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1857 का विद्रोह और विंध्यएक ब्राह्मण को बचाने बलिदान हो गए थे चार ‘क्षत्रिय लाल’

©शिवेंद्र तिवारी

कहानी विंध्य के रणबांकुरों की..
पहली किश्त में लाल श्याम शाह

1857 की क्रांति की चर्चा होती है तो हम विंध्य को भूल जाते है… आज कहानी उसी क्रांति की.. उन क्षत्रिय बहादुरों की जो एक ब्राह्मण को बचाने बलिदान हो गए.. पहली किस्त में कहानी ठाकुर श्याम शाह की जिनके नाम रीवा का मेडिकल कॉलेज है.. ये तो आपको पता ही होगा कि रीवा राजघराने की संधि पहले मुगलो और फिर अंग्रेजों से रही.. मुगलों वाली कहानी बहुत लम्बी हो जाएगी इसलिए संक्षेप में अंग्रेजो से संधि की बात कर लेते हैं तब क्रांति ठीक से समझ में आएगी.

बघेलखंड की पांच बड़ी रियासतें थी..रीवा, सोहावल, कोठी, नागोद और मैहर..इनमे सिर्फ रीवा एकमात्र ऐसी रियासत थी, जिसने अंग्रेजों के साथ संधि की थी। बाकी को सनदें मिल चुकी थीं..सनद वाली रियासत का मतलब है कि रियासत के शासक को ब्रिटिश सरकार से सनद (एक आधिकारिक पत्र) मिल जाता था., जिसमें उसके शासन और अधिकार को मान्यता दी जाती थी. ये रियासतें ब्रिटिश भारत के अधीन थीं, लेकिन उनके शासक ब्रिटिश शासन के लिए एक सीमा तक स्वायत्तता रखते थे… आज की भाषा में कहें तो पेटी कॉन्ट्रैक्टर…अब सनद और संधि में अंतर भी समझा देते है.. सनद मतलब एक पक्षीय और संधि मतलब दो यराज्यों के बीच एक औपचारिक कानूनी समझौता है जो टूट भी सकता था..सनद मतलब कृपा,अनुदान होता है, जबकि संधि मतलब समझौता… साझेदारी..

