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एक थी फूलन पार्ट -1जब अबला बन गई वीरांगना

शिवेंद्र तिवारी 9179259806

देवी का जन्म 10 अगस्त 1963 को जालौन जिले में यमुना और जोंधर नदी के तट से लगे गोरहा पुरवा गांव में बेहद ही गरीब परिवार में हुआ.परिवार के पास कुल तीन बीघा ज़मीन थी. इस खेती से सालभर के खाने का इंतजाम तक ना हो पाता था..परिवार को सूम की रस्सी बटकर और बेचकर अपना गुजारा करना पड़ता है। चार भाइयों के बीच फूलन का इकलौता भाई था.. सिर्फ वही पढ़ाई करता था.. एक बड़ी बहन थी दो फूलन से छोटी..
फूलन जब 11 साल की थी तभी उसकी शादी महेशपुर में रहनेवाले पुत्तीलाल से हो गई थी। मल्लाहों में शादियों जल्दी कर दी जाती थी.।पुत्तीलाल की यह दूसरी शादी थी तथा उस समय उसकी उम्र 30 साल के आसपास थी। फूलन की शादी के समय उसके पिता देवीदीन ने शर्त रखी थी कि लड़की हलकी है, अतः हम तीन साल तक गौना नहीं करेंगे। लेकिन शादी के तीन महीने बाद ही पुत्तीलाल यह कहकर फूलन को ले गया कि घर में रोटी बनानेवाला कोई नहीं है। फूलन शादी के बाद दो-चार बार मायके आई तो सही, पर उसके ससुरालवालों ने उसे यहाँ रहने नहीं दिया। माँ की बीमारी की खबर सुनकर एक बार फूलन पति की सहमति के विरुद्ध बिना किसी को बताए अपने मायके चली आई। इस पर पुत्तीलाल अपने जेवर लेने आ पहुंचा। पिता देवीदीन ने फूलन को भी साथ भेजना चाहा, पर पुत्तीलाल तैयार नहीं हुआ। तब से फूलन अपने पिता के पास ही रही। उधर पुत्तीलाल ने एक दूसरी लड़की से शादी कर ली।फूलन की माँ ने चाहा कि फूलन की दूसरी शादी कर दें। पर फूलन ने इसका विरोध किया-‘जाऊँगी तो अपने घर जाऊँगी।’ मी-बाप ने जबर्दस्ती करनी चाही तो फूलन रोकर गाँव से भागी कि मैं दूसरी शादी नहीं करूंगी। इस पर गाँववालों ने पंचायत की। फूलन को उसके चाचा गुरुदयाल के घर रख दिया जहाँ वह चार महीने रही और उसके बाद वह पुनः पुत्तीलाल के यहाँ गई। पर फूलन को वहां शान्ति नहीं मिली। सौतन के कारण उसे मार भी खानी पड़ती। पुत्तीलाल फूलन को उसके मायके छोड़ गया..
माता -पिता पहले ही घर से निकाल चुके थे. चाचा के लड़के ने फूलन को घर में नहीं घुसने दिया। पुत्तीलाल फूलन को छोड़कर धोखे से भाग गया.


