एसक्यूसी के नाम पर होता है चयन
गुणवत्ता नियंत्रण के नाम औपचारिकता
फिर भी हो जाता हे करोड़ों का भुगतान
ठेकेदारों के भुगतान के आधार पर खेला
सिटीरिपोर्टर,रीवा
सरकारी विभाग में सुपरवीजन एवं क्वालिटी कंट्रोल कंसल्टेन्ट के नाम पर भी करोड़ों खर्च किया जाता है जबकि वे न तो गुणवत्ता पर ध्यान देते और न ही जिम्मेदारी के साथ समय पर निरीक्षण ही करते हैं। किन्तु जब ठेकेदारों को भुगतान किया जाता है तो उसी अनुपात में क्वालिटी कंट्रोल के विभिन्न मदों का भी भुगतान कर दिया जाता है। वास्तव में यह भी एक बड़ी अनियमितता है जिस पर कभी कोई ध्यान नहीं दिया जाता। महालेखाकार के आडिट प्रतिवेदनों में भी इस तरह की गड़बडिय़ों का उल्लेख प्रमुखता से किया जाता है। इसके बावजूद भी कोई ध्यान विभागों द्वारा नहीं किया जाता। लोक निर्माण विभाग में पीआईयू के द्वारा निर्मित होने वाले कई भवनों ने करोड़ों का भुगतान क्वालिटी कंट्रोल कंसल्टेन्ट के नाम पर किया जा रहा है। जबकि देखा जाता है कि भवनों की गुणवत्ता मे कई तरह की कमियां मौजूद रहती हैं।
शासन के निर्देशों तो हैं किन्तु नहीं होता क्रियान्वयन
बताया गया है कि निर्माण कार्यो से संबंधित ‘टमर््स आफ रिफरेंस’ में उल्लेखित सुपरवीजन एण्ड क्वालिटी कंट्रोल कंसल्टेन्ट याने एक्सक्यूसी के संबंध में शासन के निर्देश हैं कि कार्यो के पर्यवेक्षण, माप को दर्ज करने, देयकों को तैयार करने और कार्यो की गुणवत्ता नियंत्रण के लिये जिम्मेदार होंगे। किन्तु कई प्रकरणों में पाया जाता है कि जहां कम दर पर ठेकेदारों को कार्य सौंपे गये वहां ठेकेदारों को अधिक भुगतान किया एवं ठेकेदारों को किये गये भुगतान आधार पर एक्सक्यूसी को भी भुगतान किया गया। इस तरह से ठेकेदारों को अधिक भुगतान करने के कारण एक्सक्यूसी को भी अधिक भुगतान किया गया। जबकि एक्सक्यूसी द्वारा किये गये कार्यो में कई तरह की कमियां चिन्हित की गई। जिनमें संशोधित दरों को न अपनाना, उच्च दर अपनाने से अधिक भुगतान, समयवृद्धि की गलत स्वीकृति एवं शस्ति का कम आरोपण या अनारोपण, ठेकेदारों को अधिक भुगतान, ठेकेदारों को अदेय वित्तीय लाभ, उत्खनन सामग्री के परिवहन पर अतिरिक्त भुगतान, फील्ड लेबोरेटरी की स्थापना न करना, घटिया स्तर के लोहे का उपयोग, आरसीसी के अमानक कार्यो का निष्पादन आदि मामले शामिल हैं।
कहीं वसूली हुई तो कहीं नहीं
जब इस मामले को महालेखाकार ने अपनी आडिट में पकड़ा तो कई जगह अधिक किये गये भुगतान की वसूली की गई तो कहीं आज तक वसूली भी नहीं हो पाई। इस तरह के मामले शिक्षा विभाग, उच्च शिक्षा एवं तकनीकी शिक्षा से संबंधित स्कूल, कालेज एवं छात्रावास आदि से संबंधित भवनों के निर्माण कार्यो की आडिट में पकड़े गये। निरीक्षण के पाया गया हे कि कंसल्टेन्टों को करोड़ों का अनियमितत भुगतान किया गया था। इस तरह के मामलों में दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई होनी चाहिये थी किन्तु किसी भी अधिकारी के खिलाफ आज तक कार्रवाई नहंी हो पाई।
