शिवेंद्र तिवारी 9179259806

पिछले एपिसोड में आपने पढ़ा कि कैसे पुलिस इंस्पेक्टर श्यामवीर सिंह राठौर ने अपने सजातीय डकैत श्रीराम और लालाराम से विक्रम मल्लाह को मरवा दिया.. श्रीराम और लालाराम फूलन को अग़वा कर ठाकुर बाहुल्य गांव बेहमई ले गए जहाँ 11 दिन उसके साथ गैंगरेप हुआ और शौच के दौरान फूलन ने यमुना में छलांग लगा दी.. अब कहानी आगे की..
फूलन ने तैरकर यमुना नदी पार की और दूसरे किनारे बसे मल्लाहों के गांव पालगांव में माताप्रसाद के घर पहुँच गई. वहीं से फूलन ने विक्रम मल्लाह के साथी मुस्तकीम से सम्पर्क किया और उसके गिरोह में शामिल हो गई। मुस्तकीम न्यायप्रिय डकैत था.. फूलन के साथ हुए अत्याचार को सुनकर उसका खून खौल उठा..वह क्रोध से फुफकार उठा। एक बार वह लालाराम व श्रीराम का पता लगाने अकेले बेहमई गया पहुंच गया लेकिन दोनों नहीं मिले. ना लेकिन गाँववालों ने कुछ भी बताया.. अब फूलन के साथ मुस्तकीम की जिन्दगी का लक्ष्य भी हो गया था लालाराम और श्रीराम सहित उनके सातों आदमियों की हत्या..लेकिन श्रीराम और लालाराम छिपे घूम रहे थे.. इन्हें फूलन और मुस्तकीम से ज्यादा डर पुलिस इंस्पेक्टर श्यामवीर राठौर का भी था.. दरअसल राठौर दूसरा खेल भी खेल रहा था..वो विक्रम मल्लाह को मुठभेड़ में मार डालने का दावा विभाग से कर चुका था.. लालाराम और श्रीराम को डर सता रहा था कि भेद खुलने के डर से राठौर ही इन्हें ना मार दे..,वो पुलिस से छिप रहे थे.. फूलन के भाग जाने पर अब इन्हें जो भी मल्लाह मिलता, उसे वह पुलिस का जासूस समझकर मार देते फूलन को पनाह देने वाले पालगंव के माता प्रसाद मलाह को भी इन्होंने मार डाला.. ये ठाकुर बाहुल्य गाँवों में रुकते थे..इसके साथ ही लालाराम और श्रीराम अपहरण कर अपह्रतों को ठाकुर बाहुल्य गाँवों में रखकर फिरौती वसूलते.. फूलन इन दोनों की तलाश में लगी थी..लेकिन ये दोनों मिल नहीं रहे थे..इसके साथ ही उसे बेहमई के उन अत्याचारियों से भी बदला लेना था जिन्होंने उसके साथ 11 दिन तक दरिंदगी की थी.. 11 दिन उसके साथ रोज बलात्कार होता.. रात में तो आठ -दस लोग उससे बलात्कार करते..फूलन ने श्रीराम और लालाराम के न मिलने पर बेहमई गांव का रूख किया..

14 फरवरी 1981 को फूलन ने बेहमई गांव में धावा बोल दिया..बेहमई गाँव में करीब दो बजे फूलन देवी के नेतृत्व में पहुंचे डाकूओं ने सबसे पहले गांव के मुखिया के घर दबिश दी..मुखिया उस समय गांव में नहीं था.फिर डाकुओं ने एक-एक घर में घुसना शुरू किया। आदमियों को पकड़-पकड़ कर गांव के बीच स्थित कुएं के चबूतरे पर बैठाने लगे. औरतों और बच्चों को डाकुओं ने नहीं छुआ..यह सब करीब एक घंटे तक चला. फूलन ने,मैगाफोन से चिल्ला कर कुएं पर जमा किए गए सब लोगों से गांव के बाहर की तरफ चलने को कहा। उसने कहा कि वह वहां पंचायत करना चाहती है.. गांव वालों के लिए डाकुओं का आना और इस तरह पंचायत करना कोई नई बात नहीं थी, इसलिए सब चुपचाप उधर चल दिए। बाहर निकलकर, जहां पर रास्ता कुछ गहरा था..दोनों तरफ मिट्टी की दीवालें उठी हुई थी.फूलन ने सबको एक दीवाल से पीठ टेककर बैठने का आदेश दिया। सबने उसके आदेश का पालन किया। इसके बाद डकैतों ने ‘फूलन देवी की जय’, ‘मुस्तकीम की जय’ और ‘काली माता की जय’ के नारे लगाते हुए दीवाल से पीठ टिकाए बैठे ग्रामीणों पर अपनी राइफलों से गोलियां बरसनी शुरू कर दी..

डकैतों ने अंधाधुंध फायरिंग कर बीस ग्रामीणों को ढेर कर दिया.. इनमे सब के सब ठाकुर थे..और निर्दोष.. पढ़ना चाहेंगे तो आगे बताएंगे फलन के सरेंडर से लेकर संसद पहुँचने और अंत की कहानी..