने वाले उपभोक्ता
बताया गया है कि विजली कंपनी में ऐसे उपभोक्ता लाखों में है जिन्हें एवरेज बिल जारी किया जा रहा है। इनमें कई उपभोक्ता तो ऐसे हैं जिन्हेंं खपत से अधिक बिल भरना पड़ रहा हे तो कई उपभोक्ता ऐसे हें जिन्हें नाम मात्र का बिल भरना पड़ता हे। ज्ञात हो कि एवरेज बिल जारी करने का तरीका यह कि तीन महीने की पुरानी खपत के आधार पर औसत बिल तैयार किये जाते हैं। यदि मीटर ठंडी के मौसम में खराब होता है अथवा औसत बिल का निर्धारण ठंड के महीने में होता है तो उस समय कम बिल जारी होता है। फिर वही सिलसिला आगे भी चलता रहता है भले ही गर्मी के समय पर अधिक खपत हो रही हो। वहीं कई व्यावसायिक उपभोक्ताओं को भी कम औसत बिल जारी होने का फायदा मिलता है।
आखिर मीटरीकरण में इतनी लापरवाही क्यों?
एक तरफ बिजली की योजनाओं में करोड़ों अरबों की योजनायें संचालित हो रही हैं। वहीं दूसरी तरफ मीटरीकरण की बात आती है तो पता चलता है कि कई उपभोक्ताओं को कनेक्शन देने के बाद भी मीटर नहीं लगाये जाते। कई उपभोक्ताओं के मीटर खराब हो गये तो उन्हें लंबे समय तक नये मीटर आवंटित नहीं होते। कहा जाता है कि अब स्मार्ट बिजली का दौर चल रहा है। स्मार्ट मीटरों का हाल यह है कि जहां लगाये गये हें वहां का उपभोक्ता चीख रहा है। अधिक बिल आने के कारण उसका बजट खराब हो रहा है। वहीं कई अधिक खपत वाले उपभोक्ता ऐसे हैं जिनके घरों व प्रतिष्ठानों में नाममात्र बिल जारी हो रहे है। जिन उपभोक्ताओं के यहां कई मीटर लगे हुये हैं उनमें अधिक खपत वाले मीटरों को जानबूझकर खराब कर दिया जाता है। फिर मैदानी अधिकारियों से सांठगांठ कर एवरेज बिल जमा किया जाता है। इस तरह से बिजली कंपनी में व्याप्त भ्रष्आचार के कारण बिलिंग प्रक्रिया में व्यापक मनमानी एवं लूट चल रही है।
अब खुल रही व्यवस्था की पोल
ज्ञात हो बिजली कंपनी को जब घाटा होता है तो उसकी भरपाई के लिये वह नियामक आयोग के समक्ष अपील लेकर पहुच जाती है। जहां कभी टेरिफ में वृद्धि के नाम पर तो कभी अन्य अधिभारों में वृद्धि के नाम पर उसे अनुमति प्राप्त हो जाती है। नियामक आयोग कभी जिला व संभागीय स्तर पर सुनवाई करने पहुचता ही नहीं लिहाजा उसके समक्ष उपभोक्ताओं की बातें व समस्यायें भी उस तरह से नहीं पहुच पाती जिस तरह से पहुचनी चाहिये। वहीं बिजली कंपनी के मैदारी अधिकारी व कर्मचारियों की मनमानी से जिस तरह से गतिविधियां चलती हैं उसका कोई फीडबैक ही नहीं लिया जाता।
मैदानी अधिकारियों की सांठगांठ से बड़े बकायादारों के साथ किस तरह से खेल हो जाता है इसका तो कभी पता ही नहीं चल पाता। किस उपभोक्ता का लाखों का बिल शून्य कर दिया गया, किस उपभोक्ता का लगातार कई महीनों तक शून्य बिल जारी होता रहा और किस उपभोक्ता को खपत से कई गुना अधिक बिल देकर उसे ब्लैमेल करने का प्रयास किया इसके कई उदाहरण सामने आते रहते हैं। बावजूद इसके बिजली कंपनी की अंदरूनी व्यवस्था का सुधार नहीं हो रहा है। बड़ा सवाल यह भी है कि जब अन्य मामलों में करोड़ो अरबों रूपये खर्च हो रहे हैं तो मीटरीकरण के नाम पर बिजली कंपनी के पास मीटरों की कमी क्यो बनी रहती है? क्या ऐसा सुनियोजित तरीके से किया जाता है? कई नये-नये प्रयोगों के बाद भी देखा जा रहा हे कि लाखों उपभोक्ताओं तक मीटर ही नहीं पहुच पाये हैं?