राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंप आरक्षण यथावत रखने की वकालत
नगर प्रतिनिधि, रीवा
आरक्षण बंटवारे से संबधित सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में एससी-एसटी संगठन ने 21 अगस्त को भारत बंद का आव्हान किया है। रीवा में विभिन्न संगठनों ने रैली निकाल कर शहर बंद कराने की कोशिश की। लेकिन स्थिति को देखते हुए पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा की कमान संभाली। अजाक संगठन के पदाधिकारी और एससी एसटी संगठन के लोग शहर में रैली निकालकर कलेक्टर को ज्ञापन सौंपने के लिए कलेक्ट्रेट कार्यालय के लिए निकले। जिन्हें पुलिस ने कलेक्ट्रेट कार्यालय परिसर से 100 मीटर दूर बैरिकेट्स लगाकर रोक दिया।
वहीं, बड़े प्रतिष्ठान रीवा में रोज की तरह खुले रहे। यातायात के साधन भी निरंतर चलते रहे। जिले में बंद का ज्यादा असर देखने को नहीं मिला। बंद का समर्थन करने वाले संगठनों में भीम आर्मी, बहुजन समाज पार्टी, भारतीय बौद्ध महासभा, भीम सेना, सर्व बैरवा समाज संगठन, सर्व रविदास समाज संगठन शामिल हैं। संगठनों ने अपर कलेक्टर को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा।
सरहंगों ने मचाया उतापात
बहुजन समाज पार्टी द्वारा आंदोलन के संबंध में पहले से ही घोषणा की गई थी जिसमें दुकान, प्रतिष्ठानों को बंद रखने के लिये आहवान किया गया था लेकिन शहर के अंदर 80 फीसदी से ज्यादा दुकानें खुली रही हालांकि प्रदर्शनकारियों द्वारा दुकानों को बंद कराने के लिये प्रयास ही नहीं किया गया बल्कि उतापात भी मचाया गया लेकिन शहर की पुलिस प्रदर्शनकारियों के मनसूबे में पानी फेर दिया। प्रदर्शन के दौरान शहर के हर गली चौराहों में पुलिस मुस्तैद देखने को मिली जिसका परिणाम रहा कि प्रदर्शनकारी चाह कर भी अप्रिय स्थिति पैदा नहीं कर सके।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमीलेयर को लेकर फैसला सुनाते हुए कहा था, सभी एससी और एसटी जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं हैं। कुछ जातियां अधिक पिछड़ी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए – सीवर की सफाई और बुनकर का काम करने वाले। ये दोनों जातियां एससी में आती हैं, लेकिन इस जाति के लोग बाकियों से अधिक पिछड़े रहते हैं। इन लोगों के उत्थान के लिए राज्य सरकारें एससी-एसटी आरक्षण का वर्गीकरण (सब-क्लासिफिकेशन) कर अलग से कोटा निर्धारित कर सकती है। ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा निर्धारित करने के फैसले के साथ ही राज्यों को जरूरी हिदायत भी दी। क राज्य सरकारें मनमर्जी से यह फैसला नहीं क इसमें भी दो शर्त लागू होंगी।
क्या हैं दो शर्त
- एससी के भीतर किसी एक जाति को 100त्न कोटा नहीं दे सकतीं। 2. एससी में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला उन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुनाया था, जिनमें कहा गया था कि एससी और एसटी के आरक्षण का फायदा उनमें शामिल कुछ ही जातियों को मिला है। इससे कई जातियां पीछे रह गई हैं। उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए कोटे में कोटा होना चाहिए। इस दलील के आड़े 2004 का फैसला आ रहा था, जिसमें कहा गया था अनुसूचित जातियों का वर्गीकरण कर सकते है।