वास्तविक नाम सुदामालाल या सुदामा प्रसाद
15 दिन की जांच महीने बाद भी अधर में
सिटीरिपोर्टर,रीवा
फर्जी अनुकंपा नियुक्ति के प्रकरण में निलंबित सुदामालाल गुप्ता क्या पुन: उसी कुर्सी में वापस लौटेंगे अथवा उनके खिलाफ भी पुलिस में एफआईआर दर्ज होगी? यह सवाल इसलिये उठ रहे हैं क्योंकि अभी तक जिला शिक्षा अधिकारी की कुर्सी पर किसी पात्र को नियमित जिला शिक्षा अधिकारी के रूप में पदस्थ नहीं किया गया है। बल्कि डीपीसी विनय मिश्रा को अतिरिक्त प्रभार देकर कामचलाऊ व्यवस्था की गई है। जबकि जिला शिक्षा अधिकारी के लिये जिले के कई दावेदार लाईन में लगे हुये थे। जो रीवा से भोपाल तक कई बार यात्रा भी कर चुके हैं और वे पूरी तैयारियों के साथ गये थे। सूत्रों की माने तो उन्हें आश्वासन भी मिलता रहा किन्तु अभी तक किसी भी नाम पर मुहर नही लग पाई। इसलिये ऐसा तो नहीं है कि ऊपर अभी भी निलंबित जिला शिक्षा अधिकारी सुदामालाल ही सरकार की च्वाईस में शामिल हों। यह भी हो सकता है कि उन्हें यह भी आश्वस्त किया गया हो कि अनुकंपा नियुक्ति का ममला कुछ ठण्डा पड़ जाय उसके बाद एक बार फि पुन: वापसी के लिये विचार किया जायेगा।
अखिलेश गये कोर्ट मिला स्टे किन्तु सुदामा क्यों नहीं गये कोर्ट?
सवाल यहां यह भी है कि निलंबित योजना अधिकारी अखिलेश मिश्रा तो उच्च न्यायालय पहुच गये और वहां से स्थगन भी प्राप्त कर लिया। किन्तु सुदामालाल अभी तक कोर्ट क्यों नहीं गये। उन्हें किस बात का डर था जिसके चलते उन्हें स्थगन की संभावना क्षीण दिखाई दे रही थी। जिन बिन्दुओं पर योजना अधिकारी अखिलेख को स्थगन मिला उन बिन्दुओं में सुदामालाल को स्थगन क्यों नहीं मिल सकता था। इसके लिये राज्य शासन के दिनांक 29 सितम्बर 2014 के उस आदेश को परखना होगा जिसके उपखण्ड क्रमांक 4.7 में अनुकंपा नियुक्ति की अपात्रता के संबंध में स्पष्ट किया गया है कि पात्रता के लिये कार्यालय प्रमुख या नियोक्ता व्यक्तिश: जिम्मेदार होगा। ऐसी स्थिति में शिक्षा विभाग में अपात्र व्यक्तियों की अनुकंपा नियुक्तियों के मामले में निलंबित जिला शिक्षा अधिकारी सुदामालाल गुप्ता गाईडलाईन के अनुसार व्यक्तिश: जिम्मेदार होने के कारण सबसे प्रथम दोषी होने चाहिये। किन्तु उनका बचाव हुआ। वे पहले सभी आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने में फरियादी बने, स्वयं के आदेश से टीम गठित कर जांच टीम गठित कर जांच करवाया, फिर अपने पूरे कार्यकाल की जांच करवाया। कलेक्टर की तरफ से जब कार्रवाई का प्रतिवेदन कमिश्नर रीवा को भेजा गया तो उसमें अखिलेश मिश्रा को निलंबित करने का प्रस्ताव किया गया जबकि सुदामालाल गुप्ता से स्पष्टीकरण लिये जाने का प्रस्ताव किया गया था। इस तरह से कलेक्टर के प्रस्ताव पर भी सवाल खड़े होते हैं कि गाईड लाईन के अनुसार जहां डीईओ को व्यक्तिश: जिम्मेदार बताया गया है निलंबन की कार्रवाई या एफआईआर तो सबसे पहले दोषी डीईओ के खिलाफ होनी चाहिये थी। किन्तु यहा ंऐसा नहीं हुआ। शायद इसी तकनीकी त्रुटि को जानते समझते हुये कि कोर्ट से लाभ नहीं मिल सकता अपितु संबंधित अधिकारी भी फंस सकते हैं शायद यही कारण है कि सुदामालाल गुप्ता अभी तक कोर्ट नहीं गये। बल्कि वे विभागीय एवं सत्ता पक्ष के भीतर ही माठा घोरने में लगे हुये हैं।
वास्तविक नाम सुदामालाल है या सुदामा प्रसाद या दोनों?
