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चार पीढिय़ों से बना आशियाना एक झटके में जमीदोज नोटिस थी 10 घर की, गिरा दिया पीएम आवास वाले भी 23 घर

विकलांग बेटी पर भी पुलिस को नहीं आई रहम, पकडक़र घर के बाहर फेंके
कर्ज लेकर बनाये थे घर, जेसीबी ने कर दिया जमीदोज

देवेन्द्र दुबे, रीवा

पैरों से मोहताज बेटी रोती रही, चिल्लाती रही, लेकिन पुलिस वाले उसे घर के अंदर से उठा लाए। दो पुलिस वालों ने उसके पैर पकड़े और दो पुलिस वालों ने उसके हाथ पकडक़र 300 मीटर दूर हैंडपंप के पास पटक दिया। इससे दुखी होकर उसने दो दिन तक खाना नहीं खाया था। उसे चोटें भी आईं थी। पुलिस की इस कार्रवाई के बाद हमारा घर जेसीबी से जमींदोज कर दिया गया। मकान के टूट जाने से बेटी पूरी तरह से टूट गई थी। बेटी की हालत देखकर उसे रिश्तेदारी में भेज दिया, जबकि मैं तंबू लगाकर रह रही हूं। लीलावती केवट यह दास्तां सुनाते-सुनाते हुए फफक-फफक कर रोने लगती है। यह कहानी किसी एक परिवार की नहीं बल्कि रीवा के रहट गांव के 23 परिवारों की है। उन्होंने प्रधानमंत्री आवास के साथ ही कर्ज लेकर आशियाने बनाए थे, जिन्हें दस दिन पहले प्रशासन ने जेसीबी से तोड़ दिए हैं। जिन पक्के मकानों में वह तीन साल से रह रहे थे आज उसी मलबे के ढेर पर पन्नी लगाकर गुजर-बसर कर रहे हैं।
बिना सूचना के घर तोड़े जाने का आरोप
गांव वालों का कहना है कि 10 लोगों को नोटिस मिला था, लेकिन 23 मकान बगैर किसी सूचना के तोड़ दिए गए। कुछ लोग तो घर पर भी नहीं थे। इसमें आधे मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने हुए थे। योजना के तहत डेढ़ लाख रुपए स्वीकृत हुए थे। बाद में हमें एक लाख 20 हजार रुपए ही मिले। राशि कम पडऩे पर ब्याज से रुपए लेकर बड़ी मुश्किल से अपनी छत बनाई थी। अब हमारे विस्थापन के लिए प्रशासन कोई मदद नहीं कर रहा।
सरकारी भूमि पर बने थे मकान
ये मकान शासकीय भूमि पर बनाए गए थे। पीडि़तों का आरोप है कि पंचायत ने सरकारी जमीन पर प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत किया था। अब अतिक्रमण बताकर तोड़ दिया गया। बता दें कि एक व्यक्ति को केवल एक ही बार प्रधानमंत्री आवास के लाभ के लिए योग्य माना जाता है। अब जिनके घर तोड़ दिए हैं उन लोगों का कहना है कि अगर ये अतिक्रमण था तो हमारी प्रधानमंत्री आवास की राशि क्यों खर्च करवा दी गई। पंचायत ने हमें इस जमीन पर आवास बनाने की स्वीकृति कैसे दे दी? हमें तो ये कहा गया था कि जो जिस जगह पर पीढिय़ों से बसा हुआ है, उसे उसी जगह पर आवास और जमीन का पट्टा दिए जाने का नियम है।
4 पीढ़ी पहले बना था घर
रहट गांव में 4 पीढिय़ों से जिस जगह पर इन लोगों का आशियाना था। वो अतिक्रमण में आने के कारण तोड़ दिया गया। हाईकोर्ट में रामकिशोर ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसके आधार पर हाईकोर्ट ने तालाब के आस-पास मौजूद घरों को अतिक्रमण माना। हाईकोर्ट के आदेश पर 8 अक्टूबर को 23 पक्के मकान तोड़ दिए गए। मकानों को तोडऩे के पहले जिला प्रशासन ने इनके विस्थापन की कोई व्यवस्था नहीं की। लिहाजा परिवार छोटे-छोटे बच्चों को लेकर मलबे के ढेर के बीच तंबू लगाकर रह रहे हैं। अब सर्दी तेजी से बढ़ रही है, ऐसे में परिवार के बुजुर्गों की चिंता बढ़ती जा रही है।
प्रियंका बोलीं- मकान का कर्ज बाकी, घर जमींदोज
प्रियंका केवट का कहना है कि मेरे 3 बच्चे हैं। 2021 में आवास मिला था। आवास की राशि जो 1 लाख 50 हजार मिलनी चाहिए थी। उसमें से 1 लाख 20 हजार रुपए मिले थे। हमने ब्याज में 70 हजार रुपए लिए, जिसके बाद घर बनकर तैयार किया था। घर के लिए जो कर्ज लिया था, उसे अभी तक चुका रहे हैं। अब हमारे घर तोड़ दिए गए। तंबू में ही बुजुर्ग सास, छोटे बच्चे और हम सब रह रहे हैं। परसों बारिश हुई तो हर जगह से पानी टपक रहा था। बच्चे भी भीग गए थे। जिससे कर्ज लिया था 4 दिन पहले उसका फोन आया था कि पैसे कब लौटा रहे हो। अब कोई उपाय नजर नहीं आ रहा है। एक हनुमान जी का छोटा सा मंदिर बना था। उसे भी तोड़ दिया गया।
इस तरह बयां करते हैं अपना दर्द
मेरे ऊपर भी चढ़वा देते बुलडोजर : रामफल केवट

