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“मऊगंज में नशे का नेटवर्क: थाना प्रभारी चुप, गांव-गांव में ज़हर का कारोबार!”

✍️शिवेंद्र तिवारी 9179259806

मऊगंज, मध्यप्रदेश। मऊगंज जिले के हालात आज ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां सिस्टम की चुप्पी सवाल बन चुकी है और अपराधियों की आवाज़ गूंज बन गई है। जिले के हर गांव में नशे का कारोबार इस कदर फल-फूल रहा है कि मानो यह इलाका अपराधियों के लिए स्वर्ग और आम नागरिकों के लिए नर्क बन गया हो।
सूत्रों के मुताबिक, कोरेक्स सिरप, नशीली गोलियां और शराब की तस्करी अब इतनी खुलेआम हो रही है कि हर छोटे-बड़े गांव में इसकी आपूर्ति किसी किराना सामान की तरह हो रही है। मेडिकल दुकानों से लेकर गाड़ियों के ज़रिए हर जगह नशा परोसा जा रहा है – और हैरानी की बात यह है कि इसकी जानकारी थाना प्रभारी से लेकर वरिष्ठ अफसरों तक को है, फिर भी कार्रवाई के नाम पर सन्नाटा पसरा हुआ है। यह नशे का जाल केवल मुनाफे की वजह से नहीं चल रहा, बल्कि पुलिस की ‘मौन सहमति’ और भारी लेन-देन इसके पीछे सबसे बड़ा कारण बन चुके हैं। मऊगंज जिले के हर थाने में थाना प्रभारियों की ‘कमाई का खेल’ चल रहा है। सूत्र बताते हैं कि हर माह लाखों की ‘सेटिंग’ होती है – और इसी के बदले अपराधियों को छूट दी जाती है कि वे गांव-गांव ज़हर बेचें, हथियार बांटें, और कानून को जेब में रख लें। जिले में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब गांवों में हथियारों की मौजूदगी सामान्य बात हो गई है। कोई नहीं जानता कि कब, कहां, किसकी जान चली जाए – नशे और हथियारों की इस गठजोड़ ने मऊगंज को अपराध का मैदान बना दिया है। आश्चर्य की बात यह है कि सरकारें सिर्फ मंचों पर भाषण देती हैं, “नशा मुक्त भारत” और “बेटी बचाओ” जैसे नारों के पोस्टर लगते हैं, लेकिन जमीन पर हालात कुछ और ही बयां करते हैं। विपक्ष भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है, शायद उन्हें भी राजनीति की ‘डीलिंग टेबल’ पर सब कुछ ठीक-ठाक लग रहा है।

अब सवाल ये है – जब हर गांव में नशा, हथियार और अवैध शराब की खेप पुलिस की जानकारी में हो, फिर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही?
क्या मऊगंज अब ‘माफियागंज’ बन चुका है?
क्या कानून अब लेन-देन की मोहताज हो चुकी है?

सरकार और पुलिस प्रशासन को यह समझना होगा कि सिर्फ भाषणों से नहीं, जमीनी कार्रवाई से ही जनता का भरोसा जीता जाता है। मऊगंज की जनता अब सवाल कर रही है – थानेदार मौन क्यों है? और सरकार चुप क्यों है?

विंध्य भारत

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