शिवेंद्र तिवारी 9179259806

टीवी हर घर में नहीं था, लेकिन आवाज़ में भी तस्वीरें थीं, और उस दिन जो तस्वीरें मेरे दिल में बसीं, वो आज तक धुंधली नहीं हुईं।
भारत ने चौथी पारी में साउथ अफ्रीका को 170 रन का टारगेट दिया था। उम्मीदें कम थीं… सच कहूं तो जीत की कोई आस नहीं थी, क्योंकि उस वक्त तेज़ गेंदबाज़ी का मतलब सिर्फ़ गेंद की चमक उतारना था। स्पिनरों का ही जमाना था।
लेकिन फिर मैदान पर आया – जवागल श्रीनाथ।
लंबा कद, तेज़ रफ्तार और आंखों में एक अलग ही आग।
पहला ओवर – दो गेंद, दो विकेट!
साउथ अफ्रीका 96/4 पर था और लग रहा था मैच उनके पाले में जा चुका है।
लेकिन फिर श्रीनाथ ने वापसी की… और क्या वापसी की!
एक-एक करके पूरी टीम को 105 रन पर समेट दिया।
भारत ने 64 रनों से मैच जीत लिया।
मुझे आज भी याद है – रेडियो पर जब कॉमेंटेटर चिल्लाया था, “और ये आउट! जबरदस्त गेंदबाज़ी श्रीनाथ की!” तो मैं अपने मामा के घर की छत पर दौड़ता हुआ चिल्लाया था – “हम जीत गए!”
लेकिन आज जब पीछे मुड़कर देखता हूं, तो लगता है – श्रीनाथ को हमने उतना सम्मान कभी नहीं दिया, जितना देना चाहिए था।

वो धूल भरे पिचों पर तेज़ गेंद डालते थे, जहां उछाल घुटनों से ऊपर नहीं आता था।
उन्हें बस गेंद घिसने वाला माना गया, ताकि कुंबले या राजू को विकेट मिलें।
कोई मेंटर नहीं था, कोई प्लान नहीं था। बस अकेले दम पर वो तेज़ गेंदबाज़ी को जिंदा रखे हुए थे।
ना सोशल मीडिया था, ना हाईलाइट्स। बस एक तेज़ गेंदबाज़ था, जो भारत की तरफ से हर बार पूरी जान लगाता था।
आज के समय में अगर श्रीनाथ होते – तो बुमराह, शमी, सिराज जैसे पिच, ट्रेनिंग, मेंटर और टेक्नोलॉजी उन्हें मिलती – तो शायद हम उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ तेज़ गेंदबाज़ों में गिनते।
और हां, उन्हीं श्रीनाथ ने आगे चलकर ज़हीर खान, नेहरा जैसे गेंदबाज़ों को तराशा।
और दादा – सौरव गांगुली – वो पहला कप्तान था जिसने श्रीनाथ को एक “स्टार पेसर” की तरह इस्तेमाल किया।
आज मैं 38 साल का हूं। लेकिन जब भी उस अहमदाबाद टेस्ट की बात होती है, मन 10 साल के उस बच्चे में बदल जाता है, जो अपने हीरो के लिए तालियां बजा रहा था – रेडियो की आवाज़ के सहारे।
🙏 शुक्रिया श्रीनाथ, उस दौर में तेज़ गेंदबाज़ी को ज़िंदा रखने के लिए।
आप सिर्फ़ गेंदबाज़ नहीं थे – आप हमारे बचपन के तेज़ तूफ़ान थे।
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चलो, 90s के उस जादू को फिर से जिएं। ❤️