✍️शिवेंद्र तिवारी

सिरमौर थाने के दुलाहरा गांव था मृतक आशीष
पहले तो कंपनी और ठेकेदार ने परिवार से बातचीत की, बाद में संपर्क करना बंद कर दिया परिजनों का आरोप, भरोसा सेवा समित टीम सहित दुलाहरा राजगढ़ एवं खैरहन के सरपंच मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिवार से मुलाकात कर उन्हें हरसंभव सहयोग देने का भरोसा दिलाया।
सिरमौर थाने के दुलाहरा गांव में उस वक्त मातम फैल गया जब दुलाहरा गांव का 16 वर्षीय आशीष कोल का गांव शव पहुंचा, नासिक के कागज बनाने वाली फैक्ट्री के मशीन मे फंस जाने से दर्दनाक मौत हो गई परिजनों का आरोप है पहले तो कंपनी और ठेकेदार ने परिवार से बातचीत की बाद में संपर्क करना बंद कर दिया इसके बाद न्याय की गुहार लगाई है वहीं जानकारी के बाद स्थानीय भरोसा सेवा समित टीम सहित दुलाहरा राजगढ़ एवं खैरहन के सरपंच मौके पर पहुंचे और पीड़ित परिवार से मुलाकात कर उन्हें हरसंभव सहयोग देने का भरोसा दिलाया बताया जा रहा है कि दुलाहरा वार्ड क्रमांक 3, गांव कैमहा प्लाट के निवासी आशीष कोल, पिता राजमणि कोल 16 वर्षीय का 3 सितंबर 2025 को नासिक की एक कागज बनाने वाली फैक्ट्री में काम करते समय मशीन मे फस कर दर्दनाक मौत हो गई आशीष के परिवार की आर्थिक स्थिति अत्यंत कमजोर है। उसके माता-पिता पुणे में मज़दूरी करते हैं। आशीष अपने दो छोटे भाई-बहनों (अर्चना, उम्र 12 वर्ष और दीपक, उम्र 8 वर्ष) में सबसे बड़ा था और हाल ही में अपने मामा के साथ नासिक गया था।नासिक की जिस फैक्ट्री में आशीष काम कर रहा था, वहाँ मशीन चलाते समय दोपहर 3 बजे वह मशीन में फँस गया और मौके पर ही उसकी मृत्यु हो गई। इस घटना से शासन प्रशासन को सबक लेना चाहिए इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों।एक तो 16 साल का नाबालिक बच्चा और पढ़ने की उम्र नौकरी और हादसा हो जाना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि हमारी व्यवस्था पर सवाल है। जैसा कि पहले बताया गया था, 3 सितंबर 2025 को नासिक की एक निजी पेपर फैक्ट्री में काम करते समय मशीन में फंसने से आशीष की मौके पर ही मौत हो गई थी। कंपनी प्रबंधन ने उन्हें अस्पताल पहुँचाया, जहाँ डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। माता-पिता के पहुँचने के बाद पोस्टमार्टम भी हुआ, लेकिन आज तक परिवार को एफ आई आर की कॉपी उपलब्ध नहीं कराई गई है। 5 सितंबर की रात लगभग 8 बजे नासिक से एंबुलेंस के माध्यम से आशीष का शव कंपनी द्वारा गांव भेज दिया गया घटना से आक्रोशित ग्रामीणों ने पहले एंबुलेंस को रोक लिया फिर संस्था की टीम के बातचीत के बाद बड़ी मुश्किल से जाने दिया।शव खोलने पर साफ़ दिखा कि आशीष के सिर और सीने पर गहरी चोटें थीं, जिनसे उनकी तत्काल मृत्यु हो गई होगी। शव देखने के बाद परिवार और ग्रामीण गहरे दुख में डूब गए।पिता अपने जिगर के टुकड़े की बॉडी देख कुछ बोल ही नही रहे थे बस दुख मे डूबे खामोश एक किनारे बैठे रहे माँ रोते हुए बार-बार कह रही थीं अब इस दुख के साथ कैसे जियेंगे जबकि छोटी बहन अर्चना (12 वर्ष), छोटा भाई दीपक (8 वर्ष) और दादी भी बेसुध होकर रो रही थी आशीष परिवार का सबसे बड़ा बेटा था। परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण व अपने माता पिता के साथ पूना मे रहता था दो महीने पहले ही मामा के साथ नासिक गया था जहा उसकी मौत हो गई। जिस उम्र में बच्चों के हाथों में किताबें और सपने होने चाहिए, उस उम्र में मज़दूरी और खतरनाक काम करना पड़ता है एक मज़दूर आदिवासी परिवार को न्याय मिल सके और भविष्य में ऐसी घटनाएँ दोबारा न हों।