निलंबित जिला शिक्षा अधिकारी सुदामालाल गुप्ता वास्तविक नाम को लेकर भी संदेश किया जा रहा है। उनका वास्तविक नाम सुदामालाल गुप्ता है या सुदामा प्रसाद गुप्ता है। कहीं सरकारी अभिलेखों में उनका नाम सुदामालाल गुप्ता देखने को मिल रहा है तो कहीं सुदामा प्रसाद। कहीं उन्होंने अपने हस्ताक्षर सुदामा प्रसाद गुप्ता जिला शिक्षा अधिकारी की पद को दर्शाते हुये किये हैं तो कहीं उन्होंने अपने हस्ताक्षर सुदामालाल गुप्ता लिखकर किये हें। जबकि किसी भी शैक्षणिक अभिलेख में एक ही नाम हो सकता है या कि वह सुदामालाल होगा अथवा सुदामा प्रसाद। दो नाम नहीं हो सकते। यदि सरकारी शैक्षणिक अभिलेखों में ऐसा है तो वह सरकार के साथ छल व धोखाधड़ी का विषय है। फिर इतने बड़े पद में पदस्थ होने वाले एवं शिक्षा विभाग जैसे विभाग में सेवा करने के बाद ऐसा है तो यह गंभीर विषय है। किन्तु यह मामला कभी इसलिये नहंी उठा क्योंकि किसी ने ध्यान नहंी दिया। किसी ने आपत्ति नहीं किया होगा। लिहाजा सुदामालाल ने सोचा होगा कि जब तक काम चल रहा है चलाया जाय। आगे देखा जायेगा। किन्तु अब नाम को लेकर भी सवाल उठता है तो सुदामालाल की परेशानी एक बार फिर बढ़ सकती है।
इधर कमिश्नर के जांच आदेश पर भी अभी तक प्रतिवेदन प्रस्तुत नहीं
संभागायुक्त बीएस जामोद ने जब पाया कि लगातार फर्जी अनुकंपा नियुक्तियों के प्रकरण मिल रहे तो उन्होंने 13 जून 2025 को अनुविभागीय अधिकारी राजस्व हुजूर वैशाली जैन आईएएस की अध्यक्षता में एक जांच टीम गठित किया था। जिसमे तीन साल में हुई अनुकंपा नियुक्तियों की जांच कर 15 दिवस में प्रतिवेदन प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। किन्तु अब एक महीना से भी अधिक बीत जाने के बाद अभी तक उस प्रतिवेदन का अता-पता नहीं है। यहां सवाल यह है कि क्या जांच टीम को सभी अनुकंपा नियुक्तियों की फाईलें प्राप्त हो चुकी हैं? यदि हां तो फिर जांच प्रतिवेदन में विलंब क्यो हो रहा है? यदि नहीं तो विभाग द्वारा किस बात को छिपाया जा रहा है जब पंचनामा के आधार पर सभी फाईलो को ताला तोडक़र प्राप्त किया जा चुका है? जांच टीम व जिला शिक्षा कार्यालय के बीच कौन सी खिचड़ी एक महीने से अधिक समय से पक रही है यह बात समझ से परे है। अभी तक जांच का आदेश देने वाले सक्षम अधिकारी संभागायुक्त ने भी जांच टीम को कोई नोटिस नहीं दिया कि विलंब क्यों हो रहा है? न ही जांच टीम की तरफ से ही कोई आपत्ति या मजबूरी संभागायुक्त को प्रेषित की गई है? इससे भी लगता है कि फर्जी अनुकंपा नियुक्ति की तीन साल वाली जांच को कहीं ठण्डे बस्ते में डालने का दबाब तो प्रशासन पर नहीं है? कहीं यह दबाब इसलिये भी तो नहंी है कि यदि तीन साल में और फर्जी मामले प्रकाश में आते है ंतो यह मामला और भी बड़ा हो सकता है। लिहाजा फिर जांच का दायर व्यापक हो सकता है। सरकार की किरकिरी हो सकती है। जो भी हो किन्तु सवाल तो है कि आखिर जांच में इतना विलंब क्यों हो रहा है?