हमारे ऊपर भी बुलडोजर चला दें बुजुर्ग रामफल केवट का कहना है कि प्रधानमंत्री आवास योजना के जरिए घर बना था। बेटे ने खुद की कमाई से कुछ कमरे बनाए थे। दिवाली का त्योहार आ रहा है। सब लोग जश्न मनाएंगे और हम सडक़ पर दीया जलाएंगे। घर में रखा सारा राशन मलबे में दब गया है। अब खाने-पीने का संकट पैदा हो गया है। गैस-चूल्हा सब कुछ मलबे के बीच दबा हुआ है। अब भला हम क्या करें। शासन-प्रशासन अगर हमारी कुछ व्यवस्था नहीं करता है तो हमारे ऊपर भी बुलडोजर चलवा दें।
दीपावली में मातम : मोलिया
मोलिया केवट ने बताया कि दिवाली पर धूल-मिट्टी और मलबे के बीच दीपक कैसे जलाएंगे। दशहरे का त्योहार घर गिरने के मातम में निकल गया। बच्चों ने ढंग से खाना तक नहीं खाया। घर में 5 बच्चे हैं। अब हमारा गुजारा कैसे होगा। ससुर को प्रधानमंत्री आवास मिला था। जिसके तहत पक्का घर बन कर तैयार हो गया था। हमने कुछ पैसे इक_ा कर कुछ और कमरे भी बनवा लिए, जिससे अन्न-गल्ला रखने के लिए भी घर में पर्याप्त स्थान हो गया था। लेकिन सब कुछ जमींदोज कर दिया गया। मैं तंबू से निकलकर दोपहर हाथ धोने के लिए कुएं की तरफ जा रही थी। उसी समय मलबे के ढेर में लडख़ड़ा कर गिर पड़ी। मेरे चेहरे पर चोट के निशान और घाव बन गए हैं। बच्चे भी छोटे हैं।
लीलावती केवट का दर्द
तंबू में बीमार पडऩे लगे बच्चे पीडि़ता लीलावती केवट का कहना है कि मेरा घर भी प्रशासन ने गिरा दिया। बड़ी मुश्किल से अपने जीवन स्तर में सुधार किया था। आवास योजना के तहत घर मिला था, जो जमींदोज कर दिया गया। ठंड का मौसम आ रहा है, बच्चे तंबू में कैसे रहेंगे। बच्चे बीमार पड़ गए हैं। सरकार को हम गरीबों की तरफ भी देखना चाहिए। हमारे रहने के लिए कोई तो व्यवस्था की जाए।
माँ और भाई के साथ रहती हूँ
पीडि़ता रेशमा केवट (18) का कहना है कि दो माह पहले पिता का निधन हो गया था। मां और भाई के साथ रहती हूं। सिलाई का काम कर किसी तरह खर्च चला रही थी, लेकिन इस बीच हमारा घर गिरा दिया गया। भला अब हम क्या करें। पिता को प्रधानमंत्री आवास मिला था, जो गिरा दिया गया। मौके पर तहसीलदार पहुंचे थे। मैं पूरे घटनाक्रम का वीडियो बना रही थी। तहसीलदार ने मुझे धमकाया कि अगर तुमने वीडियो बनाया, तो तुम्हारा पूरा करियर बर्बाद कर दूंगा। जीवन में फिर कहीं नौकरी नहीं मिलेगी। तंबू में जीवन कट रहा है।

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