अंग्रेजों ने ज़ब विंध्य की ओर पैर बढ़ाये रीवा के राजा अजीत सिंह थे. 1803 में ब्रिटिश सरकार के संधि प्रस्तावों को उन्होंने नकार दिया..
हालांकि इसके बाद भी राजा अजीत सिंह और ब्रिटिश सरकार के बीच दोस्ताना ताल्लुकात बने रहे.. 1809 में अजील सिंह के उत्तराधिकारी जय सिंह बने..उसके शासनकाल में, मिर्जापुर जिले में पिण्डारियों के विद्रोह के कारण, ब्रिटिश सीमा पर सेना को मजबूत करना जरुरी हो गया.. 5 अक्टूबर 1812 को अंग्रेजों के साथ संधि हुई जिसमे राजा की सर्वोच्चता को अंग्रेजी हुकूमत ने स्वीकार कर लिया और राजा के संपत्ति की सुरक्षा की गारंटी अंग्रेजों की थी.. इस तरह रीवा राज्य बाहरी दुश्मनो से सुरक्षित था.. उसे अंग्रेजों का कवच मिला था.. फिर आया 1857 का गदर ज़ब अंग्रेजों के खिलाफ़ विद्रोह शुरू हो चुका था.. क्रांति का केंद्र मेरठ था .. यहां से उठी क्रांति की ज्वाला देशभर को धधका रही थी.. इसी दौर में जगदीशपुर (बिहार) के क्रन्तिकारी कुंवर सिंह ने सितंबर 1857 में रीवा में प्रवेश किया.उनके साथ लगभग 5 हजार क्रन्तिकारी सैनिक थे. वो मंगल पाण्डेय और झांसी कर रानी की शहादत के बाद क्रांति की मशाल थामने वाले तात्या टोपे की मदद करने जा रहे थे..
कुंवर सिंह रीवा के राजा रघुराज सिंह के करीबी रिश्तेदार थे, इसलिए उन्हें रीवा के समर्थन पर बहुत भरोसा था “लेकिन रघुराज सिंह ने उनका रास्ता रोक दिया..कुंवर सिंह को रीवा से वापस लौटना पड़ा। उथल-पुथल के इस दौर में महाराजा रघुराज सिंह ने खुले तौर पर अंग्रेजों की मदद की और इसके एवज में उन्हें सोहागपुर और अमरकंटक जिले दे दिए गए जो रीवा के राजा से मराठों ने छीन लिए थे और मराठों की हार के बाद ये ब्रिटिश कब्जे में चले गए थे.. लेकिन इसी बीच एक ऐसी घटना घट गई जिसने रीवा में भी क्रांति की चिंगारी फूंक दी..
रीवा राज की निगरानी के लिए नियुक्त ब्रिटिश एजेंट ओसबोर्न को गुप्तचरों से सूचना मिली की एक एक तैलंग ब्राह्मण क्रांतिकारियो की जासूसी कर रहा..उस तैलंग ब्राह्मण को गिरफ्तार कर लिया गया और अगले दिन फांसी दीं जाने वाली थी..रीवा रियासत के चार बघेल सरदार श्याम शाह, रणमत सिंह, धीर सिंह और पंजाब सिंह की आत्मा कराह उठी कि उनके रहते एक देशभक्त ब्राह्मण की जान जा रही है…तिलँगा ब्राह्मण को ओसबोर्न के बंगले में कैद कर रखा गया था. इनकी अगुवाई में देशभक्तों के समूह ने ओसबोर्न के बंगले में हमला किया और तिलँगा ब्राह्मण आजाद होकर भाग़ निकले श्याम शाह, रणमत सिंह, धीर सिंह और पंजाब सिंह को बर्खास्त कर बागी घोषित कर दिया गया… कहानी लम्बी हो रही अब सीधे आते हैं.. ठाकुर श्याम शाह पर..
अंग्रेजों के आदेश पर हटाए गए चारों सरदार अब क्रन्तिकारी बन चुके थे.. इनमे लाल श्याम शाह प्रमुख थे.. वो खमरिया गांव के रहने वाले थे..श्याम सिंह बहुत सम्पन्न सरदार थे.. उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति विद्रोहियों की सेना खड़ी करने में लगा दी..
रीवा राज्य छोड़ने के बाद रणमत सिंह और श्याम सिंह की सयुंक्त सेना ने कई स्थानों पर अंग्रेजी सेना को तहस-नहस कर दिया..एक बार रणमत सिंह और श्याम शाह दोनों क्योंटी के किले में ठहरे थे. तो अंग्रेजी सेना ने घेर लिया। यहां भी दोनों ने अंग्रेजी सेना को हराया और ब्रिटिश कर्नल को मार गिराया.. यहां से वे दोनों अलग-अलग दिशाओं में चले गए- रणमत सिंह बहुती की ओर और श्याम शाह रीवा के दक्षिण की ओर.. रणमत सिंह की कहानी आगे बतायेंगे.. दक्षिण की ओर बढे श्याम शाह की अंग्रेजी सेना से पहली मुठभेड़ उमरिया के चंदिया में महानदी के तट पर हुई….इस लड़ाई में कई अंग्रेज मारे गए. दूसरी लड़ाई कटनी के बाजार में हुई, जहां अंग्रेज सैनिक व्यापारियों को लूट रहे थे। श्याम शाह की सेना के हमले में कई अंग्रेज सैनिक मारे गये..
जैसा कि हम पहले ही बता चुके लाल श्याम शाह बहुत धनवान थे.. उन्होंने अपनी सारी संपत्ति अपनी सेना के रख-रखाव और अंग्रेजों से लड़ने में खर्च कर दी..उनकी सेना में मद्रास रेजिमेंट के तीन सौ विद्रोही सैनिक भी थे। उन्होंने अपने एक साथी कालू कोटवार को एक पत्र के साथ इन सैनिकों को बुलाने के लिए जबलपुर भेजा लेकिन कालू कोटवार को अंग्रेजों ने पकड़कर कैद कर लिया..इसके बाद एक दूसरे विश्वास पात्र भोला बारी को उन्होंने इन सैनिकों को बुलाने के लिए भेजा.. वो सैनिकों की संख्या बढ़ाने के साथ सेना का आधुनिकीकरण भी कर रहे थे.. अंग्रेजों से लड़ने के लिए उनकी ही तरह के साजो सामान की जरूरत थी.. उन्होंने अपने रिश्तेदार बुडवा के इलाकेदार को बहुत सा धन दे रखा था.. वो अपना धन लेने बुडवा गए..इस बीच सरकार ने उन पर बड़ी इनाम राशि रख दीं थी… बुडवा के इलाकेदार के मन में लालच समा गया.. शयम शाह को मार देंगे तो कर्ज भी ना लौटना पड़ेगा.. इनाम भी मिल जायेगा.. उसने उनके साथ छल किया..उसने कर्ज लौटाने के लिए थोड़ा और समय मांगा..याम शाह बुड़वा में बीमार पड़ गए.. बीमारी की हालत में ज़ब वह वापस जा रहे थे तो बुड़वा और चचाई के इलाकेदार ने जंगल में उन्हें मार डालने की कोशिश की। बुड़वा के ठाकुर ने पहले ही श्याम शाह के आठ नौकरों को दूसरे रास्ते से भेज दिया था। श्याम शाह को पीछे से गोली मारी गई और वह गंभीर रूप से घायल होकर अपने घोड़े की पीठ से गिर पड़े। भमरहा के रणधीर सिंह को यह पता लगाने के लिए भेजा गया कि वह मर चुके हैं या नहीं ..जैसे ही वह श्याम
शाह को देखने के लिए झुका.उन्होंने अपना सिर हिला दिया..रणधीर सिंह कुछ कर पाता कि श्याम शाह ने गोली लगने के बाद भी तलवार से उसकी नाक काट दी,..बाद में उसका नाम ही नक्के सिंह पड़ गया… हालांकि इसके बाद श्याम शाह को पत्थरों से मार डाला गया.. इस बहादुरी पर बुडवा और चचाई के इलाकेदार देवी सिंह और गुरुपत सिंह को महाराजा रघुराज सिंह ने नकद इनाम और मैडल दिया..अगर पढ़ना चाहेंगे तो आगे बतायेंगे रणमत सिंह धीर सिंह और पंजाब सिंह की भी कहानी…

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