खाद्य विभाग में फिक्सिंग का खेल
सिटीरिपोर्टर,रीवा
जिले मे संचालित कई पेट्रोल पंपों में नियमों का पालन नहीं किया जाता। स्टाक बोर्ड का प्रदर्शन नहीं मिलता अथवा मनमानी तरीके से कुछ भी मात्रा दिखाकर स्टाक बताया जाता है। इसके अलावा पेट्रोल पंपों में कहीं भी शिकायत पुस्तिका देखने को नहीं मिलती। साथ पेयजल, शौचालय एवं नि:शुल्क हवा की व्यवस्था भी नहीं दिखती। यदि एयर पंप लगा है तो वह भी बंद पाया जाता है। बावजूद इसके यहां पेट्रोल पंपों का नियमित रूप से निरीक्षण नहीं किया जाता। देखा जाता है कि पंप संचालक मनमानी तरीके से उपभोक्ता को लूटते रहते हैं। कई वर्षो से यहां डीजल पेट्रोल की सेम्पलिंग तक नहीं हो पाई है। खाद्य विभाग से बात की जाती है तो वह नापतौल विभाग को जिम्मेदार बताने लगता है और नापतौल विभाग से कहा जाय तो वह खाद्य विभाग की जिम्मेदारी बताने लगता है। इस तहर से एक दूसरे को जिम्मेदार बताकर ये दोनो विभाग बचते रहते हैं। वहंी राजस्व विभाग के अधिकारियों को तो कभी ऐसे मामलोंं में कार्रवाई करने के लिये विचार ही नहीं आता। इससे समझा जा सकता है कि पेट्रोल पंपों का संचालन किस तरह से मनमानी तरीके से चल रहा है।
माप में भी होती है गड़बड़ी
जब कोई उपभोक्ता पेट्रोल पंप में तेल भरवाने के लिये पहुचता हे तो उसे पंप के स्क्रीन पर शून्य देखने के लिये कहा जाता है। किन्तु उसके स्क्रीन में शून्य के बाद कभी भी एक का अंक दिखाई नहीं देता। कहीं स्क्रीन पर नम्बर चार या पंच से दिखने शुरू होते हैं अथवा कहीं छ: या सात के अंक से दिखने शुरू होते हैं। बीच में भी कई बार ऐसा लगता है कि स्क्रीन पर लगातार दिखने वाले डिजिट जम्प करते हैं। किन्तु इस मामले में आज तक यहां का खाद्य विभाग या प्रशासन स्पष्ट नहीं कर पाया कि ऐसा क्यों हो रहा है? बात साफ है कि यदि कोई संख्या शून्य से शुरू होती है तो सबसे पहले एक का अंक आना चाहिये उसके बाद क्रमश: अंक आने चाहिये और स्क्रीन पर दिखने चाहिये। किन्तु ऐसा किसी भी पेट्रोल पंप में नहीं होता।
खाद्य विभाग जांच करने के लिये तैयार ही नहीं
कई बार जिला कलेक्टर द्वारा भी खाद्य विभाग को निर्देशित किया जाता हे कि पेट्रोल पंपों की जांच की जाय। किन्तु आदेश का पालन नहीं हो पाता। वहीं यह भी सर्वविदित है कि खाद्य विभाग स्वयं के स्तर से कभी जांच करने या निरीक्षण करने की हिम्मत ही नहीं करता। आखिर पंप संचालको को इस तरह की छूट देने के पीछे कारण क्या हैं? बात साफ है कि यहां के खाद्य अधिकारियों का सौदा फिक्स होने के कारण वे किसी भी पंप संचालक के यहां निरीक्षण करने की हिम्मत नहीं दिखाते। अन्यथा जब विभाग व शासन के निर्देश हैं कि समय-समय पर औचक निरीक्षण होने चाहिये और उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा होनी चाहिये तब कोई कार्रवाई न होना अपने आप में गंभीर सवालों को जन्म देता है।