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खादी ग्रामोद्योग के नाम पर चल रहा फर्जी कारोबार, कोई देखने सुनने वाला नहीं कंबल एवं कवर खरीदी में फर्जी फर्म को जारी हुआ क्रय आदेश

मामला गांधी मेमोरियल अस्पताल का
सप्लाई के बाद आदेश हुआ निरस्त
दोषी के खिलाफ एफआईआर नहीं
प्रबंधक खादी ग्रामोद्योग ने लिखा था पत्र
गोलमोल तरीके से प्रकरण में लीपापोती

सिटीरिपोर्टर, रीवा

खादी ग्रामोद्योग के नाम पर क्या फर्जी संस्थाओं का संचालन हो रहा है? क्या इस तरह की संस्थाओं के माध्यम से सरकारी विभागों में सांठगांठ कर सामग्री सप्लाई की जा रही है? क्या ऐसी संस्थाओं के मामले संज्ञान में आने के बाद संबंधित विभाग उनके खिलाफ कोई प्रतिबंधात्मक कार्रवाई कर पाये? क्या ऐसी संस्थाओं की कार्रवाई जालसाजी एवं धोखाधड़ी नहीं मानी जानी चाहिये? क्या ऐसी संस्थाओं के खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज नहीं होनी चाहिये? ऐसा ही एक मामला संजय गांधी स्मारक चिकित्सालय का प्रकाश में आया है। जहां आरोपी फर्म द्वारा फर्जी तरीके से न केवल कंबल एवं कंबल कवर की सप्लाई का आदेश प्राप्त किया अपितु अस्पताल में सप्लाई भी कर दिया। बाद में गोलमोल तरीके से उस आदेश को न केवल निरस्त किया गया अपितु जो सामग्री प्राप्त की गई थी उसे वापस लौटाया दिया गया। किन्तु आरोपी फर्म के खिलाफ आज तक पुलिस में एफआईआर दर्ज नहीं करवाई गई।
प्रबंधक खादी ग्रामोद्योग उज्जैन ने लिखा था प्रबंधन को पत्र
ज्ञात हो इस प्रकरण में प्रबंधक खादी ग्रामोद्योग उज्जैन ने अपने पत्र दिनांक 23.9.2024 को संयुक्त संचालक सह अधीक्षक गांधी स्मारक चिकित्सालय को पत्र लिखा था। पत्र में बताया गया था कि गांधी स्मारक चिकित्सालय द्वारा दिनांक 6.9.2024 को जिस फर्म को कंबल एवं कंबल कवर सप्लाई के लिये आदेश जारी किया गया है वह मध्यप्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के विभागीय विक्रय एम्पोरियम, खादी तथा ग्रामोद्योग एम्पोरियम उज्जैन से संबंधित नहीं है। यह प्रदायगी किसी अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा खादी ग्रामोद्योग एम्पोरियम उज्जैन के नाम पर की गई है। जिसका मतलब है कि कंबल एवं कंबल कवर की सप्लाई किसी फर्जी फर्म द्वारा की गई थी। जो जालसाजी एवं धोखाधड़ी का मामला था। कहा गया था कि अनाधिकृत प्रदायकर्ता के विरूद्ध बैधानिक कार्यवाही करते हुये क्रय आदेश निरस्त किया जाय।
क्रय आदेश के नियम
पत्र में यह भी बताया गया था कि खादी ग्रामोद्योग से संबंधित क्रय आदेश या तो बोर्ड के पोर्टल में जारी होते हैं अथवा चिकित्सा विभाग के पोर्टल के माध्यम से जारी होते हैं। किन्तु उपरोक्त क्रय आदेश इन दोनों पोर्टल में किसी में भी जारी नहीं किया गया था। बल्कि सीधे पत्र के मायम से क्रय आदेश फर्जी एवं अपात्र फर्म को जारी कर दिया था। इससे गांधी स्माकर चिकित्सालय की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठते हैं। सवाल यह भी है कि फर्म के चयन के समय पर गंभीरता से विचार क्यों नहीं किया गया? अथवा यह माना जाय कि संबंधित फर्म को क्रय आदेश फिक्सिंग के आधार पर जारी किया गया था।
मात्रा एवं राशि का व्यौरा
प्राप्त जानकारी के अनुसार जारी आदेश के अनुसार कुल 600 नग कंबल, दर 1285 रूपये प्रतिनग, टैक्स सहित कीमत 8.10 लाख एवं 1000 कंबल कवर टैक्स सहित कीमत 5.24लाख के क्रय आदेश जारी किये गये थे। जिनके देयक भी खादी तथा ग्रामोद्योग एम्पोरियम के नाम पर फर्जी फर्म द्वारा भुगतान हेतु प्रस्तुत किये थे। भुगतान हुआ या नहीं यह भी जांच का विषय है। हालांकि प्रबंधन के पत्र के अनुसार कंबल एवं कंबल कवर को वापस कर दिया गया और आदेश निरसत कर दिया गया।
व्यक्ति अनाधिकृत तो फिर पुलिस में एफआईआर क्यों नहीं?
जिस तरह से प्रंबंधक खादी ग्रामोद्योग उज्जेन द्वारा अधीक्षक गंाधी मेमोरियल को पत्र लिखा था और कहा गया था कि क्रय आदेश किसी अनाधिकृत व्यक्ति द्वारा खादी ग्रामोद्योग एम्पोरियम उज्जेन के नाम से जारी किया गया था। तो सवाल यह उठता है कि वह अनाधिकृत व्यक्ति कौन था? उसको चिन्हित कर उसके खिलाफ पुलिस में एफआईआर आज तक दर्ज क्यों नहीं करवाई गई? केवल क्रय आदेश निरस्त कर देना और खादी ग्रामोद्योग को यह सूचित कर देना कि आदेश पूर्व में ही निरस्त किया जा चुका है यह बात समझ से परे हैं। सवाल यह भी उठता है कि जिस तरह से अनाधिकृत फर्म से कंबल एव कंबल कवर की खरीदी आदेश जारी करने का मामला प्रकाश में आया उस तरह से अस्पताल में और कितने आदेश इस तरह से जारी हुये इसकी जांच आज तक क्यों नहीं हुई?

क्रय आदेश निरस्त किन्तु प्रक्रिया पर उठते कई गंभीर सवाल
इस प्रकरण में संयुक्त सचांलक एवं अधीक्षक ग्रांधी स्मारक चिकित्सालय रीवा ने अपने पत्र क्रमांक ११०८४ रीवा दिनांक १८.९.२०२४ के तहत जारी क्रय आदेश दिनांक 6.9.2024 को निरस्तर तो कर दिया किन्तु इस तरह की कार्रवाई पर कई सवाल उठ रहे हैं। आदेश में लेख किया गया कि तकनीकी एवं प्रशासकीय कारणों से जारी आदेश तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया गया है। किन्तु यहां सवाल यह उठता है कि वह तकनीकी व प्रशासकीय कारण क्या थे? जिस समय निविदा जारी की गई और फर्मो का चयन किया गया उस समय तकनीकी एवं प्रशासनिक रूप से क्या गंभीरता से विचार नहीं किया गया था? उस समय चयन समिति में कौन लोग शामिल थे? उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गई? केवल दो लाईन का आदेश जारी कर देना ही अरोप से मुक्ति प्राप्त कर लेना है?

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