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एक बार फिर औपचारिकता तक सीमित न रह जाए वृक्षारोपण अभियान ?, पेड़ लग रहे हर साल, केवल अफसर हो रहे मालामाल

पिछले 10 सालों के भीतर लग गए 5 करोड़ से ज्यादा के पेड़, अभियान बना कमाई का जरिया
फलदार और छायादार पेड़ लगाने से होती है परहेज, केवल औपचारिकता निभाने की कवायद
क्लीन रीवा ग्रीन रीवा के नाम पर चल रहा मजाक का दौर, लगने के 15 दिन बाद ही पेड़ हो जाते हैं लापता

अनिल त्रिपाठी, रीवा

शहर को हरा भरा एवं सुरक्षित पर्यावरण रखने के दृष्टिकोण से हर साल वृक्षारोपण का एक बड़ा अभियान चलाया जाता है लेकिन इस अभियान की सार्थकता कितनी है यह समझ से परे है। अलबत्ता वृक्षारोपण के नाम पर हर साल लाखों का वारा न्यारा हो रहा है। पेड़ लगाए तो जाते हैं लेकिन पेड़ों की देखरेख न होने के चक्कर में वह पेड़ कुछ ही दिन बाद खत्म हो जाते हैं। वर्तमान में एक सरकारी अभियान चलाया जा रहा है जिसका नाम मां के नाम पर एक पेड़ रखा गया है, इस अभियान के नाम पर जगह-जगह अधिकारियों द्वारा पेड़ लगवा कर फोटो खिंचवाई जा रही है। बीते सालों की तर्ज पर एक बार फिर सरकारी पैसे से रीवा को हरा भरा किए जाने का क्रम चलाया जा रहा है।
सच्चाई यह है कि पिछले एक दशक के दौरान जितने पेड़ लगाए गए और अगर उनकी गिनती कराई जाए तो वह संख्या लाखों में आएगी, अगर 10 फ़ीसदी पेड़ भी बच जाते तो आज अपना रीवा शहर चारों ओर हरियाली से ही ओत प्रोत होता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
हम रीवा शहर की बात कर रहे हैं, चोरहटा से लेकर रत हरा तक ही अकेले प्रतिवर्ष वृक्षारोपण का क्रम वन विभाग के मार्फत चलाया जाता है। लेकिन यह है सिर्फ कागजों तक ही सिमटा नजर आता है। कोई भी व्यक्ति अगर इस 12 किलोमीटर परिक्षेत्र का भ्रमण कर ले तो पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। खास बात यह है कि हर साल वृक्षारोपण के नाम पर एक अतिरिक्त बजट आवंटित होता है यह 20 से 25 लाइन की एक रिपोर्टिंग चाहिए यह जो एक मां के नाम पर वृक्षारोपण मां के नाम पर एक पेड़ लगाने का इस समय नाटक चल रहा है तो यह नाटक तो पिछले 10 सालों से चल रहा है हर साल वृक्षारोपण का नाटक चलता है तो 10 साल से लगातार केवल 10 साल की पर बात कर रहा हूं 10 साल में 5 से 7 लाख लगाए गए अगर 50000 पेड़ भी बच जाते तो आजद्ध रीवा शहर हमारा हर भारत और पर्यावरण सुरक्षित हो जाता और छायादार पेड़ तो लगाना भूल चुके हैं तो इसके सुरक्षा के लिए भी कौन जिम्मेदार है। सरकार ने जो अभियान चलाया है वह प्रशंसा योग्य तो है लेकिन इसके बाद जो स्थितियां स्थानीय स्तर पर निर्मित हो रही है उसे पर गंभीरता के साथ विचार करने की आवश्यकता है। लाडली पथ मार्ग यानी की टीआरएस कॉलेज के बगल से जयंती कुंज मार्ग पर एक बार फिर वन विभाग ने वृक्षारोपण कराया है। यहां खास बात यह है कि यह वृक्षारोपण फॉरेस्ट की गाइडलाइन पर हुआ। लेकिन जिस प्रकार वृक्षारोपण की स्थितिया देखने को मिल रही हैं, उसे देखकर सामान्य व्यक्ति को भी हंसी आ रही है। एक फलदार या छायादार पेड़ को लगाने के लिए और उसके बगल में दूसरे पेड़ को लगाने के लिए बीच में कम से कम 10 से 12 फीट की दूरी होना चाहिए हर विशेषज्ञ यही कहता है। लेकिन खाना पूर्ति के लिए अफसर ने चार-चार, पांच-पांच फीट में ही पेड़ लगवा कर वाह वाही लूट ली है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष परीक्षा रोपण के नाम पर एक अतिरिक्त बजट आता है और एक महीने के भीतर ही वह बजट पूरी तरह से खत्म कर दिया जाता है। पेड़ लगवाने और पेड़ की सुरक्षा के नाम पर प्रति पेड़ के हिसाब से बजट का आवंटन होता है। लेकिन सच्चाई यह है कि ना पेड़ तैयार हो पाते, न ही उन पेड़ों की सुरक्षा हो पाती। परिणाम यह होता है कि केवल बजट खत्म होता है और सरकारी धनराशि का अपव्यय होता है। पेड़ लगाने के नाम पर भी एक बड़ा खेला लंबे समय से हो रहा है। अगर पेड़ लगाए जाते हैं 100, तो बिल बनता है 500 का। इसके लिए अतिरिक्त बजट लेने के लिए भोपाल में खासी मारामारी मचती है। यानी कि मामला रीवा से लेकर भोपाल तक चलता है।
होना यह चाहिए ….
इस मामले में लोगों का कहना यह है कि वृक्षारोपण स्वप्रेरणा पर होना चाहिए और जो भी व्यक्ति पेड़ लगाए उसकी जिम्मेदारी सुरक्षा की भी होनी चाहिए। इसमें खास बात यह है कि कोई भी पेड़ तीन से चार साल में इस स्थिति में पहुंच जाता है कि उसे खुर्द मुर्द नहीं किया जा सकता। जब तक इस दिशा में पहल नहीं होगी तब तक वृक्षारोपण का अभियान चलाने का कोई मतलब नहीं रहेगा। जिस प्रकार की स्थितियां चल रही है उसे अपना रीवा शहर कभी ग्रीन रीवा भी नहीं बन पाएगा।