चल रहा कंसल्टेंसी का गोरखधंध
निर्माण विभागों में ऐसा लगता है कि गुणवत्ता नियंत्रण एवं सुपरवीजन के नाम पर कंसल्टेंसी का गोरखधंधा चल रहा है। जहां ऐसे विभागोंं में अधिकारियों की सांठगांठ से ऐसे कंसल्टेन्ट पहले नियुक्त हो जाते हैं जिनके पास या तो कार्य करने का कोई अनुभव नहीं होता अथवा वे भ्रष्ट अधिकारियों से सांठगांठ कर उनकी मंशा के अनुसार काम करते चले जाते हैं। उनकी मंशा किसी तरह से वित्तीय लाभ ्रप्राप्त करने की होती हे। वे न तो गुणवत्ता पर ध्यान देते और न ही कार्यो का निरीक्षण कर किसी भी तरह की आपत्ति ही दर्ज करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि घटिया स्तर के कार्य होते रहते है। सरकारी विभागों में चाहे वह सडक़ निर्माण का कार्य हो, भवन निर्माण का कार्य हो अथवा अन्य कोई कार्य हो हर क्षेत्र में ऐसे कंसल्टेन्ट प्रवेश कर जाते हैं। यहां सवाल यह है कि जब कार्यो में गुणवत्ता ही दिखाई देती तो फिर ऐसे कंसल्टेन्टों पर करोड़ों का खर्च करने का औचित्य क्या है? सडक़ों का निर्माण होता है तो उनकी पूर्णता के पहले ही खराब होनी शुरू हो जाती हैं। भवनों का निर्माण होता है तो उनकी गुणवत्ता पर भी गंभीर सवाल खड़े होने लगते हैं।
निर्माण विभागों में छिपा है बड़ा कंसल्टेंसी घोटाला
निर्माण विभागों में वास्तव में बड़ा कंसल्टेंसी घोटाला छिपा हुआ है। पूर्व में इस तरह का मामला प्रधानमंत्री सडक़ योजना में भी सीएजी द्वारा पकड़ा गया था जहां कंसलटेंटों के चयन व उन्हें किये गये भुगतान पर आपत्ति दर्ज करवाई गई थी।
अब लोक निर्माण विभाग की पीआईयू के भवन निर्माण कार्यो में भी ऐसा ही मामला प्रकाश में आ चुका है। जांच हो जाय तो पता चलेगा कि कई सरकारी विभागों में इसी तरह का खेल होना प्रकाश में आ सकता है। क्योंकि जहां बड़े-बड़े करोड़ों अरबों के कार्य स्वीकृत होते हैं वहां गुणवत्ता निगरानी व नियंत्रण के लिये विभाग प्राईवेट कंसल्टेन्टों का चयन करता हे। हालांकि इसके लिये निविदा आमंत्रित की जाती है। जिसके माध्यम से पात्र कंसल्टेन्ट का चयन किया जा सके। किन्तु ऐसा लगता है कि हर विभागों में उच्च स्तर पर सांठगांठ रखने वाले कुछ ऐसे कंसल्टेन्ट होते हैं जिनकी फिक्सिंग पहले से रहती है जहां चयन होने के बाद उनका असली खेल शुरू हो जाता है। इसलिये कंसल्टेंसी के पीछे छिपे खेल को समझने की आवश्यकता है। उसे उजागर करने की आवश्यकता है। नगरीय निकायों में भी इसी तरह से खेल चल रहा है। किन्तु जहां अभी तक नजर नहीं पहुची है वहां ऐसे मामले छिपे हुये हैं।