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न्यूज़ीलैंड क्रिकेट की जब भी बात होती है, तो एक नाम बड़े सम्मान और गर्व से लिया जाता है – स्टीफन फ्लेमिंग। वो कोई शोर मचाने वाले खिलाड़ी नहीं थे, ना ही उन्होंने हर मैच में चौकों-छक्कों की बरसात की। लेकिन उनकी आंखों में हमेशा एक गहराई होती थी – एक कप्तान की सोच, एक योद्धा की समझ और एक इंसान की संवेदना।

शिवेंद्र‌ तिवारी 9179259806

न्यूज़ीलैंड क्रिकेट की जब भी बात होती है, तो एक नाम बड़े सम्मान और गर्व से लिया जाता है – स्टीफन फ्लेमिंग। वो कोई शोर मचाने वाले खिलाड़ी नहीं थे, ना ही उन्होंने हर मैच में चौकों-छक्कों की बरसात की। लेकिन उनकी आंखों में हमेशा एक गहराई होती थी – एक कप्तान की सोच, एक योद्धा की समझ और एक इंसान की संवेदना।

स्टीफन फ्लेमिंग का जन्म 1 अप्रैल 1973 को क्राइस्टचर्च, न्यूज़ीलैंड में हुआ था। एक शांत बच्चा, लेकिन आंखों में चमक थी – क्रिकेट खेलने की। उनके पिता भी खिलाड़ी थे, तो खेल उनके खून में था। लेकिन न्यूज़ीलैंड जैसे छोटे देश से दुनिया के सबसे बड़े मंच तक पहुंचना आसान नहीं था।

कम उम्र में ही उन्होंने घरेलू क्रिकेट में अपना हुनर दिखाया। उनकी बैटिंग में आक्रामकता नहीं, बल्कि एक संयम और गहराई थी। 1994 में उन्होंने जब भारत के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया, तो किसी को अंदाज़ा नहीं था कि वो न्यूज़ीलैण्ड के लिए लंबे समय तक खेलेंगे। स्टीफन फ्लेमिंग को लोग “क्रिकेट का जेनरल” कहते थे – क्योंकि वो दिल से नहीं, दिमाग से खेलते थे। उनके खेल में शोर नहीं था, लेकिन रणनीति की गूंज थी। उन्होंने बल्ले से हजारों रन नहीं बनाए, लेकिन हर रन में समझदारी थी, ज़िम्मेदारी थी।

1997 में जब उन्हें कप्तानी सौंपी गई, तब न्यूज़ीलैंड की टीम संघर्ष कर रही थी। लेकिन फ्लेमिंग ने टीम को एकजुट किया, उन्हें विश्वास दिलाया कि हम भी जीत सकते हैं। उनके नेतृत्व में न्यूज़ीलैंड ने 2000 में चैंपियंस ट्रॉफी (ICC Knockout) जीती – देश का पहला बड़ा ICC खिताब।

फ्लेमिंग का करियर इस मायने में भी अलग था कि उन्होंने कभी व्यक्तिगत रिकॉर्ड के पीछे भागने की कोशिश नहीं की। उन्होंने कई बार अपने शतक छोड़े, टीम के लिए जल्दी रन बनाए, और कई बार खुद को लाइन में पीछे रखा – क्योंकि उनके लिए “टीम” सबसे ऊपर थी।

उनकी कप्तानी में न्यूज़ीलैंड ने कई बड़े देशों को हराया, लेकिन वो कभी विश्व कप नहीं जीत पाए। पर जब उन्होंने आखिरी बार कीवी जर्सी पहनी, तो पूरा देश उन्हें सलाम कर रहा था – क्योंकि उन्होंने एक टीम को आत्मविश्वास, पहचान और सम्मान दिलाया।

स्टीफन फ्लेमिंग अब कोच हैं, कई युवा खिलाड़ियों के मार्गदर्शक हैं। वो चेन्नई सुपर किंग्स के सफल कोच हैं, लेकिन आज भी जब वो किसी मैदान पर खड़े होते हैं, तो उनके चेहरे पर वही शांति होती है – एक सच्चे खिलाडी की, जो कभी ज़्यादा बोले नहीं, लेकिन हमेशा सही समय पर सही काम करे।

StephenFleming #NewZealand #Cricket

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