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दम खम तो पूरी दुनिया जीतने का था,टैलेंट लाजवाब था,लेकिन आज जब उनका करियर उठाकर देखें तो इनके आंकड़े चीख चीख कर कहते हैं कि ये खिलाड़ी इनसे कहीं अच्छा था। कहीं बेहतर था,पर वो कभी उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाया जो होना चाहिए था। भर भरकर कमेंट आए, कि आपने इसे क्यों मिस कर दिया,इसका नाम कैसे नहीं लिया। भाई प्लेयर्स तो ऐसे बहुत हुए हैं तो चलिए बात को आगे बढ़ाते हैं,और उन प्लेयर्स की बात करते हैं जो गजब के थे, मगर अंडर achiever ही रह गए।

  1. Thisara perera: साल था 2011,वर्ल्ड कप फाइनल। ये तो सभी को याद है कि जहीर ने पहले 3 ओवर मेडन डाले। टॉप ऑर्डर ने कुछ नहीं उखाड़ा, मिडल ऑर्डर से कुछ हुआ नहीं,एक महेला जयवर्धने खड़े रहे,लेकिन उनका शतक भी काफ़ी नहीं था, आखिर में उस हाई प्रेशर गेम में श्रीलंका कुछ रन शॉट थाएकिन वो कमी पूरी की थी उसके ताबड़तोड़ फिनिश ने। महज़ 9 गेंद 22 रन।शायद उस पर किसी की नज़र नहीं गई।हां यहां श्रीलंका फाइनल हार गया। लेकिन जब 2014 में चैंपियन बना था,तो वो winning शॉट भी उसी के बल्ले से आया था।ये खिलाड़ी थे थिसारा परेरा। जो श्रीलंका का greatest allrounder बन सकता था,लेकिन बना नहीं। आपने अक्सर ऐसे लोग देखे होंगे जिनमें ऊर्जा बहुत होती है, ताकत भरपूर होती है, बल होता है,पर बुद्धि नहीं होती। इनका अटैकिंग स्ट्रोकप्ले नेक्स्ट लेवल का था। ताकत का अंदाज़ा इनके 123 मीटर के सिक्स को देखकर ही लग जायेगा।लेकिन इन्हें सिर्फ मारकर ही खेलना आता था। सूझ बूझ वाली क्रिकेट कभी खेले ही नहीं। पूरा कैरियर सुधरे नहीं, ओवर एग्रेसिव ही मैच निकाल दिए। कभी बार मौका आया हीरो बनने का,श्रीलंका को मुश्किल मैच जीतने का।लेकिन हर मौका गवाया इन्होंने।दुख होता है इनकी काबिलियत,इतने ज़बरदस्त फिजिक और ताकत को देखकर। बॉलिंग तो अच्छी करते थे,लेकिन बैटिंग में बहुत कुछ अचीव कर सकते थे। बड़ी आगे जा सकते थे, लेकिन कुछ भी नहीं बन पाए।166 ओडीआई खेल दिए, ऐवरेज जो कि महज़ 20 केस था, कम से कम 35–40 होना चाहिए था।‍ 84 टी 20 ,लेकिन एवरेज सिर्फ 23।जब ये चलते थे तो फिर रोकना मुश्किल था।कुछ मैच तो श्रीलंका को इन्होंने ऐसे ही जिताए है।मगर consistency से नहीं,जब इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती,ये careless cricket खेल खेलकर मौके गवाते चले गए। जो कि acceptable था नहीं।
  2. रवि बोपारा: दोस्तों याद कीजिए 2010–11 के वो दिन।जब भारत इंग्लैंड में क्लीन स्वीप हारा था, और white बॉल सीरीज में एक नाम अक्सर चर्चा का विषय होता, रवि बोपारा।उनके हरफनमौला खेल ने काफी प्रभावित किया था उस दौरे पर। हां, नोटिस इन्हें उस सीरीज से किया गया, लेकिन परफॉर्म ये पहले भी कर रहे थे।lower order के साथ कई उपयोगी पार्टनरशिप, जो इंग्लैंड को कुछ यादगार जीत दिलाते गए। अगर आपने उस 3- 4 साल के दौर में क्रिकेट फॉलो किया हो तो पाया होगा कि उस समय इनकी चर्चाएं होती थी, क्योंकि मैच विनर थे ये,इन्होंने आईपीएल भी खेला है,कुछ अच्छी पारियां भी खेली।और दुसरी टीमों को कई शोकर्स भी दिए।