शिवेंद्र तिवारी

जियत न देय मांड
मरे खबावय खांड
रीवा में स्व. श्रीनिवास तिवारी जी की प्रतिमा स्थापना को लेकर विवाद है.. सरकार पर इसमें अड़ंगा लगाने का आरोप है और श्रीनिवास तिवारी समर्थकों क़े निशाने पर सीधे डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ला है. लोग उनके और सरकार क़े रवैये की निंदा कर रहे हैं. इनमें अजय सिंह राहुल भी शामिल हैं जो श्रीनिवास तिवारी क़े जीवित्त रहते उनकी राजनीतिक जड़ों में मट्ठा डालने में कभी पीछे नहीं रहे.. अजय सिंह क़े पिता अर्जुन सिंह और श्रीनिवास तिवारी क़े क्या रिश्ते रहे किसी को बताने की जरूरत नहीं.. कैसे अस्सी में सीएम रहते अर्जुन सिंह ने श्रीनिवास तिवारी को अपमानित करने की कोशिश की जिसके चलते उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा..कैसे 1985 में उनकी टिकट काट दी गई.. 1990 में ज़ब बो रीवा से लोकसभा चुनाब लड़े तो उन्हें हराने अपने समर्थकों को बसपा में वोट डालने की अपील की गई.. खैर दाऊ और दादा बराबरी से एक दूसरे पर घात -प्रतिघात करते रहे.
अर्जुन सिंह की चुनावी राजनीति क़े अंत और विंध्य से पलायन में श्रीनिवास तिवारी का योगदान भी भुलाया नहीं जा सकता. लेकिन अजय सिंह तो उम्र में उनके पुत्र से भी छोटे थे.. उन्होंने श्रीनिवास तिवारी को अपमानित करने में कोई कोर कसर छोडी क्या.?. चुनाव अभियान समिति क़े अध्यक्ष बने तो परिवर्तन यात्रा निकाली.. रीवा जिले में चुन -चुन कर श्रीनिवास तिवारी क़े विरोधियों को प्रभारी बनाया गया.. रीवा जिले क़े किसी कार्यक्रम में श्रीनिवास तिवारी को मंच पर बैठने की जगह तक न मिली.. उनका उपहास उड़ाया गया.. एक बार तो अख़बारों में बयान जारी कर उनके जन्मोत्सव का मजाक उड़ाया गया… कहा गया कश्मीर में बाढ़ आई है कुछ लोग जन्मोत्सव मना रहे.. श्रीनिवास तिवारी क़े पुत्र सुंदरलाल तिवारी से मतभेद हुए तो वो अजय सिंह क़े खास हो गए और बाद में सुंदरलाल तिवारी क़े पुत्र सिद्धार्थ तिवारी को किसकी वजह से कांग्रेस छोड़नी पड़ी ये भी शायद बताने लायक नहीं है. अलम ये था कि अगर कोई श्रीनिवास तिवारी से जुड़ गया.. उनका सम्मान करता था तो उसे कांग्रेसी हीं नहीं माना जाता था.. स्व. धर्मेश चतुर्वेदी इसके उदाहरण है. उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली.. किसान कांग्रेस क़े बैनर तले श्रीनिवास तिवारी क़े मुख्य अतिथ्य में एक बड़ा कार्रक्रम आयोजित किया तो जिला कांग्रेस कमेटी सतना क़े प्रवक्ता ने प्रेस नोट जारी कर दिया कि ये कांग्रेस का कार्यक्रम हीं नहीं था.. आलम ये था कि ज़ब श्रीनिवास तिवारी जी दिवंगत हुए तो सतना जिले क़े एक पूर्व विधानसभा प्रत्याशी प्रेस नोट में अकेले उनका नाम न लिख सके.. लिखा विधाता ने पहले हमसे दाऊ साहब को छीना और अब दादा को ले गए..जबकि दाऊ सात साल पहले स्वर्गवासी हुए थे.डर था डायरेक्ट दादा को श्रद्धांजलि दे देंगे तो भइया नाराज हो जायेंगे.. ऐसे लोग अब दादा क़े प्रति श्रद्धा दिखा रहे… इसी को कहते है… जियत न देय मांड.. मरे खबावय खांड….