शिवेंद्र तिवारी 9179259806

कभी-कभी सबसे खूबसूरत मुस्कान के पीछे सबसे ज़्यादा दर्द छिपा होता है। माइकल क्लार्क, ऑस्ट्रेलिया का वह सितारा जिसने अपनी बल्लेबाज़ी से क्रिकेट को नयी ऊंचाइयों पर पहुंचाया — लेकिन उसका सफ़र भी उतना ही भावनात्मक, उतना ही टूटा और उतना ही प्रेरणादायक था।
माइकल क्लार्क का जन्म 2 अप्रैल 1981 को सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में हुआ। उनके पिता लेस क्लार्क ने बचपन से ही उन्हें अनुशासन, मेहनत और जुनून सिखाया। क्लार्क ने क्रिकेट को सिर्फ़ खेल नहीं, अपनी आत्मा बना लिया। माइकल क्लार्क की बल्लेबाज़ी में एक अजीब सी नज़ाकत थी — नज़ाकत जो तेज़ गेंदबाज़ों की गति को पंखों में बदल देती थी, और स्पिनरों की चालाकी को आत्मविश्वास में।
2004 में भारत दौरे पर जब उन्हें टेस्ट कैप मिली, तो सबको बस एक नया चेहरा लगा। लेकिन क्लार्क ने बेंगलुरु टेस्ट में 151 रन ठोककर सभी को चौंका दिया। ये महज़ एक पारी नहीं थी — यह एक एलान था कि क्रिकेट को एक नया “पोएट” मिल गया है। उसी साल पाकिस्तान के खिलाफ पर्थ में उन्होंने अपने पहले ही वनडे में भी शतक जड़ दिया।
टीम में उन्हें प्यार से “Pup” कहा जाता था — एक मासूम, समझदार और टीम के सबसे प्यारे सदस्यों में से एक। उनकी स्टाइल, उनका लुक, उनका करिश्मा — हर युवा उन्हें अपना आदर्श मानने लगा। लेकिन क्लार्क सिर्फ दिखावे का नाम नहीं थे — वो लड़ते थे, टिकते थे, और जब टीम को जरूरत हो, तो छाती पर चोट खाकर भी रन बनाते थे।
रिकी पोंटिंग के बाद जब माइकल क्लार्क ने ऑस्ट्रेलिया की कप्तानी संभाली, तब टीम संक्रमण के दौर में थी। लेकिन क्लार्क ने न केवल टीम को फिर से खड़ा किया, बल्कि उसे फिर से दुनिया की सबसे डरावनी टीमों में बदल दिया।
2012 माइकल क्लार्क के करियर का सबसे ऐतिहासिक साल था। उन्हें उस साल देखकर ऐसा लगता था जैसे वे किसी और ही ग्रह के बल्लेबाज़ हैं। गेंदबाज़ों के लिए वे किसी बुरे सपने की तरह थे — और स्कोरबोर्ड पर रन ऐसे चढ़ रहे थे जैसे पानी बह रहा हो।
इस साल क्लार्क ने जो किया, वो इतिहास में दर्ज हो गया। उन्होंने उस वर्ष टेस्ट में 4 दोहरे शतक लगाए। टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में एक कैलेंडर वर्ष में ऐसा करने वाले वो पहले खिलाड़ी बने। उस साल उन्होंने 11 टेस्ट मैचों में 106. 33 की औसत से 1595 रन बनाए — और क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत वर्षों में अपना नाम दर्ज करा दिया।
2013-14 क्लार्क की कप्तानी में ऑस्ट्रेलिया ने इंग्लैंड को एशेज में 5-0 से हराया। इसके बाद 2015 वर्ल्ड कप फाइनल में, अपने आखिरी वनडे मैच में उन्होंने 74 रन बनाकर टीम को जीत दिलाई — और एक कप्तान की सबसे सुंदर विदाई लिख दी।
माइकल क्लार्क का करियर जितना चमकदार था, उतना ही दर्दनाक भी। पीठ, हैमस्ट्रिंग, और बार-बार की सर्जरी ने उनके शरीर को थका दिया था। पर असली घाव सिर्फ़ शरीर के नहीं थे… 2014 में जब ऑस्ट्रेलिया के युवा खिलाड़ी फिलिप ह्यूज की एक गेंद लगने से मौत हो गई, तो माइकल क्लार्क अंदर से टूट गए। वो सिर्फ कप्तान नहीं थे — ह्यूज उनके छोटे भाई जैसे थे। जब उन्होंने उनकी श्रद्धांजलि में भाषण दिया, तो पूरा क्रिकेट जगत रो पड़ा। उनकी आंखों से गिरा हर आंसू एक पूरी पीढ़ी की भावना बन गया।
उसके बाद क्लार्क कभी पहले जैसे नहीं रहे। उन्होंने मैदान पर वापसी तो की, लेकिन दिल मैदान में नहीं था। 2015 की एशेज सीरीज़ के बाद उन्होंने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का एलान कर दिया। उनके शब्द थे: “मुझे गर्व है कि मैंने ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व किया। लेकिन अब मेरा शरीर और दिल साथ नहीं दे रहे।”