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भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कई ऐसे खिलाड़ी हुए हैं जो कुछ समय के लिए उभरे, दिलों को जीता, पर अचानक गायब हो गए। सदगोपन रमेश भी उन्हीं में से एक नाम हैं।

©शिवेंद्र तिवारी 9179259806

Sadagopan Ramesh, India (Photo by Steve Mitchell/EMPICS via Getty Images)

भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कई ऐसे खिलाड़ी हुए हैं जो कुछ समय के लिए उभरे, दिलों को जीता, पर अचानक गायब हो गए। सदगोपन रमेश भी उन्हीं में से एक नाम हैं। एक ऐसा बल्लेबाज़ जिसने भारतीय क्रिकेट को शुरुआती 2000 के दशक में उम्मीद दी, लेकिन जिनका सफर अचानक अधूरा रह गया।

सदगोपन रमेश का जन्म 16 अक्टूबर 1975 को तमिलनाडु में हुआ। बचपन से ही उनमें क्रिकेट को लेकर जबरदस्त जुनून था। बाएं हाथ के ओपनर बल्लेबाज़ के रूप में उन्होंने घरेलू क्रिकेट में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया और जल्द ही चयनकर्ताओं की नजरों में आ गए।

1999 में जब भारतीय टीम को एक भरोसेमंद ओपनर की तलाश थी, रमेश को मौका मिला। उन्होंने 28 जनवरी 1999 को पाकिस्तान के खिलाफ चेन्नई टेस्ट में डेब्यू किया — एक ऐसा मैच जिसे भारतीय दर्शक आज भी याद करते हैं।

अपने डेब्यू टेस्ट सीरीज में ही रमेश ने 43 और 96 रन की दो पारियां खेलीं। पाकिस्तानी गेंदबाजी आक्रमण में वसीम अकरम, वकार यूनिस और शोएब अख्तर जैसे धुरंधर थे, लेकिन रमेश डटे रहे। उनकी तकनीक, धैर्य और संयम ने सबका दिल जीत लिया।

इसके बाद उन्होंने श्रीलंका, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भी उपयोगी पारियां खेलीं। रमेश का सबसे यादगार प्रदर्शन 2001 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ था। चेन्नई टेस्ट में उन्होंने पहली पारी में 61 और दूसरी में 25 रन बनाए और भारत को ऐतिहासिक जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

रमेश ने कुल 19 टेस्ट खेले और 1367 रन बनाए, जिसमें 2 शतक और 8 अर्धशतक शामिल हैं। हालांकि रमेश वनडे क्रिकेट में कभी शतक नहीं बना पाए — वनडे क्रिकेट में रमेश का उच्चतम स्कोर 82 रहा।

टीम में वीरेंद्र सहवाग जैसे आक्रामक ओपनर के आने से रमेश की जगह खतरे में पड़ गई। चयनकर्ताओं को एक तेज़तर्रार शुरुआत देने वाले ओपनर की तलाश थी और रमेश की शैली थोड़ी धीमी और पारंपरिक थी। इसके साथ ही फील्डिंग में उनकी कमजोरी भी चर्चा का विषय बनी। 2001 के बाद उन्हें भारतीय टीम से ड्रॉप कर दिया गया और दोबारा मौका नहीं मिला।

टीम से बाहर होने के बाद रमेश ने तमिलनाडु के लिए घरेलू क्रिकेट खेलना जारी रखा। लेकिन जब उन्होंने क्रिकेट से दूरी बना ली, तो उन्होंने एक नया रास्ता चुना — सिनेमा।

जी हां, सद्गोपाल रमेश ने तमिल फिल्मों में अभिनय करना शुरू किया। उन्होंने कुछ फिल्मों में मुख्य भूमिका भी निभाई। उनका फिल्मी करियर बहुत लंबा नहीं रहा, लेकिन उन्होंने साबित किया कि क्रिकेट के बाहर भी ज़िंदगी है। बाद में रमेश ने कोचिंग और क्रिकेट कमेंट्री की दुनिया में कदम रखा। आज वे युवाओं को ट्रेनिंग देने का काम करते हैं और क्रिकेट से जुड़े रहते हैं।

सदगोपन रमेश की कहानी थोड़ी अधूरी लगती है, लेकिन इसमें संघर्ष, मेहनत और आत्मसम्मान की गहराई छुपी है। उन्होंने भारतीय क्रिकेट को मुश्किल समय में स्थिरता दी, और जब उन्हें हटाया गया, तब भी उन्होंने शिकायत नहीं की, बल्कि नई दिशा में आगे बढ़े।

उनकी कहानी हर उस खिलाड़ी के लिए प्रेरणा है, जो छोटे मौके में बड़ी छाप छोड़ना चाहता है।

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