शिवेंद्र तिवारी

कुछ देवियाँ देवी पराशक्ति के आधे अंश से प्रकट हैं अर्थात वे देवी इस रूप से पराशक्ति की आधी सिद्धियों का ही प्रयोग कर सकती है। और कुछ देवियाँ एक चौथाई भाग ( 1/4 ) से अंशभूताएं हैं इसका सरल सा तात्पर्य वे 25%शक्तियों का ही प्रयोग करेंगी ( पर हैं वही भुवनेश्वरी रूप ) और कुछ कुछ देवियाँ मात्र 16 वें अंश को लेकर ही लीला करती है क्योंकि वे 16 वें अंश से ही प्रकट हैं इसका अर्थ है कि पराशक्ति जगदम्बा के अथाह पावर को यदि मात्र 16 भागों में बराबर बराबर विभाजित करें तो जो एक हिस्सा होता है उतनी ही शक्तियों से शत्रु का संहार कर पायेंगी यदि शत्रु परा देवी की कृपा से अधिक शक्ति ले चुका है तो फिर देवी का दूसरा अंशावतार ( 8 वां अंश या चौथाई अंश वाला जिसके पास अधिक सामर्थ्य है ) वही उस दैत्य का वध कर पायेगा।
देवी काली जब वीरभद्र जन्म के समय महारुद्र जी की जटाओं से प्रकट हुई थी तो देवी भुवनेश्वरी के आधे अंश ( 50% शक्तियाँ ) लेकर प्रकट हुई थी। और शुम्भ निशुंभ के वध के कालखण्ड में देवी कौशिकी जी के साथ जो देवी चामुण्डा कहलाई वे काली भी देवी कौशिकी के आधे अंश की शक्तियों से लीला कर रही थी। इसी प्रकार पुरुष देवताओं में होता है।
कुछ अंशभूतशिव शिवजी ( महादेव) के आधे अंश( 1/2 अंश (अर्थात 50% पाॅवर) को लेकर अंशावतार कहलाते हैं और कुछ 25% सामर्थ्य ( 1/4 अंश ) को लेकर लीला करते हैं। अर्थात महादेव की सिद्धियों और बल आदि के चार भाग करें तो उनके बराबर बराबर चार भागों में से एक भाग लेकर अवतार लेते हैं ये अंश ( अंशभूतशिव) भी शिव के रूप ही हैं।
कुछ 25वाँ अंश या 50वां अंश लेकर कम सामर्थ्य के साथ लीला करते हैं। और कुछ अंश न होकर सामान्य कृपा के भाग ( बुद्धि विवेक धृति वैराग्य नामक कलाओं ) के साथ कलात्मक अवतार कहलाते हैं।
कभी कभी परिपूर्णतम ब्रह्म भी अंशावतार या कलावतार जैसी लीला करते हैं यह उनकी स्वेच्छा की बात है।
इस ब्रह्माण्ड में सभी आत्माएं उसी परब्रह्म के स्वरूप हैं जो चैतन्य शक्ति वो है वही आप हो पर उस ब्रह्म की 100% शक्तियों व सिद्धियों को जो जितना जितना पा लेता है वह उसी के अनुसार अंशावतार या कलावतार कहलाता है। वीरभद्र पूर्व जन्म में न तो अंशावतार कहलाते थे न ही कलावतार पर अगले जन्म में उन्होंने भयंकर जप तप व्रत-उपवास और ब्रह्मचर्य का पालन किया जिससे परिपूर्णतम ब्रह्म ने उनको अपनी अनेक शक्तियाँ देकर अंशावतार बना दिया। ये सब अंशावतार शिव जी के वीर्य ( तेज ) से ही शरीर धारण करते हैं। पर शक्तियाँ अलग अलग( अंशावतारों के भाग के अनुसार ) होती हैं।
एक करोड़ पंचाक्षरी से भी जीव अगले जन्म में सदाशिव जी के पाँचवे अंश से उत्पन्न होकर लीला करता है और अपने ज्ञान और दिव्य कर्म से शान्ति की स्थापना करता है तथा ब्रह्मा जी के समान सामर्थ्य शाली हो जाता है।
ऐसे ही दो करोड़ से चौथा अंश से उत्पन्न होकर सृष्टि का पालन तक कर सकता है और ऐसे अंशावतार को विष्णु तुल्य घोषित कर दिया जाता है वेदव्यास जी के द्वारा पुराणों में। ऐसा जीव 25% पाॅवर पा लेता है ।
तथा 30000000 शैव मंत्र से वह सदाशिव जी के तीसरे अंश से उत्पन्न होता है अर्थात 33.33% पाॅवर से लीला कर सकता है और रुद्रदेव के समान कहा जाता है । तथा 4 करोड़ नमः शिवाय से वह आधे अंश से संपूर्ण पाॅवर से 50% शक्तियाँ लेकर महेश्वर का रूप कहलाता है। तथा 5 कोटी पंचाक्षरी से वह 100% सिद्धियाँ बल पराक्रम आदि पाकर साक्षात् सदाशिव जी और पराम्बा के समान लीला करने में समर्थ हो जाता है। पर वह आंतरिक रूप से साम्बसदाशिव जी को सतत् नमन करता है। इसी प्रकार देवी रेवती , रोहिणी अरुन्धती आदि कलावतार हैं छाया सीता भी कलावतार तथा 7 देवी अंशावतार। और 5 देवी परिपूर्णतम अवतार । कारण उनके पास मणिद्वीप की देवी की कृपा से उनके समान ही सामर्थ्य है पर वे अपने सामर्थ्य का प्रयोग कभी कभार ही करती हैं।
अर्थात देवी गौरी , सरस्वती, सावित्री आदि परिपूर्णतम अवतार हैं। ये गौरी भी ( यदि कौशिकी लीला न होती तो ) शुंभ और निशुंभ का वध कर सकती थी और मधु कैटभ का भी परंतु आदि देवी की ख्याति हो इस कारण इन पाँचों परिपूर्णतम अवतारों ने शान्ति धारण की ।