भीड़ ने कराया एहसास , अभी भी मन से हैं वे दादा के खास
बाहरी नेताओं की मौजूदगी और स्थानीय की गैर मौजूदगी बनी चर्चा का विषय
अनिल त्रिपाठी
विंध्य भारत, रीवा
गत दिवस कांग्रेस का ऐतिहासिक महासम्मेलन और मध्य प्रदेश के पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व श्रीनिवास तिवारी की प्रतिमा का अनावरण संपन्न तो हो गया लेकिन उसके बाद कई सवाल भी खड़े कर गया। जहां एकता की बात और वर्ष 2028 में सरकार बनाने के संकल्प लेने की बातें होती रही वही गुटबाजी भी खुलकर दिखाई दी। बाहरी नेता आए और एकता का पाठ पढ़ाकर चले गए लेकिन पाठ कौन-कौन पढ़े शायद यह चिन्हित नहीं कर पाए।
उल्लेखनीय है कि 17 सितंबर को कांग्रेस के कद्दावर नेता और विंध्य नायक के नाम से मशहूर रहे स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी की 100वीं जयंती और महासम्मेलन के साथ प्रतिमा अनावरण का भी कार्यक्रम संपन्न हुआ। यह बात सही है कि श्री तिवारी के जमाने में भी जब कार्यक्रम हुआ करते थे तो अच्छी खासी भीड़ आती थी और इस बार शताब्दी पर्व होने के कारण काफी संख्या में लोग आए। इसमें वह लोग भी शामिल हुए जो आज भाजपा को भी तरजीह देते हैं लेकिन कहीं न कहीं उनके मन में दादा के प्रति एक स्नेह बरकरार है।
इस कार्यक्रम में रीवा लोकसभा क्षेत्र अंतर्गत आने वाली विधानसभा क्षेत्र के कई पूर्व प्रत्याशी नहीं दिखाई दिए। जिसको लेकर लोगों में खासी चर्चा थी। इसमें त्यौंथर विधानसभा क्षेत्र के रमाशंकर सिंह पटेल, गुढ़ विधानसभा क्षेत्र के कपिध्वज सिंह, सिरमौर विधानसभा के पूर्व प्रत्याशी और पूर्व विधायक राम गरीब वनवासी शामिल है। इसी प्रकार अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य और पूर्व विधायक राजेंद्र मिश्रा, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महामंत्री गुरमीत सिंह मंगू कभी न रहना खासा चर्चाओं में रहा। इसी प्रकार कांग्रेस की प्रदेश महामंत्री और दादा की भतीजी कविता पांडे की इस कार्यक्रम में गैर मौजूदगी चर्चा का विषय बनी रही। हालांकि इन नेताओं की कोई टिप्पणी सामने नहीं आई है और अपने को बाहर होना बता रहे हैं लेकिन रीवा में कांग्रेस का बड़ा कार्यक्रम हो और छोटे से छोटे कार्यक्रम में शामिल होने वाले यह नेता इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए इससे स्वाभाविक तौर पर सवाल खड़े ही होंगे।
हालांकि जिला कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियो से जब चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि सबको आमंत्रण भेजा गया था और सब आने वाले थे लेकिन शायद कुछ लोग अपने व्यक्तिगत कार्यों की वजह से नहीं आ पाए होंगे और इस बात का कोई राजनीतिक अर्थ नहीं निकल जाना चाहिए। बावजूद इसके आम जनमानस और कार्यकर्ता यह कहते सुना गया कि आखिर कहीं ना कहीं कुछ न कुछ घाल मेल है। हमारे सूत्रों का कहना है कि संगठन सृजन अभियान के बाद रीवा में अध्यक्ष पद के लिए हुई नियुक्तियों के बाद से कांग्रेस के कुछ नेता अंदर ही अंदर नाराज हैं और शायद उन्हें महत्व न मिलने के कारण वह फिलहाल स्वयं ही स्थानीय कांग्रेस राजनीति से अपने को किनारे किए हुए हैं।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस में हुई नियुक्तियों के बाद शहर में अज्ञात नेताओं द्वारा कई जगह ऐसे पोस्टर लगवाए गए थे जिसमें संगठन सृजन अभियान चोरी होने की बात कही गई थी। इसके बाद कुछ नाराज नेता भोपाल में भी अपनी शिकायत दर्ज कराए। अल्पसंख्यक समाज के नेता तो सीधे प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी से ही मुलाकात की और अपनी नाराजगी जताई। हालांकि अल्पसंख्यक समाज के नेता कार्यक्रम में शरीक हुए । अलबत्ता रीवा कांग्रेस में एक बार फिर गुटबाजी चर्चाओं में आ गई है। इन हालातो में आने वाले दिनों में कांग्रेस अपने को कैसे मजबूत कर पाएगी यह एक सवाल अवश्य खड़ा हो गया है।