बिजली पैदा हुई रीवा में, मजे मिल रहे दिल्ली की जनता को
कहावत हो रही चरितार्थ – घर के लडक़ा गोही चाटय, मामा खाय अमावट
किया गया था वादा- मिलेगा रोजगार, क्षेत्र बनेगा उन्नत, सबको मिलेगा फायद
अनिल त्रिपाठी, रीवा
घर के लडक़ा गोही चाटय, मामा खाय अमावट , बघेलखंड की यह कहावत काफी प्रसिद्ध है। इसका मतलब यह है कि घर के सदस्य को जरा सा महत्व नहीं, और बाहर वाले को इतना सम्मान, जिसकी कल्पना नहीं। मामला रीवा जिले के गुढ़ विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत सोलर प्लांट की स्थापना से जुड़ा हुआ है। लगभग 8 साल पहले इस प्लांट की स्थापना के प्रयास शुरू हुए थे लेकिन जितने दावे नेताओं ने किए थे शायद उसका 15 फ़ीसदी भी पूरा नहीं कर पाये।
अलबत्ता कंपनियों ने हर साल अरबों का मुनाफा कमाया, लेकिन क्षेत्र की जनता केवल पावर प्लांट का बखान सुनती रह गई और उस प्लांट को देखकर अपने को ठगा सा महसूस करती रह गई। यहां यह गौर तलब है कि जब प्लांट की स्थापना होने जा रही थी तो नेताओं ने इतने लंबे चौड़े भाषण और वायदे कर डाले थी कि लोग ताली बजाते थकते नहीं थे।
पहला महत्वपूर्ण वायदा तो यही था कि इस इलाके की जनता को बिजली के लिए मोहताज नहीं होना पड़ेगा और बिल से महरूम नहीं होना पड़ेगा। लेकिन हुआ उल्टा, पावर प्लांट क्षेत्र की 15 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की जनता बिजली समस्या से इन दिनों परेशान है। बिजली का बिल भी गांव में लोगों की परेशानी का कारण बना हुआ है। कई गांव में ट्रांसफार्मर इसलिए नहीं लग पा रहे हैं कि उनके यहां 40 फ़ीसदी लोगों ने बिजली के बिल ही जमा नहीं कर पाए।
दूसरा सबसे बड़ा वायदा नेताओं ने किया था कि सोलर पावर प्लांट में 70 फ़ीसदी से ज्यादा स्थानीय युवाओं को ही मौका दिया जाएगा। लेकिन स्थिति उल्टी हो गई। जो पर्ची काटने में और सिफारिश करा लेने में सफल रहा, उसे 12000 से 16000 की नौकरी मिल गई। शेष वहां तक पहुंच ही नहीं पाए। सोलर प्लांट देखने वाले युवा बेरोजगार अब सूरत की कपड़ा कंपनियों में या तो कपड़े बना रहे हैं अथवा सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी में लगे हुए हैं। अपने भाग्य को कोस रहे हैं तथा उन जनप्रतिनिधियों को प्रेम के साथ बद्दुआए दे रहे हैं, जो पावर प्लांट की स्थापना की शुरुआत से लेकर उद्घाटन के अवसर तक तरह-तरह के दावे कर रहे थे।
चौपट है शिक्षा व्यवस्था
कंपनी के सी आर मद से स्कूलों को बेहतर से बेहतर बनाने के दावे किए गए थे। लेकिन आज तक कंपनी ने कहीं झांका नहीं। सरकार की व्यवस्थाओं में ही संचालन पूर्व की तरह चल रहा है। निर्धन बच्चों की शिक्षा सुविधा को बेहतर बनाने का भी वायदा किया गया था, लेकिन प्लांट वालों को फुर्सत ही नहीं मिल पाई। इतने बड़े सोलर प्रोजेक्ट के बाद भी इन गांवों में सुविधाओं की झड़ी नहीं लग पाई। जनमानस की आस अब टूट सी चुकी है।
25 साल के एग्रीमेंट से उत्साह की बजाय निराशा
स्थानीय लोगों ने कहा कि अब तो 25 साल के लिए यह एग्रीमेंट हो ही गया है। हम लोगों को तकलीफ कितनी भी हो लेकिन वह एग्रीमेंट खत्म नहीं हो सकता है। हम लोगों को यहां जिन समस्याओं से रोज रोज रूबरू होना पड़ रहा है उसका एक सर्वे गवर्नमेंट अपने स्तर से करा ले । उसके निराकरण के लिए सीएसआर मद के पैसे का उपयोग हो और यहां पर स्वास्थ्य की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए।
लोगों को इसलिए हो रही थी खुशी…
प्लांट की स्थापना के दौर में लोग इसलिए काफी खुश नजर आ रहे थे कि उन्हें अब रोजगार के लिए कहीं बाहर नहीं जाना पड़ेगा और किसी भी बड़ी कंपनी के आ जाने से रोजगार के पर्याप्त रास्ते खुल जाते है। लोगों का कहना है कि जब बाहर से आई कंपनी किसानों की जमीन में नया प्रोजेक्ट बनाती है तो लोगों के लिए रोजगार के रास्ते खुलते हैं । बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलती है। इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होते हैं और गांव का विकास होता है लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ । कंपनी एक्ट में सीएसआर मद के पैसे आते हैं लेकिन यहां उसका भी पता नहीं है कि कहां खर्च हो रहा है । एक पैसे का यहां कोई उपयोग नहीं हुआ शिक्षा के क्षेत्र में इन्होंने कोई बिल्डिंग नहीं बनाई।
उद्घाटन में आई थी भारी भीड़
देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में तथा तत्कालीन प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में जब सोलर पावर प्लांट का लोकार्पण किया गया था तब आश्वासन और वादों की इतनी झड़ी लग गई थी कि नासमझ जनता ताली बजाते बजाते थक नहीं रही थी। भोली भाली जनता यह मान बैठी थी कि अब उनकी बिजली फ्री मिलना तय। रीवा जिले की जनता भी यह मान रही थी कि अगर उसे क्षेत्र के लोगों को फ्री में बिजली मिलेगी तो हम लोगों को फायदे के मुताबिक लागत मूल्य में बिजली उपलब्ध कराई जाए। एशिया के सबसे बड़े सोलर प्लांट का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों के द्वारा दिखाए गए सब्जबाग से उस दिन जितना लोक प्रसंग हुए थे उतना ही आज की तारीख में कोस रहे हैं। जनता यह भी कह देती है कि सबका अपना सिस्टम रहा है और जब उनका पेट भर जाएगा , तब क्षेत्र की जनता का नंबर लगेगा। बावजूद इसके महत्वपूर्ण बात यह रही कि शुरुआती दौर में खुशी मनाने वाले लोग अब अपनी किस्मत को ही दोषी ठहरा रहे हैं।