लेकिन ये परफॉर्मेंस टुकड़ों में ही आई। ये बहुत आगे जा सकते थे, इन्हें एक लेजेंड बनना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं। महज bits and pieces प्लेयर बनकर रह गए।डोमेस्टिक में भले ही कुछ extraordinary रिकॉर्ड्स हों इनके,रन हो।लेकिन इंटरनेशनल करियर फीका ही रह गया।120 odi,38 टी 20 अगर ज़्यादा नही तो कम भी नहीं होते,लेकिन उसमें भी इनके कोई अच्छे आंकड़े हैं नहीं।एवरेज वही 30-31, विकेट भी कोई ज़्यादा निकाले नहीं। सच में यार जब talent वाले खिलाड़ियों के ऐसे आंकड़े देखूं तो मूड़ खराब हो जाता है। और कमाल तो इस बात का है कि कोई controversy, कोई बैन भी नहीं हुआ था इन पर,उसके बावजूद कभी कैरियर उतना बूस्ट हुआ ही नहीं।total disaster
  3. मोहम्मद कैफ: दोस्तों जब भी क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ fielder की बात होगी तो नंबर 1 नाम आयेगा जॉन्टी रहोड्स का। क्योंकि फील्डिंग कैसे आपको मैच जीताती है ये इन जनाब ने हो दुनिया को दिखाया।इनकी फील्डिंग ने करिश्मे किए।लेकिन इनके बाद दूसरा नाम मौहम्मद कैफ का ही आता है जिसने दुनिया को ये दिखाया कि अपनी फील्डिंग से आप कैसे बेस्ट बन सकते हो, कैसे दूसरों को इंस्पायर कर सकते हो। कैफ ने महज अपनी फील्डिंग के दम पर अपने कैरियर में कई फेरबदल किए। बल्ले से तो 2002 का वो NatWest ट्रॉफी फाइनल याद आता है जहां कोई उम्मीद रह नहीं गई थी दूर दूर तक। फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी,अपना कैरेक्टर दिखाया, भारत को एक ऐसी यादगार जीत दिला दी,जिसकी आज तक बात होती है।या 2003 वर्ल्ड कप में पाकिस्तान के खिलाफ़ राहुल द्रविड़ के साथ वो पार्टनरशिप।लेकिन इसे निकाल दूं तो बल्ले से और कोई contribution रह नहीं जाता कुछ अल्ले पल्ले इनके। हां लेकिन इनकी फिटनेस और फील्डिंग दोनों ही टॉप क्लास थी।चाहे आज की कोई लेजेंड लीग देख लो,या इनके प्लेयिंग days का हाल,कभी अपने पोटेंशियल के हिसाब से बैटिंग नहीं की। बेसिकली सिर्फ फील्डिंग के दम पर टीम में थे ये,जो कि कभी क बार impactful रन कर जाता,वरना ज्यादातर फेलियर, लो स्कोर पर विकेट।और क्योंकि फिर भारतीय टीम में कुछ ऐसे खिलाड़ियों की एंट्री हुई जो कि फील्डिंग में फुर्तीले, batting से लचीले और थोड़ी बहुत बॉलिंग से भी कारगर थे, इसिलिए 2006 के बाद दोबारा कभी नीली jersi में खेल नहीं पाए कैफ, क्योंकि न तो pehle उतनी अचीवमेंट थी, न ही ड्रॉप होने के बाद कुछ extraordinary। इसलिए करियर फीका सा ही रह गया।टेस्ट, ओडीआई, दोनों में ही एवरेज केवल 32 का, स्ट्राइक रेट भी बेहद कम। न बैटिंग के, न बॉलिंग के,और fielding के तो थे ही बादशाह।
  4. James Faulkner: कुछ खिलाड़ी होते है जिनमें बहुत कैलिबर होता है, काबिलियत होती है बेशुमार,और कोई न कोई ऐसी कला भी होती है जो उन्हें क्रिकेट फील्ड पर अलग और टफ बनाती है। ऐसे ही थे ऑस्ट्रेलिया के हरफनमौला जेम्स Faulkner। जो कि बल्ले से बेरहम थे। अगर आखिरी 4 ओवर में 60 रन भी बनाने हों और ye क्रीज़ पर हों, तो भी आप ऑस्ट्रेलिया को रिलैक्स देखेंगे,और बाउलिंग टीम को प्रेशर में देखेंगे क्योंकि ये ऐसा ताबड़तोड़ मरते थे। कि मैच खत्म करके ही आते थे।