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22 वर्षों से प्राध्यापकों को नहीं मिली पदोन्नति, प्रभार की वैशाखी पर 87 सरकारी महाविद्यालय

सहकर्मी प्रभारी प्राचार्य की बात मानने को तैयार नहीं
2002 के बाद नहीं हुई विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक
कोर्ट के आदेश के बाद विभाग आया हरकत में, लेकिन सूची बनाकर हो गया शांत

नगर प्रतिनिधि, रीवा

रीवा व शहडोल संभाग में 88 सरकारी महाविद्यालय हैं। इनमें से मात्र एक सरकारी रणविजय महाविद्यालय, उमरिया में नियमित प्राचार्य हैं। शेष सभी 87 महाविद्यालय प्रभार की वैशाखी पर चल रहे हैं। यह एडी रीवा क्षेत्र के सरकारी महाविद्यालयों का हाल है। प्रदेश स्तर की बात करें तो प्रदेश के 580 सरकारी महाविद्यालयों में से महज 30 महाविद्यालयों में नियमित प्राचार्य हैं और 550 प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं। कई महाविद्यालयों में तो स्थिति यह है कि प्राध्यापक अपने सहकर्मी प्रभारी प्राचार्य को प्राचार्य मानने के लिए ही तैयार नहीं है। क्योंकि वह प्रभारी प्राचार्य भी उनके समकक्ष के पद का ही है। उच्च शिक्षा विभाग की नीतियों के कारण यह स्थिति बनी है। विभाग ने वर्ष 2002 के बाद से अब तक प्राध्यापकों को पदोन्नति नहीं प्रदान की। लिहाजा अधिकांश सरकारी महाविद्यालय नियमित प्राचार्य विहीन हैं। नियमित प्राचार्य न होने से संबंधित महाविद्यालयों में तमाम तरह की कार्यालय अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा संभाग रीवा (म.प्र.) व्यवस्था बिगड़ रही है। तो वहीं, प्राध्यापकों में हताशा, कुंठा और नीरसता का भाव पलने लगा है, जिसका असर उनके कामकाज व महाविद्यालय की शैक्षणिक व्यवस्था में भी देखने को मिलता है। फिर भी, सत्ता के लोग व विभाग के आला अधिकारी केवल अपनी मलाई पकाने तक सीमित है। जमीनी स्तर पर महाविद्यालयों की क्या दशा है, इसका आंकलन करने की फुरसत फिलहाल उन्हें नहीं है।
कैबिनेट के निर्णय पर अमल नहीं
जानकारी के मुताविक मप्र शासन की कैबिनेट बैठक हुई थी। इस बैठक में मप्र शैक्षणिक सेवा भर्ती नियम 1990 के अंतर्गत प्राध्यापकों को यूजीसी छठवें वेतनमान में 37400/67000 एजीपी 10000 देने की स्वीकृति हुई थी। केबिनेट के इस निर्णय पर प्राध्यापकों में कुछ प्रसन्नता दिखी लेकिन कई माह बीत जाने के बाद भी केबिनेट के इस निर्णय पर अभी तक अमल नहीं हो पाया।
3 सैकड़ा प्राध्यापकों को पदोन्नति का इंतजार
शोषण की यह दशा पदोन्नति की बाट जोहते हुए सेवानिवृत्त बताते हैं कि 22 वर्ष पहले वर्ष 2002 में प्राध्यापक से प्राचार्य पद हेतु विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक हुई थी। इसके बाद से अभी तक तीन सैकड़ा से अधिक प्राध्यापक पदोन्नति की बाट जोह रहे हैं और लगभग तीन सैकड़ा प्राध्यापक पदोन्नति के इंतजार में सेवानिवृत्त हो गए। वर्षों तक विभाग की सेवा करने वाले इन प्राध्यापकों को सेवानिवृत्त तक ना तो पद मिला और ना वह सम्मान मिला, जिसके वह हकदार थे। आर्थिक व सामाजिक लाभ से ये शिक्षक वंचित रह गए। यदि शासन इन्हें पदोन्नति दे देता तो कोई ज्यादा वित्तीय भार भी नहीं आता लेकिन न्यायालय में मामला होने की बात कहकर पदोन्नति लटकाई जा रही है। संचालनालय और विभागीय मंत्रालय में भी है। बताया जाता है कि संचालनालय और विभागीय मंत्रालय में 5 से 10 वर्ष की सेवा देने वाले शिक्षकों को भी ओएसडी बना दिया गया है तो 35-40 वर्ष की सेवा वाले कुछ प्राध्यापक भी ओएसडी बने हुए हैं। एडी रीवा की कुर्सी जैसे प्रभारी के हवाले है। ऐसे ही, प्रभारियों के भरोसे चलायमान हैं।
5 वर्ष पहले बनी थी वरिष्ठता सूची
सरकारी महकमों की कार्यप्रणाली अक्सर विरली ही होती है। उच्च शिक्षा विभाग की ऐसी ही कार्यवाही को लेकर प्राध्यापकों में आक्रोश है। विभाग ने अरसे बाद सरकारी महाविद्यालयों में पदस्थ प्राध्यापकों की संयुक्त वरिष्ठता सूची गत अप्रैल 2019 को जारी की थी। इसके उपरांत विभाग को सूची में शामिल प्राध्यापकों को प्राचार्य पद पर पदोन्नति देनी थी, लेकिन उक्त कार्यवाही पिछले पांच साल से अटकी हुई है। विदित हो कि हाईकोर्ट की इंदौर खण्डपीठ ने गत 8 जनवरी 2019 को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए विभाग को प्राध्यापकों को पदोन्नत करने के आदेश दिए हैं। इस आदेश के पालन में विभाग हरकत में आया था, लेकिन सूची बनाकर विभाग फिर सो गया।
केवल 1 पदोन्नति से करना पड़ रहा संतोष
नियमानुसार प्रत्येक लोकसेवक को हर 10 साल में पदोन्नति मिलनी चाहिए। इस तरह प्राध्यापकों को 30-35 वर्ष के सेवाकाल में कम से कम 3 पदोन्नति मिलनी चाहिए थी। इसके विपरीत इन प्राध्यापकों को अपने सेवाकाल में महज 1 पदोन्नति से ही संतोष करना पड़ा। इस पर भी विभाग द्वारा पैदा की गई विसंगतियों के चलते कई प्राध्यापक न्यायालय की शरण में चले गए, जहां पदोन्नति प्रकरणों का ढेर लगता गया।

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