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बसपा और कांग्रेस से दल बदलने वालों की नहीं हो रही कोई पूंछ परख, जितनो ने बदला दल, नहीं हो पाए सबल

कइयों ने तो अपना धंधा बचाए रखने के लिए भाजपा को किया ज्वाइन
बसपा से कांग्रेस में आए थे बड़ा नेता बनने, वहां भी कुछ नहीं कर पाए हासिल
पूर्व विधायक और पूर्व सांसद तक जुटे हुए हैं अस्तित्व की तलाश में, कहीं नहीं मिल रही ठौर

विशेष संवाददाता, रीवा

इस समय रीवा जिले के दो दर्जन से ज्यादा कभी चर्चित रहे नेता अपने अस्तित्व की तलाश में जुटे हुए हैं। 5 साल पहले दल बदला था, तब उन्हें लगा था कि कुछ हासिल हो जाएगा, जब उन्हें उसे दल में कुछ हासिल नहीं हुआ तो फिर दल बदल दिया, लेकिन यहां भी वही हाल है। ऐसे नेताओं के ऊपर कांग्रेस और भाजपा के नेता केवल गले में हाथ डालकर बात करते हैं लेकिन उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कुछ हासिल न हो पाने की स्थिति में वह मानसिक तौर पर काफी खिन्न भी हैं। कई बार वह यह भी सोचने लगते हैं कि अगर पुराने दल में ही बने रहते तो कम से कम उनकी पूछ परख बनी रहती।
रीवा के दो पूर्व सांसद इधर से उधर , उधर से इधर का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कहीं नंबर नहीं लग पा रहा। सत्ता वाली सरकार में शामिल होने के बाद भी पूछ परख कम हो गई है वहीं संगठन में भी कहीं कुछ खास नजर नहीं आ रहा। पूर्व सांसद बुद्धसेन पटेल तो दल बदलने के मामले में रिकॉर्ड तोड़ चुके हैं, उनकी महत्वाकांक्षा मात्र बनी हुई है, लेकिन स्थानीय स्तर का कोई बड़ा दल उन्हें पूछने को तैयार नहीं है। इसी क्रम में देवराज पटेल के बारे में भी लोग टिप्पणी करने लगे हैं।
बीएसपी से कांग्रेस और कांग्रेस से भाजपा में आ गए हैं। लेकिन यहां पर भी उन्हें कुछ खास नहीं मिल पाया है हालांकि वह कह रहे हैं कि पर्याप्त सम्मान मिल रहा है लेकिन उनके समर्थक निराशा से हैं। एक वक्त था जब देवराज पटेल के समर्थकों की संख्या काफी बढ़ गई थी लेकिन बदलते घटनाक्रम और राजनीतिक हालातो के चलते अब वह भी कई बार अकेले ही घूमते फिरते दिखाई देते हैं जिससे यह स्पष्ट होने लगा है कि अब आभामंडल कमजोर है। समर्थक भी दुखी है।
ऐसे ही हालात उन पूर्व विधायकों के हैं जो उधर से इधर आए हैं। 5 साल पहले बसपा छोडक़र जो कांग्रेस में शामिल हुए थे उन्हें पहले पार्टी ने महत्व दिया लेकिन अब जब उनकी राजनीतिक स्थितियों को गंभीरता के साथ देखा तो संगठन उन्हें अब ज्यादा भाव नहीं दे रहा है। इसी प्रकार 1 साल पहले हुए विधानसभा चुनाव और 4 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेसियों में भगदड़ मच गई थी और सब भाजपा के भगवा रंग में समाहित हो गए थे।
इन सभी के हालातो के बारे में समीक्षकों ने जब देखा और समझा तो यह पाया कि चुनाव के दौरान भाजपा ने अपनी स्थितियों मजबूत करने के लिए सभी को समाहित तो करा दिया, लेकिन वह महत्व के लिए तरसते रह गए। सच्चाई यह है कि भाजपा के सीनियर लीडर भी जब सामने मौजूद रहते हैं तो उन नए लीडरों को पार्टी के नेता ज्यादा तवज्जो इसलिए नहीं देते हैं कि कही उनके ही सीनियर नाराज न हो जाए। वहीं भाजपा में वर्तमान में खटर-पटर का दौर चल ही रहा है ऐसे में कोई कहीं रिस्क नहीं लेना चाहता। संगठन भी ऐसे नेताओं को ज्यादा तरजीह नहीं दे पा रहा है।
चर्चा तो यह भी करते हैं लोग…
पिछले 6 महीने के भीतर कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आने वालों के मामले में अब तरह-तरह की टिप्पणियां करने लगे हैं। इस मामले में एक विधायक का एक नेता के संबंध में पत्र व्यवहार होने के बाद से मामला और ग्राम सा है। विधायक जी ने पत्र में उन कांग्रेसी नेता को भाजपा में शामिल होने के लिए आड़े हाथों लेते हुए कहा है कि वह अपने दामाद की नौकरी बचाने और अपने धंधों को सेटल करने के लिए भाजपा में शामिल हो गए। अब यह चर्चा गरम हो चुकी है। इसी प्रकार कई ऐसे नेता है जो लंबे समय से ठेकेदारी कर रहे थे , या वेयरहाउस चला रहे हैं और उनके खिलाफ जांच चल रही हैं, वह नेता भाजपा में शामिल होने के बाद अपने को नीट एंड क्लीन साबित करना चाह रहे हैं। वही समीक्षकों का कहना था कि इन नेताओं को अब कांग्रेस में अपने भविष्य के बारे में जब मालूम हो गया था तो वह अब भागते भूत की लंगोटी भली की कहावत के अनुसार अपना काम कर रहे हैं, इसलिए भाजपा में समाहित हो गए हैं। पार्टी और संगठन के लोग भी यह समझ गए हैं इसलिए ज्यादा भाव नहीं देते।

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