शिवेंद्र तिवारी
52 हजार के इंजेक्शन से शुरु हुई बिल की रीडिंग, मौत के बाद भी चलता रहा इलाज, परिजनों ने लगाए गंभीर आरोप

रीवा। जिले में निजी अस्पताल की भेट एक मरीज फिर एक बार चढ़ गया है, यहां मरीज की मौत के बाद हमेशा की तरह परिजन हंगामा करते हैं, पुलिस पहुंचती है और शव को संजय गांधी अस्पताल लाकर छोड़ देती है। दरअसल यह पूरी दास्तान रीवा के बिहान हॉस्पिटल की है जहां मामूली चक्कर आने के बाद एक व्यक्ति को उपचार के लिए अस्पताल लाया गया था। आरोप है कि यहां पर 52000 के इंजेक्शन से मरीज के उपचार की शुरुआत हुई। और वही इंजेक्शन मरीज के मौत का कारण बन गया।
बताया गया कि अस्पताल में मेडिसिन के डॉक्टर हार्ड का इलाज कर रहे थे। और पैसे का मीटर प्रति घंटे डेढ़ लाख रुपए के हिसाब से बढ़ रहा था।
द्वारिका नगर में रहने वाले रामनरेश दुबे को बीती शाम अचानक चक्कर आ गया जिसे उपचार के लिए परिजन विहान अस्पताल लेकर पहुंचे परिजनों के मुताबिक अस्पताल में मरीज को हार्ड का मरीज बताया गया। और 52000रुपए का इंजेक्शन लगाने की बात कही गई। परिजनों का कहना है कि जैसे ही वह इंजेक्शन लगा तो मरीज की हालत बिगड़ गई।इसके बाद रात 10:00 बजे तक इलाज चलता रहा और रूपयो का मीटर भी बढ़ता रहा और महज चंद् घंटे के भीतर 3 लाख के ऊपर का इलाज होने के बाद मरीज को मृत घोषित कर दिया गया। इसके बाद अस्पताल में बवाल की स्थिति निर्मित हो गई।
प्राइवेट अस्पतालों में आए दिन हो रही इस तरह की घटनाओं के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी हमेशा की तरह आंख मूंद कर बैठे हुए हैं। रीवा के हर गली कूचे में प्राइवेट अस्पताल के नाम पर लूट हो रही है। शासकीय चिकित्सकों का प्राइवेट मोह इस कदर बढ़ गया है कि उन्हें किसी बात का खौफ नहीं है अस्पताल में सेवा देने की वजह वह अपने निजी अस्पताल व्यस्त रहते हैं। विहान हॉस्पिटल की कुछ ऐसी ही दास्तां है। जहां मेडिसिन के चिकित्सक हार्ड का ऑपरेशन बात करते हैं। और मरीज से मोटी रकम वसूल लेते हैं और इन्हें मरीज की जिंदगी और मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि पूरा शासकीय तंत्र हर परिस्थिति में उनके साथ खड़ा दिखाई देता है। हाल ही में प्रदेश में अस्पताल में हुई बड़ी आगजनी की घटना के बाद प्राइवेट अस्पतालों की जांच भी शुरू हुई जिसमें कई अस्पताल आमान्य पाए गए। लेकिन सारी फाइलें ठंडे बस्ते में चली गई। फिलहाल यह पहला मामला नहीं है जब किसी प्राइवेट अस्पताल में इस तरह की घटना हुई है लेकिन शासन एवं प्रशासन ऐसे सास की चिकित्सा को का प्राइवेट मोह खत्म करने में पूरी तरह असफल नजर आ रहा है।