4 से 6 घंटे तक लाइन में खड़े रहने के बाद आता है नंबर, कई बार वह भी नहीं
प्रशासन दावे कर रहा है सुविधाओं की, लेकिन जमीनी हकीकत उससे कोसों दूर
विंध्य भारत, रीवा
जिले में यूरिया खाद की किल्लत लगातार बनी हुई है। जिले के हर इलाके के साथ तराई अंचल तक किसान खाद पाने के लिए घंटों लाइन में खड़े होने को मजबूर हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। प्रशासन भले ही रैक पहुंचने और खाद वितरण के दावे कर रहा हो, लेकिन जमीनी हालात उसके विपरीत तस्वीर पेश कर रहे हैं।
इस बीच जो जानकारी मिली है उसके अनुसार करहिया मंडी में इस बार यूरिया नहीं पहुंची। यहां सिर्फ डीएपी मिल रही है। इसके बाद भी यहां किसानों की भीड़ कम नहीं हो रही है। किसान यूरिया मिलने की लालच में करहिया मंडी पहुंच रहे है। फिर भी उन्हें निराशा मिली। यूरिया करहिया मंडी तक पहुंची ही नहीं। थक हार कर किसानों ने फिर डीएपी ही उठा लिया। अब किसान यूरिया के लिए दौड़ते दौड़ते थक चुका है। प्रशासन इधर से उधर नचा रहा है। जहां हजारों मैट्रिक टन की जरूरत हैं। वहां मूत्र भर यूरिया मंगाया जा रहा है। कभी डबल लॉक में बांटते हैं तो कभी सोसायटी भेजी जाती है। पहले डबल लॉक में बांटा गया। अब सोसायटी खाद भेज दी गई। नकल खाद लेने वालों को अब यूरिया सोसायटी से नहीं मिल रही है। प्रशासन की इसी गोलमोल व्यवस्था में किसान फुटबाल बन कर रह गया है। इधर उधर सिर्फ दौड़ रहा है और हाथ में कुछ भी नहीं आर हा है। किसानों को भले ही प्रशासन ने सोसायटी में खाद के वितरण की बात कह रहा लेकिन अधिकांश जगहों पर अभी वितरण ही नहीं शुरू हुआ। गढ़ में मंगलवार को लंबी लाइन सहकारी समिति के बाहर लगी थी। यहां खाद अब तक पहुंची ही नहीं है। परिवहन और भंडारण की व्यवस्था काफी धीमी चल रही है। किसान पास सिवाय इंतजार और परेशानी के कुछ भी नहीं है। किसानों की फसलें बिना खाद के खेतों में खड़ी हैं। बेहतर उत्पादन की आस अब किसान छोड़ते जा रहे हैं साथ ही यूरिया मिलने की भी उम्मीद अब छोडऩा शुरू कर दिए हैं। प्रशासनिक अव्यवस्था और दूरदिर्शता ने किसानों को इतना लाचार बना दिया कि उन्हें खाद के शिवाय कुछ नजर ही नहीं आ रहा है। जिस लोग दौड़ाते हैं, उधर ही किसान खाद के लिए दौड़ लगा देता है। कार्यालयों में सिर्फ बैठके हो रही हैं, लेकिन खाद की उपलब्धता सुनिश्चित कोई नहीं करा पा रहा है।
उल्लेखनीय है कि 23 अगस्त को रीवा रेलवे स्टेशन पर यूरिया खाद की 1300 टन की रैक लगने की सूचना दी गई थी। इस संबंध में जिला प्रबंधक मार्केटिंग फेडरेशन शिखा सिंह वर्मा ने जानकारी दी थी कि यह रैक रीवा और मऊगंज जिलों की 75 सहकारी समितियों को आवंटित की जाएगी। अधिकारियों का दावा था कि वितरण सहकारी समितियों के माध्यम से पारदर्शिता से किया जाएगा और खाद डबल लॉक सेंटर पर नहीं भेजी जाएगी। लेकिन इन दावों के बावजूद सेमरिया , गढ़, त्योंथर, मनगवां, गोविंदगढ़ , सिरमौर और आसपास के इलाकों में खाद की किल्लत कम नहीं हुई है। स्थानीय किसानों ने बताया कि कई-कई घंटों तक समितियों के बाहर खड़े रहने के बाद भी उन्हें खाद नहीं मिल रही।
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाते हुए कहा है कि कई बार ट्रकों में खाद लाकर फोटो खिंचवाई जाती है, लेकिन वह खाद कहां जाती है, इसकी जानकारी किसी को नहीं होती।
जमकर हो रही कालाबाजारी, दुकानों में महंगे दाम
किसानों का आरोप है कि खाद की जमाखोरी कर कुछ व्यापारी खुले बाजार में ऊंचे दामों पर यूरिया बेच रहे हैं। सरकारी रेट से ज्यादा कीमत वसूली जा रही है, जिससे गरीब और सीमांत किसान सबसे ज़्यादा प्रभावित हो रहे हैं। प्रशासन के पास लगातार शिकायतें पहुंच रही हैं, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
खरीफ फसलों पर असर की आशंका
खाद समय पर न मिलने के कारण किसानों को खरीफ सीजन में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। खेतों में फसलें खड़ी हैं, लेकिन पोषक तत्वों की कमी के कारण उनका विकास रुक गया है। यदि जल्द व्यवस्था नहीं सुधरी तो इसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ सकता है। किसान संगठनों ने मांग की है कि खाद वितरण पर निगरानी के लिए विशेष दल बनाए जाएं और कालाबाजारी पर सख्त कार्रवाई हो।
किसान सुब्रतमणि ने उठाए प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष किसान सुब्रतमणि त्रिपाठी ने प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल खड़े किए हैं। उनका कहना है कि प्रशासन पहले यह पता करे कि कहां कितनी खाद पहुंची। कितना वितरण हुआ। किसानों को कितनी खाद चाहिए। इसकी जानकारी जुटाई जाए। इसके बाद किसानों की जरूरतों के हिसाब से खाद की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाए। किसान खाद के लिए परेशान हैं। उन्हें खाद नहंी मिल पा रहा है। कोई भी जनप्रतिनिधि आवाज उठाने और किसानों के साथ खड़ा होने को तैयार नहीं है।