नगर प्रतिनिधि, रीवा
सहकारी समितियों के चुनाव लंबे समय से नहीं हो पा रहे हैं। हाई कोर्ट के निर्देश पर इसकी प्रक्रिया प्रारंभ हुई, लेकिन सदस्य सूची ही नहीं बन पाई, इसलिए चुनाव फिर टल गए हैं। खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों के व्यस्त होने के कारण कार्य प्रभावित हुआ। इसे देखते हुए अब मानसून के बाद चुनाव कराने की तैयारी है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में वर्ष 2013 में प्राथमिक कृषि साख सहकारी समिति, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के चुनाव हुए थे। इसके बाद से प्रशासक ही पदस्थ हैं।
इनके चुनाव वर्ष 2013 में हुए थे। इनके संचालक मंडल का कार्यकाल वर्ष 2018 तक था। इसके बाद सरकार ने चुनाव नहीं कराए, जिसके कारण जिला सहकारी केंद्रीय बैंक और अपेक्स बैंक के संचालक मंडल के भी चुनाव नहीं हुए। जबकि, प्रत्येक 5 वर्ष में चुनाव कराए जाने का प्रावधान है। चुनाव न होने की सूरत में पहले 6 माह और फिर अधिकतम 1 वर्ष के लिए प्रशासक नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन यह अवधि भी बीत चुकी है। इसको लेकर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने सरकार को प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने 26 जून से नौ सितंबर तक चार चरण में चुनाव का कार्यक्रम जारी किया था।
जिसमें आठ, 11, 28 अगस्त और 4 सितंबर को मतदान प्रस्तावित था लेकिन अभी तक चुनाव की प्रक्रिया ही प्रारंभ नहीं हुई। सूत्रों का कहना है कि अभी सरकार चुनाव नहीं कराना चाहती है इसलिए इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सदस्यता सूची तैयार न होने और खरीफ फसलों की बोवनी में किसानों की व्यस्तता का हवाला देकर चुनाव टाल दिए गए हैं। अब ये मानसून बीतने के बाद अक्टूबर-नवंबर में कराए जा सकते हैं।
अपात्र समितियों के नहीं होंगे चुनाव
विभागीय अधिकारियों का कहना है कि उन समितियों के चुनाव नहीं हो पाएंगे, जो विभिन्न कारणों से अपात्र हैं। इसमें खाद-बीज की राशि न चुकाने, गेहूं, धान सहित अन्य उपजों के उपार्जन में गड़बड़ी या अन्य कारणों से अपात्र घोषित संस्थाएं शामिल हैं।
गैर दलीय आधार पर चुनाव लेकिन राजनीतिक दखल पूरा
सहकारी समितियों के चुनाव गैर दलीय आधार पर होते हैं, लेकिन इनमें राजनीतिक दलों का पूरा दखल रहता है। भाजपा और कांग्रेस के सहकारिता प्रकोष्ठ हैं, जो चुनाव की पूरी जमावट करते हैं। कांग्रेस ने पूर्व सहकारिता मंत्री भगवान सिंह यादव, डॉ. गोविंद सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव और राज्य सभा सदस्य अशोक सिंह की चुनाव को लेकर समिति भी बनाई है।
इस कारण टलते रहे चुनाव
इनके चुनाव के तत्काल बाद विधानसभा चुनाव को देखते हुए तत्कालीन शिवराज सरकार ने इन्हें टाल दिया। इसके बाद सत्तारूढ़ हुई कमलनाथ सरकार ने किसान कर्ज माफी योजना और लोकसभा चुनाव के कारण इसे आगे बढ़ाया और जिला बैंकों में प्रशासक नियुक्त कर दिए। तब से ये चुनाव टलते आ रहे हैं। इस बीच मामला हाई कोर्ट में पहुंच गया। हाई कोर्ट ने चुनाव कराने के निर्देश दिए, जिस पर राज्य सहकारी निर्वाचन प्राधिकारी ने कार्यक्रम भी जारी कर दिया लेकिन लोकसभा चुनाव के कारण ये फिर टल गए।