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*”#शिवतांडवस्तोत्र”*

Shivendr@ tiwari

  *जटाटवी  गलज्जल  प्रवाह  पावित   स्थले,*
*गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंग तुंग  मालिकाम्।*
*डमड्डमड   डमडडममि  नादन   दव  ड्डमर्वयं,*
*चकार चण्ड ताण्डवं तनोतु न: शिव भ्रम शिवम्॥*

*जटा    कटाह   सम्भ्रम   भ्रमन्निलिम्पनिर्झरी,*
*विलोल  वीचि  वल्लरी विराजमान  मूर्ध्दनि।*
   *धगद्    धगद्   धगज्जवललाट  पट्  पावके,*
*किशोर   चन्द्रशेखरे   रति:   प्रतिक्षणं   मम्॥*

*धराधरेन्द्र   ननन्दिनी  विलास  बन्धु  बन्धुर,*
*स्फुरदि्   द्गन्त   सन्तत  प्रमोद मान  मानसे।*
*कृपा    कटाक्ष   धोरणी  निरुद्ध   दुर्धरापदि,*
*क्वचिद्दिगम्बरे   मनो   विनोदमेतु   वस्तुनि॥*

*जटा  भुजंग  पिंगल स्फुरत्फणा  मणि प्रभा,*
*कदम्ब   कुंकुम   द्रव   प्रलिप्त   दिग्वधूमुखे।*
   *मदान्ध    सिन्धुर    स्फुरत्त्व गुत्तरीयमे   दुरे,*
    *मनो  विनोदमद्  भुतं   विभर्तु   भूतभर्तरि॥*

*ललाट   चत्वरज्वलद्धनज्जय    स्फुलिंगभा,*
*निपीत   पंचसायकं  नमन्निलिम्प   नायकम्।*
*सुधाय   यूखलेखया   विराजमान   शिखरम्,*
*महाकपालि  सम्पदे शिरो  जटा लमस्तुन:॥*

*सहस्त्र   लोचन   प्रभृत्य   शेषलेख   शेखरः,*
*प्रसून  धूलि धोरणी विधूसराङध्रि  पीठभू:।*
*भुजंग  राजमा्लया   निबद्ध   जाटजूटक:,*
   *श्रियै  चिराय  जायतां  चकोर बन्धु  शेखर:॥*

*करालभाल   पट्टिका   धगद् धगद्धगज्ज्वलद,*
*धनजंयाहुतीकृत    प्रचण्ड   पंच       सायके।*
*धरा   धरेन्द्र    ननन्दिनी   कुचाग्रचित्र  पत्रक,*
*प्रकल्पनैक   शिल्पिनि  त्रिलोचने   रतिमर्म॥*

*नवीनमेघ    मण्डली   निरुद्ध     दुर्धरस्फुरत्,*
*कुहुनिशीथिनी   तम:   प्रबन्ध बद्ध    कन्धर:।*
*निलिम्प   निर्झरी धरस्तनोतु कृत्ति   सिन्धुर:,*
  *कलानिधान   बन्धुर:  श्रियं   जगद्धुरन्धर:॥*

*प्रफुल्ल  नील  पंकज  प्रपंच कालि   मप्रभा,*
*वलम्बि  कण्ठ कन्दली रुचि प्रबद्ध कन्धरम्।*
*स्मरच्छिदं   पुरच्छिदं   भवच्छिदं   मखच्छिदं,*
*गजच्छिदान्धकच्चि   दन्तमन्तकच्छिदं  भजे॥*

*अखर्व    सर्वमंगला   कला कदम्ब    मंज्जरी,*
*रस    प्रवाह   माधुरी   विजृम्भणे   मधुव्रतम्।*
*स्मरान्तकं   पुरान्तकं  भवान्तकं   मखान्तकं,*
*गजान्तकान्धकान्तकं   तमन्त कान्तकं  भजे॥*

*जयत्वं         दभ्रविभ्रमद्       भुजंगमश्वसद,*
*विनिर्गम त्क्रमस्फुरत कराल भाल हव्यवाट्।*
*धिमिधि   मिधिमि  ध्वन मृदंग   तुंग  मंगल,*
*ध्वनिक्रम  प्रवर्तितः प्रचण्ड् ताण्डव: शिव:॥*

*दृषद्  विचित्र तल्पयोः र्भुजंग मौक्तिक  स्रजो,*
*र्गरिष्ठ  रत्न   लोष्ठ्यो:  सुहृद्विपक्ष  पक्षयो:।*
*तृणारविन्द चक्षुषो:   प्रजामही    महेन्द्रयो:,*
*सप्रतृत्तिक:  कदा  सदाशिवं   भजाम्यहम्॥*

*कदानिलिम्प   निर्झरी  निकुंज कोटरे   वसन्,*
*विमुक्त दुर्मति: सदा शिर:स्थ मञ्जलि बहन्।*
*शिवेति मन्त्रामुच्चरन् सदा सुखी भवाम्यहम्,*
  *विमुक्त    लोल    ललाम    भाल  लग्नकं।।*

*निलिम्प  नाथ नागरी  कदम्ब मौलि मल्लिकां,*
*निगुम्फ  निर्झर   क्षरन् मधूष्षिका   मनोहरः।*
*तनोतु   नो   मनो   मुद  विनोदनी महर्निशं,*
*परश्रियं   परं  पदं    तदंंजत्विषां   चयः।।*

*प्रचण्डवाड    वानल   प्रभा     शुभप्रबारिणी,*
*महाष्ट  सिद्धि   कामिनी जनावहूत  जल्पना।*
*विमुक्त  वाम  लोचना  विवाह कालिक ध्वनिः,*
*शिवेति मंत्र भूषणा जगज्जयाय जायताम्।।*

*इमेहि नित्यमेव  मुक्त   मुक्त  मोत्त   नमं  स्तवं,*
*पठन् स्मरन् ब्रुवन् नरो विशुद्धि मेति सन्त्ततम्।*
  *हरे गुरौ सुभक्तिमाशुयाति   नान्यथा  गतिं,*
  *विमोहनंहि   देहिनां    तुशंकरस्य चिन्तनम्॥*

*पूजावसान     समये     दश    वक्त्र      गीतं,*
*य:     शम्भु     पूजन परं     पठति     प्रदोषे।*
*तस्य    स्थिरां     रथ   गजेन्द्र   तुरंग    युक्तां,*
*लक्ष्मीं    सदैव   सुमुखीं   प्रददाति    शम्भु:॥*
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©शिवेंद्र तिवारी 9179259806

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