शहर के कई स्थानों की पुलियों में नहीं है रैलिंग
मिश्रा पेट्रोल पम्प से लेकर चन्द्रामंगलम भवन तक खुले नाले बने हैं जानलेवा
खतरनाक बिन्दुओं को चिन्हित करके व्यवस्था बनाने की जरूरत
हादसे के बाद प्रशासन आता है सख्ती में
विंध्यभारत, रीवा
शहर के विभिन्न भागों में खतरनाक मोड़ों पर खुली नालियों का खतरा बना हुआ है। एक तरह से यह दुर्घटनाओं का खुला आमंत्रण भी है। शहर के कई स्थानों की पुलियों में रेलिंग की व्यवस्था नहीं है। आए दिन सडक़ दुर्घटनाएं होती रहती है। ऐसी स्थिति में खतरनाक मोड़ों पर खुले नाले जानलेवा बन सकते हैं। उदाहरण के रूप में शहर की विकसित कॉलोनी वार्ड नंबर 13 नेहरू नगर में मिश्रा पेट्रोल पंप के सामने से लेकर चंद्रा मंगलम विवाहघर के रास्ते कई स्थान पर खुले नाले देखने को मिल जाएंगे। शायद ही कोई वार्ड ऐसा हो जहां इस तरह की समस्या ना हो। काफी लिखा पढ़ी के बावजूद वार्ड नंबर 23 की समस्या का समाधान अभी तक नहीं हुआ है। ऐसे खतरनाक बिंदुओं को चिन्हित करके व्यवस्था बनाई जानी चाहिए।
इसी वर्ष अप्रैल माह में रीवा जिले के त्योंथर तहसील अंतर्गत मनिका गांव में 6 वर्षीय बालक मयंक के लगभग 70 फीट गहरे बोरवेल में गिर जाने के दुखद हादसे के बाद प्रशासनिक स्तर पर बचाव दल ने काफी सक्रियता दिखलाई थी। इस घटनाक्रम को लेकर पूरे देश के लोगों का ध्यान आकर्षित हुआ था। ऑपरेशन रेस्क्यू में बचाव दल ने बच्चे मयंक को निकालने के लिए हर तरह की कोशिश की लेकिन जीवन बचाने की सफलता नहीं मिली। ऑपरेशन रेस्क्यू के लिए असीमित बजट होता है जबकि संभावित दुर्घटनाओ की रोकथाम के लिए बजट की प्रतीक्षा की जाती है।
समता संपर्क अभियान के राष्ट्रीय संयोजक लोकतंत्र सेनानी अजय खरे ने कहा है कि किसी भी ऑपरेशन रेस्क्यू के दौरान आसपास किसी तरह की भीड़ होने से कार्य में व्यवधान होता है। इस तरह की चर्चित घटनाओं में सस्ती लोकप्रियता पाने मौके वारदात राजनेताओं का जमघट भी देखने को मिलता है। वैसे प्रशासन के द्वारा सामान्य लोगों की भीड़ को तितर-बितर कर दिया जाता है लेकिन वहीं सत्ता में बैठे हुए लोगों की अनावश्यक उपस्थित देखने को मिलती है जिसके चलते बचाव दल का काम प्रभावित होता है। इस तरह की दुर्घटनाओं को पब्लिसिटी आइटम बनाने से राजनेताओं को बाज़ आना चाहिए। बोरवेल में बच्चों के गिरने वाले मामलों की रोकथाम के लिए कलेक्टर रीवा प्रतिभा पाल के द्वारा काफी दिनों तक मुहिम चलाई गई थी। यह अच्छी बात है।
श्री खरे ने कहा कि सरकार ऑपरेशन रेस्क्यू पर भारी भरकम राशि खर्च करती है लेकिन संभावित दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कहीं कोई ठोस व्यवस्था नजर नहीं आती। पिछले कुछ माह के अंदर बीहर नदी में डूबने से कई बच्चों की मौतें काफी चिंताजनक बात है। दुर्घटनाओं के इंतजार जैसी बात भी नहीं होना चाहिए। नदियों के खतरनाक डूब स्थान पर गोताखोर बचाव दल की व्यवस्था हमेशा उपलब्ध होना चाहिए। इस तरह की दुर्घटनाओं की प्रशासनिक जवाबदेही तय होना चाहिए।