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यक़ीनन बुमराह आज के दौर के सर्वश्रेष्ठ बोलर हैं, मगर 90s के बच्चों के लिए जहीर खान भी एकदम वही हीरो हैं जो आज के बच्चों के लिए बुमराह हैं..♥️

✍️शिवेंद्र तिवारी 9179259806

2003 का वर्ल्डकप फाइनल..90s के बच्चों के लिए वो भयानक सपने जैसा था जिसे देखकर अक्सर लगता था कि पतलून गीली हो गई हो.. ऑस्ट्रेलिया का वहशीपन अगर आपको सही मायने में देखना है तो आपको 2003 के वर्ल्डकप फाइनल को रीकैप में देखना चाहिए..एक एक गेंद, एक एक पल, आपको तब समझ आयेगा कि ऑस्ट्रेलिया कोई खिलाड़ियों की टीम नहीं बल्कि वो दैत्यों की एक टोली थी जो बड़े बड़े जंगलों को रौंद कर उस पूरे इलाके को बंजर भूमि में तब्दील कर दिया करती थी..

सटोरियों के नजर में ऑस्ट्रेलिया इतनी जबरदस्त टीम थी कि उसका भाव किसी के भी खिलाफ 10 पैसे से 18 पैसे के बीच ही खोला जाता था..इससे अधिक कभी भी नहीं खोला जाता था..आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि ऑस्ट्रेलिया जब मैदान में उतरती थी तो वो जीत पहले ही चुके होते थे, मैदान में तो बस औपचारिकता ही पूरी की जा रही होती थी..2003 के वर्ल्डकप की हार से ज्यादा दुःख मुझे जहीर खान के पहले ओवर में 15 रन पड़ने का था..जहीर खान जो कि पूरे वर्ल्डकप में भारत के लिए शानदार प्रदर्शन कर रहे थे ऑस्ट्रेलिया ने सबसे पहले उन्हें ही निशाना बनाया..उनके जैसा बॉलर इतना प्रेशर में आ गया कि उन्होंने वाइड और नो के साथ 15 रन लुटाए अपने पहले ओवर में ही..

उस दिन आशीष नेहरा के अलावा हर एक बॉलर की जमकर धुनाई की गई..रिकी पोंटिंग ने 140 रन बनाए..121 गेंदों में..आज की जनरेशन को लगेगा कि ये कौन सी बड़ी बात है परंतु 2003 क्रिकेट के लिए वो समय था जब टीम 240 बना ले और अगर उसकी बॉलिंग अच्छी है तो उसके जीतने के चांस 80% हो जाते थे..उस समय ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 360 का लक्ष्य दिया..हम मैच हार गए..लेकिन वो दुःख आज भी बिल्कुल वैसा है जैसा जेन जी जनरेशन के लिए 2023 का वर्ल्डकप..सन 2000 से डेब्यू किए जहीर खान के लिए ये मैच करियर खत्म करने जैसा था, 7 ओवर में 67 रन खाना कोई आम बात नहीं थी उस समय..

ऐसा लगा जैसे 120 करोड़ क्रिकेट प्रेमियों का दिल तोडा नहीं गया है, बल्कि उस पर चाकुओं से इतने वार किए गए हैं कि दिल को पहचान पाना भी मुश्किल है कि ये दिल है या अंतड़ियां.. ऑस्ट्रेलिया जाने क्यों कोई विरोधी टीम नहीं बल्कि दुश्मन लगने लगी..सबने हार मान ली, परंतु दादा ने जहीर खान पर अपना भरोसा कायम रखा..सौरव गांगुली हमेशा से उस कप्तान में गिने जाते रहे हैं जिसके बुरे दौर में भले ही हर किसी ने उसका साथ नही दिया लेकिन दादा हमेशा अपने खिलाड़ियों के लिए बोर्ड तक से लड़ जाते थे..

समय बदला, और फिर आया 2011 का वर्ल्ड कप, कोई धोनी की बात करता मिलेगा तो कोई गंभीर की, ये डिबेट अनंतकाल तक चलेगी, परंतु इस मैच में जहीर खान ने जो किया उसे कोई याद नहीं रख पाया..2003 में 1 ओवर में जिसे 15 रन मारे गए उसने अपने स्पेल में 3 ओवर मेडेन फेंके..2 विकेट लिए..समय बदलता है और पलट कर जरूर आता है इसका आपको इससे बढ़िया उदाहरण देखने को नहीं मिल सकता है.. जहीर खान वो unsung वॉरियर रहे हैं इस मैच के जिसे वाकई वैसे याद नहीं रखा जाता है जैसे रखा जाना चाहिए था..परंतु कुछ क्रिकेट प्रेमी हैं जो जानते हैं कि जहीर खान ने आखिर उन्हें क्या दिया था..28 साल का इंतजार सिर्फ गंभीर या धोनी के रनों से नहीं बल्कि जहीर खान, युवराज सिंग, हरभजन सिंह, मुनाफ पटेल जैसे बाकी खिलाड़ियों की शानदार गेंदबाजी की वजह से भी खत्म हुआ था..बस जहीर खान की बात करना इसीलिए ज्यादा जरूरी है कि उन्होंने जो 2003 में खोया था, उसे दोबारा उतनी ही मेहनत करके पाया भी..

यक़ीनन बुमराह आज के दौर के सर्वश्रेष्ठ बोलर हैं, मगर 90s के बच्चों के लिए जहीर खान भी एकदम वही हीरो हैं जो आज के बच्चों के लिए बुमराह हैं..♥️

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