©शिवेंद्र तिवारी 9179259806

डाकू ददुआ के मंदिर के बारे में तो आपने सुना होगा.. लेकिन क्या आपको पता हैँ कि ददुआ से भी पहले एक डकैत का मंदिर बना था जिसे लोग भगवान के रूप में पूजते हैं.. ना पता हो तो आज हम बताते हैँ…
ये मंदिर हैँ डाकू मान सिंह का जो आगरा के बाह इलाके के राठौर खेड़ा गांव में बना है..अब मान सिंह की कहानी पर आते हैँ… उन दिनों चंबल में पानी का बड़ा संकट हुआ करता था.. गाँवों में गिने -चुने कुयें हुआ करते थे.. गर्मी आते ही इनमे अधिकांश सूख जाते थे और फिर शुरू होती थी पानी की मारामारी… राठौर खेड़ा गांव में भी यही था..ठाकुरों और ब्राह्मणों के अलग -अलग टोले थे और अलग-अलग कुयें.. ठाकुरों के कुयें का पानी सूख गया और ब्राह्मण अपने कुयें से पानी नहीं भरने देते थे.. एक ठाकुर पानी भरने गए.. कुयें के बगल में ब्ललम गाड़ दिया.. जिसकी औक़ात हो रोक ले.. ब्राह्मणों ने इसे चुनौती माना और लाठी लेकर टूट पड़े.. इधर से ठाकुर भी दौड़े और ताबड़तोड़ लाठियां चलने लगीं… मान सिंह के घर भरमार बंदूक थी.. उनका लगुआ बंदूक लेकर आया उसने फायर झोंक दिया.. एक ब्राह्मण और एक बढ़ई की मौके पर मौत हो गई.. मान सिंह पकड़ गए.. 302 लगा और जेल चले गए.. पुलिस से बचने और बदले की आग में उनका परिवार बागी बन गया. ये घटना थी 30 जनवरी 1928 की..
इस कांड में मान सिंह 10 साल जेल में रहे और इसी दौरान , पुलिस ने बागी बने उनके 2 बेटों जसवंत सिंह और धनवान सिंह को एनकाउंटर में मार दिया…
10 साल जेल में काटने के बाद मान सिंह घर आए तो दो बेटों की मौत के बाद जीवन बेकार लगा..
मान सिंह अपने दो जिंदा बचे बेटों और भाई के साथ बीहड में कुद गए.. गांव के दबंग ब्राह्मण तलफीराम पर पुलिस से मिलकर बेटों को मरवाने के आरोप थे.. सबसे पहले मान सिंह ने तलफीराम की हत्या की और फिर उन सभी 32 पुलिस वालों को ढूंढ ढूंढ कर मार डाला जो उनके बेटों के एनकाउंटर में शामिल थे..पूरे चंबल में मान सिंह नाम की दहशत फैल गई थी। इन सभी हत्याओं के बाद मान सिंह पुलिस के लिए सर दर्द बन गए..हालांकि अपने सभी दुश्मनों को मारने के बाद मान सिंह बदल. गए. वो लाखों की लूट करते और सारा पैसा गरीबों में बांट देते.। उस समय चंबल का कोई रसूखदार नहीं बचा था जिसे मान सिंह ने लूटा न हो। मान सिंह ने गरीबों की आर्थिक मदद के साथ न्याय दिलाना भी शुरू किया.. वो टेंट लगाकर जनसूनवाई करने लगे. अदालतों की तरह उनका फैसला सबको मान्य होता था.. आलम ये था कि एक ओर पुलिस मान सिंह को तलाशती थी और दूसरी ओर ज़ब वो बुलाते तो उस दौर में लाखों लोगों की भीड़ इकट्ठी हो जाती. देश को आजादी मिलने के एक दो साल पहले तक मान सिंह की लोकप्रियता इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि वो किसी गांव में पहुँचते तो हजारों लोग इकट्ठे हो जाते थे। एक बार मान सिंह ने एक रैली का आयोजन किया। उस रैली में 3 लाख से ज्यादा लोग इकट्ठे हो गए..मान सिंह की भाषण देने की क्षमता मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी। RSS से जुड़े सुब्बाराव ने उनके बारे में लिखा हैँ कि , “मैंने जब मान सिंह को भाषण देते सुना तो अब तक उनको लेकर अखबारों में छपी खबरों से मेरा भरोसा उठ गया था। उनकी भाषण शैली देख मैं अचंभित रह गया था। उनका व्यक्तित्व एकदम रॉबिनहुड की तरह था।”

