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म.प्र. पूर्व क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के दोहरे चरित्र से उपभोक्ता परेशान, अपनों का काट रही गला, पड़ोसी राज्यों पर मेहरबान

अपने उपभोक्ताओं पर दोगुने दाम का शिकंजा, घरेलू उपभोक्ताओं की प्रताडऩा सबसे ज्यादा,
विसंगति दूर करने पत्र लिखे गये पर सारा तंत्र निष्क्रिय, अफसरों पर कमीशनबाजी के गंभीर आरोप

नगर प्रतिनिधि, रीवा

बहुत कोशिश करने के बाद भी बिजली कंपनियां ये साबित करने में पीछे रह जाती हैं कि वे अपने उपभोक्ताओं के प्रति अच्छी सोच रखती हैं और उनकी सुविधा के लिए काम करती हैं। अब खुलासा हुआ है कि मप्र पॉवर मैनेजमेंट कंपनी दूसरे राज्यों को आधे दाम पर बिजली बेंच रही है,लेकिन मप्र के बिजली उपभोक्ताओं से उसी बिजली के दोगुने दाम वसूले जा रहे हैं। कंपनी के इस घाटे के सौदे पर ढेरों सवाल खड़े किए जा चुके हैं,लेकिन कंपनी और सरकार कान बंद किए हुए हैं।
निम्नदाब पर ज्यादा ज्यादती
कंपनी ने उच्चदाब के उपभोक्ताओं पर थोड़ा रहमदिली दिखाई है। इन्हें बिजली बिल पर रियायत दी जा रही है,लेकिन निम्रदाब के उपभोक्ताओं को किसी तरह की राहत नहीं दी जा रही है। नए टैरिफ के बाद एक आम उपभोक्ता को प्रति युनिट आठ रुपये में बिजली दी जा रही है,लेकिन दूसरे राज्यों को यही बिजली 4 रुपये 31 पैसे प्रति युनिट में दी जा रही है। विद्युत नियामक आयोग के सामने कंपनी ने 4 रुपये 55 पैसे प्रति युनिट की दर से दूसरे राज्यों को बिजली बेंचने का प्रस्ताव रखा था,लेकिन आयोग ने 4 रुपये 31 पैसे की ही अनुमति दी।
ऐसा है नए टैरिफ का गणित
नए टैरिफ में 151 से 300 यूनिट तक खपत करने वाले उपभोक्ताओं से प्रति यूनिट 6.61 रुपए लिए जाते थे। अब इसे 18 पैसे प्रति यूनिट बढ़ाया गया है। नए टैरिफ में घरेलू उपभोक्ताओं से प्रति यूनिट 6.79 रुपए की वसूली की जाएगी। सरप्लस बिजली बेचने के रेट कम रखे गए हैं। यदि उपभोक्ताओं को ही कम दरों में बिजली दी जाती तो उन्हें फायदा होता और कंपनी को भी नुकसान नहीं होता। कंपनी जिस घाटे का रोना रो रही है,वो उसे नहीं रोना पड़ता। मप्र वर्तमान में गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे उन प्रदेशों को बिजली बेच रहा है।
कमीशन के खेल में कितनी हकीकत
दूसरे राज्यों को आधे दाम में बिजली बेंचने पर कंपनियों से कमीशन लेने के आरोपों का सामना करने वाले अधिकारी अपने बचाव में कहते हैं कि मप्र में उद्योगों का विकास तेजी से न होने के कारण सरप्लस बिजली की बिक्री उनकी मजबूरी है। कम दामों के सवाल पर अधिकारी ने कहा कि चूंकि इस बाजार में कॉम्प्टीशन अत्यधिक होने के कारण उन्हें दाम इतने कम रखने पड़ते हैं। हालाकि, बिजली के जानकारों का एक बड़ा वर्ग है,जो दावा करता है कि ये पूरा खेल कमीशनबाजी पर टिका हुआ है और पूरे देश में बिजली बेंचने का गिरोह सक्रिय है,जो निजी कंपनियों और बिजली कंपनियों के बीच डील कराता है,उसके एवज में अफसरों को मोटी रकमें प्राप्त होती हैं। दावा ये भी है कि ये कमीशनखोरी केवल बिजली अफसरों की जेबों में नहीं जाती,बल्कि इसका वितरण आगे भी किया जाता है।
घरेलू खपत को बढ़ावा देना होगा
मप्र विद्युत नियामक को घरेलू, वाणिज्यिक एवं लघु उद्योगों को बिजली खपत पर प्रोत्साहन देना चाहिए ताकि विद्युत उत्पादन को प्रदेश में ही खपाया जाए। इससे उद्योग भी बढ़ेंगे और बिजली कंपनी को उसकी बिजली के अच्छे दाम मिलेंगे,जिससे घाटे की स्थिति नहीं आएगी।
राजेंद्र अग्रवाल, अतिरिक्त मुख्य अभियंता (रिटायर्ड

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