कभी बेन स्टोक्स पर छक्कों की बरसात करना,तो कभी ईशांत शर्मा को 30 रन एक ही ओवर में कूट देना। Faulkner एक true मैच विनर थे , अपने दम पर मैच कैसे जीताते है,ये उन्हें बखूबी आता था।आखिरी विकेट तक जो कभी हार न माने,जो 9 आउट होने के बाद भी मुश्किल मैच जीता दे वही था जेम्स Faulkner, और बोलिंग में उनकी slower ball समझ ही नहीं आती थी।यार जिस ऐंगल से वो variation लाते थे, जो गति में मिश्रण करके डालते थे,उनको पढ़ पाना बड़ा मुश्किल होता था। लेकिन जैसे होना चाहिए था, चीज़ें वैसी चली नहीं।बहुत बड़ा करियर हो सकता था।इनका नाम और हो सकता था,लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने बड़ी जल्दी इन्हें write off कर दिया। बड़ी ही जल्दी टीम से इनका पत्ता साफ़ हो गया। आंकड़े तो इनके कुछ बयान ही नहीं करते। जिस हिसाब से 2015 वर्ल्ड कप फाइनल में मैन ऑफ द मैच थे ये,आगे तो कुछ भी नहीं बन पाए ये।जितना दम खम था,उतना तो दूर, उससे आधा भी नहीं कर पाए अपने कैरियर में। जो कि इनके आंकड़े साफ़ दर्शाते हैं।
  5. Suresh raina: एक समय था जब भारतीय क्रिकेट में बड़ा सॉलिड मिडल ऑर्डर हुआ करता था।आज से अगर 13–14 साल पिछे जाएं तो हमसे बहतर 4,5,6 नंबर के बैट्समैन शायद ही थे। जो हारे हुए, फसे हुए मुश्किल मैच जीताकर आते थे आखिरी में नॉट आउट रहकर। ये तिकड़ी थी युवी धोनी और रैना की। माही तो थे ही शानदार विकेटकीपर बल्लेबाज।युवराज भी एक हरफनमौला।लेकिन असली इंपैक्ट था सुरेश रैना का, अगर ये बात समझ न पाए तो 2011 वर्ल्ड कप क्वार्टरफाइनल और सेमीफाइनल के मैच देख लीजिए। बड़ा कम होता थी कि इनमें से कोई 2 लोग फेल हो जाएं,लेकिन उस सेमीफाइनल में हुआ, मगर रैना के उपयोगी रनों ने ही एक स्टेज पर वो मैच बनाए थे। इसके अलावा ये बॉलिंग में भी विकेट निकालने में माहिर थे। फील्डर तो थे ही जबरदस्त। दुनिया में सर्वश्रेष्ठ। यार ऐसा प्लेयर, जिसमें प्रॉपर 3d क्वॉलिटी हो, डिफेंसिव के साथ साथ अग्रेसिव गेम भी हो।अपने दम पर मैच जीताने की काबिलियत हो,उसके नाम कई सारे रिकॉर्ड,ज्यादा नहीं तो कम से कम 15000 इंटरनैशनल रन,150–200 विकेट तो बनते थे।इनके टैलेंट को देखूं तो ये पॉसिबल था,उससे भी कहीं आगे निकल सकते थे।जब 18 साल का लड़का इंडिया खेल जाए,मतलब कुछ तो बात होगी उसमें, टी 20I इतिहास में देश का पहला शतकवीर। तीनों फॉर्मेट में सेंचुरी बनाने वाला पहला भारतीय होने के बावजूद अपनी काबिलियत को maximize नहीं कर पाए।225 ओडीआई खेले,एवरेज सिर्फ़ 35,टेस्ट सिर्फ 18 खेले, जहां एवरेज महज़ 29,78 टी 20 में मात्र 26 का ऐवरेज।8000 रन भी नही बने,विकेट भी 62 ही निकाल पाए।ठीकठाक मैचेज खेले, मगर उतना भी अचीव नहीं किया।15 साल लंबे करियर में सिर्फ 7 शतक, बात कुछ जमी नहीं। disappoint तो किया है बॉस, और जब धोनी का ये चेला रिटायर भी हुआ तो उम्र कुछ ज़्यादा नहीं थी,सिर्फ 33, लेकिन बल्ले में वो बात भी रह नही गई थी।आज भले ही वो स्पार्क खत्म हो चुका हो, लेकिन प्रतिभा की इनमें कभी भी कोई कमी नहीं थी। हां शॉर्ट बॉल के अलावा,लेकिन उस पर इन्होंने उतना काम किया नहीं जो कि होना चाहिए था।बहुत दिक्कत आती थी इन्हे इस गेंद पर,वही इनके डाउनफॉल का कारण बना

Shivendra Tiwari +91 9179259806

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