मान सिंह 16 साल तक बागी रहे रहे और इस दौरान पुलिस से उनकी 90 बार मुठभेड़ हुई, लेकिन पुलिस की एक भी गोली मान सिंह को छू नहीं पाई। साल 1955 तक मान सिंह पर 185 हत्या के मामले दर्ज हो चुके थे। पुलिस किसी भी तरह मान सिंह का आतंक खत्म करना चाहती थी।मान सिंह को मार गिराने के लिए सरकार ने एक विशेष टीम का गठन किया.टीम में सेना के जवान भी शामली थे.इस टीम का नेतृत्व मेजर बब्बर सिंह थापा कर रहे थे। मान सिंह बेहद शातिर थे । किसी आम मुठभेड़ में उनको मार पाना आसान नहीं था। बब्बर थापा ने एक चाल चली। एक मुखबिर ने बब्बर को जानकारी दी कि मान सिंह भिंड जिले के लाउन गांव के एक घर में रुकने वाले है..पुलिस उस घर में पहले ही पहुंच गई। उस घर के मालिक को डराया और मान सिंह और उसकी पूरी गैंग के दूध में जहर मिलाने के लिए कहा। जैसे ही मान सिंह की गैंग आई उन्हें जहर मिला दूध सर्व कर दिया गया। दूध पीते ही सारे लोग बेहोशी की हालत में आ गए। इतने में पुलिस आई और मान सिंह समेत उनकी गैंग के अधिकांश सदस्यों को गोलियों से भून दिया.. सिर्फ वही भाग पाए जिन्होंने दूध नहीं पिया था था
1984 में आगरा जिले की बाह तहसील के ‘खेड़ा राठौर’ गांव के लोगों ने मिलकर. मान सिंह का मंदिर बनवाया । मान सिंह के गांव के लोग आज भी उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं।मान सिंह ब्राह्मणो से दुश्मनी में बागी बने लेकिन अपने दुश्मन को छोड़ कभी दूसरे ब्राह्मण के साथ अत्याचार नहीं किया.. उनके गिरोह में कई ब्राह्मण सदस्य थे.. इनमे उनके कुल पुरोहित रूपा पंडित भी शामिल थे.. मान सिंह के गिरोह में ही शामिल लाखन सिंह और रूपा पंडित में विवाद हुआ तो मान सिंह ने लाखन सिंह को गिरोह से अलग कर दिया..
: एक बात बताना भूल गए मान सिंह के एनकाउंटर के दो साल पहले उनके बेटे तहसीलदार को पुलिस ने 1953 में गिरफ्तार कर लिया था.. तहसीलदार को फांसी की सजा सुनाई गई थी लेकिन आचार्य विनोबा भावे और कुछ अन्य लोगों ने भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से सजा बदलने की सिफारिश की जिस पर मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया. वह 18 साल तक जेल में रहे . उत्तर प्रदेश की सरकार और मध्य प्रदेश की सरकार ने ज़ब डाकुओं का सफाया करने का प्लान बनाया तो इसके लिए तहसीलदार को अपने साथ लिया. 1960 से लेकर 1976 के बीच तहसीलदार की मध्यस्थता से 654 डाकुओं ने.आत्मसमर्पण किया.. इनमे तहसीलदार के पिता डाकू मान सिंह की गैंग के डाकू लुका और रूपा भी शामिल थे. उधर, मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह सेठी ने तहसीलदार के बेटे को सब इन्स्पेक्टर बनाया था जो अपनी ड्यूटी पूरी कर डीएसपी के पद से रिटायर हुए . राम मंदिर आंदोलन के दौरान समय में तहसीलदार ने भारतीय जनता पार्टी ज्वाइन की.. उस समय उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के आसपास मुलायम सिंह का दबदबा था. बूथ कैप्चरिंग आम बात थी .मुलायम सिंह का दबदबा ख़त्म करने के लिए भारतीय जनता पार्टी ने तहसीलदार को विधानसभा चुनाव में उतार दिया.. तहसीलदार सिंह जीतें भले नहीं लेकिन उन्होंने मुलायम सिंह गुर्गो की गुंडागर्दी उतार दी..