जब तक सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं तब तक पेड़ लगाने का कोई मतलब नहीं ?
पिछले 10 सालों की जो स्थितियां देखने को मिली है उसके अनुसार पेड़ तो लग जाते हैं लेकिन कुछ दिन बाद ही टी गार्ड समेत खत्म हो जाते हैं। निपानिया चौराहे से लेकर मुकुंदपुर के बीच पेड़ लगाए जाने का सिलसिला शुरू हुआ था, कुछ छायादार पेड़ तो अपनी किस्मत से तैयार हो गए लेकिन जिस प्रकार की संख्या में पेड़ लगाए गए थे वह मौजूद नहीं है। चोरहटा से रत हरा तक कितने पेड़ लगाए गए और कितने बचे, यह खुद ही देखा जा सकता है। बड़ी पुल से लेकर ए जी कॉलेज मार्ग में व्यापक पैमाने पर वृक्षारोपण किया गया था लेकिन वहां अब ना एक पेड़ है और न एक ही ट्री गार्ड। सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी सुरक्षा के लिए कोई व्यापक प्रबंध किए नहीं गए हैं लिहाजा सब कुछ हवा हवाई में चल रहा था।

हकीकत में सरकार वृक्ष लगाकर उन्हें बचाए : शिव सिंह
केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार ने पूरे देश में वृक्ष लगाने का अभियान चला रखा है प्रधानमंत्री ने एक वृक्ष मां के नाम लगाने का ऐलान किया है वहीं मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने पुराने नारे के साथ कहा एक वृक्ष 10 पुत्र समान यही सिलसिला पूरे प्रदेश में बीजेपी सरकार ने चला रखा है, जिसको लेकर संयुक्त किसान मोर्चे के संयोजक शिव सिंह ने कहा कि हकीकत में सरकार वृक्ष लगाकर उन्हें बचाए बार-बार नौटंकी न करे ।उन्होंने कहा कि वह विगत 15 वर्षों से लगातार वृक्षारोपण पर निगरानी कर रहे हैं, सरकार प्रत्येक वर्ष हजारों वृक्ष लगवाकर करोड़ों रुपए खर्च करती है और फिर उन्हीं वृक्षों को विकास के नाम पर कटवा देती है , ऐसे सैकड़ो उदाहरण मेरे पास हैं तथा हाईवे के किनारे जो वृक्ष सडक़ चौड़ीकरण में काटे जाते हैं उनकी गाइडलाइन यह है कि एक वृक्ष के बदले उसी प्रजाति के 10 वृक्ष लगाए जाएंगे और वृक्ष का रूप लेने तक उनकी परवरिश होगी। लेकिन आज कहीं भी उस एग्रीमेंट का पालन नहीं हो रहा है। इसलिए सरकार के लोगों से मेरी अपील है कि मां के नाम वृक्ष जरूर लगाए , उनकी परवरिश करें और दोबारा ऐसी हरकत न करें कि मां के नाम पर लगाए गए वृक्ष का फिर से कत्लेआम करें।

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