फूलन के परिवार के साथ एक और मजाक हुआ था। फूलन का पिता देवीदीन मंदबुद्धि किस्म का था.तथा उसका भाई गुरुदयाल चालाक आदमी था.फलतः गुरुदयाल के पास चालीस बीधे से ज्यादा ज़मीन थी.जबकि फूलन के पिता देवीदीन के पास सिर्फ तीन बीधे। फूलन निडर लड़की थी। समझ आने पर उसे यह अन्याय सहन नहीं हुआ। वह जगह-जगह इसके विरुद्ध आवाज उठाने लगी। फूलन के चाचा के लड़के मैयादीन को फूलन की इन हरकतों से डर लगा कि कहीं ज़मीन के बँटवारे का सवाल फिर न खड़ा हो जाए। इसलिए उसने फूलन के खिलाफ साजिशे रचनी शुरू कर दी.
उस समय तक फूलन 15 वर्ष की हो चुकी थी। चूंकि यह ससुराल से अलग थी.. गरीब भी, इसलिए गाँव के शोहदों ने उसे अपने जाल में फँसाना चाहा। गाँव के सरपंच बृजबिहारी के लड़के ने फूलन को छेड़ा तो फूलन उससे झगड़ बैठी। सरपंच के लड़के ने महिपाल नामके गुंडे के लड़के को बुलाकर उससे फूलन को एक जूता लगवा दिया। तंग आकर फूलन अपनी बुआ की लड़की के यहाँ चली गई।
इसी बीच फूलन के गांव में डकैती पड़ गई.जिसमें डकैतों ने फूलन के चचेरे भाई मैयादीन का घर भी लूटा। फूलन इससे एक दिन पहले सरपंच वाले झगड़े के कारण बुजा के यहाँ जा चुकी थी। लेकिन मैयादीन ने पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि उसके यहाँ डकैती फूलन ने डलवाई है-दोनों परिवारों में जमीन को लेकर मुकदमा भी चल रहा है। दारोगा ने जब फूलन के बारे में पूछताछ की तो उसकी माँ ने पुलिस को बता दिया कि लड़की गुस्से में अपनी फुफेरी बहन के घर टेंगुआ चली गई है। उधर फूलन को टेंगुआ में किसी ने गुमनाम चिट्ठी डाली कि उसके माँ-बाप को पुलिस मार रही है। फूलन ने कहा कि जब मेरी वजह से मार रहे हैं तब में गाँव जाती हूँ। टेंगुआ के एक व्यक्ति के साथ वह अपने गाँव वापस आ रही थी कि पुलिस ने उसे पकड़कर कालपी थाने में बन्द कर दिया। फूलन तीन दिन थाने में बन्द रही, फिर उसे जेल भेज दिया गया.जेल में फूलन 20-22 दिन रही। वहाँ वह लगातार रोती रहती थी।बाद में उसके पिता ने इलाके के एक जमींदार से आरजू मिन्नत कर फूलन की जमानत कराई..लेकिन इस जमीदार के लड़कों ने इसकी कीमत फूलन की इज्जत से वसूली.. 15 साल की बेबस फूलन हर जगह लूट रही थी.
फूलन अपने घर तो आ गई, पर चैन नहीं था। अदालत की तारीख पर वह अपने एकमात्र छोटे भाई के साथ उरई जाती थी। इस बीच उसे काफी तंग किया गया और उसके अपहरण की कोशिश भी हुई। पुलिस भी लगातार घर आकर फूलन और उसके परिवार को परेशान करती कि वह डाकुओं को खाना खिलाती है
उधर गांव के शोहदे फूलन को लगातार घेरने की कोशिश में लगे रहते थे.. आसपास के गांव के लफंगे भी उसे परेशा करने लगे.एक दिन जमुना पार खरका गाँव के दो लड़के आए और उसे देखकर हंसने लगे। फूलन ने मना किया तो वे रात में आने की धमकी देकर चले गए। फूलन को शक हुआ कि यह शायद डकैत विक्रम मल्लाह और बाबू गूजर के गिरोह के लोग हैं..
फूलन दरख्वास्त लेकर कालपी थाने गई। यहाँ उसने दारोगा से कहा कि ये उसे बचा लें, अन्यथा या तो आज रात उसे विक्रम उठा ले जाएगा अथवा मार डालेगा।
दारोगा ने उसे आश्वासन दिया कि वह कुछ सिपाही रात के लिए भेज देगा। पर उसने कुछ किया नहीं। सावन की दूज की रात थी। पानी बरस रहा था। जोंधर और जमुना, दोनों नदियों में बाढ़ आई हुई थी। फूलन के घर के सब लोग रोटी खाकर लेट चुके थे। अचानक दरवाजे पर भड़भड़ाहट हुई। फूलन व उसका भाई दोनों एक कमरे में लेटे थे। बरसात से भीगा जर्जर दरवाजा एक धक्के से खुल गया। पांच बन्दूकधारी घर घुसे.ये फूलन को लेने आए थे। इनमें विक्रम और बाबू गूजर भी थे। उन पाँचों से फूलन की माँ घिधियाने लगी। पैरों में पड़ गई..विक्रम मल्लाह ने फूलन से कहा, ‘या तो सीधे चलो, नहीं तो थप्पड़ मारकर ले जाऐंगे।’ फूलन के पिता को उसने पेड़ से बाँधने का आदेश दिया। बाबू गूजर ने कहा कि इसके भाई को भी ले चलो। 10 साल के अपने उस एकमात्र भाई से फूलन बहुत प्यार करती थी। अब वह बोली, ‘पहले भाई और पिता को छोड़ो। हम चलते हैं। हमें रांधो, पकाओ, खाओ भाई को छोड़ दो.’ फूलन को डकैत लोग ले गए वैसे ही जैसे कसाई बकरी ले जाता है..
उसे डकैत बाबू गूजर ने वहशियाने ढंग से अपने कब्जे में ले लिया। फूलन के अपहरण के दूसरे दिन जब उसकी माँ थाने में रिपोर्ट लिखाने गई तो दारोगा ने कहा, ‘तुम भी मल्लाह, वह भी मल्लाह। ले गया तो ले जाने दो। क्या वह उसे रखेगा, महीना-दो महीना बाद छोड़ देगा।’ पुलिस ने फूलन के गायब होने की रिपोर्ट नहीं लिखी और उल्टा उसे ही डकैत घोषित कर दिया.पुलिस लगातार उसके घर आती उसकी माँ को मारती है। सारा सामान कुर्क कर लिया गया.
अगर पढ़ना चाहेंगे तो बताएंगे फूलन देवी की पूरी कहानी.. कैसे एक बेबस लड़की ने थामी बंदूक और बेह मई में लगा दी लाशों की ढ़ेरी…

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