✍🏻शिवेंद्र तिवारी 9179259806

विवादों से घिरे अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय को बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद ने विश्वविद्यालय के बी एड विभाग की मान्यता समाप्त कर दी है। जिससे विश्वविद्यालय इस वर्ष बी एड पाठ्यक्रम में प्रवेश नहीं दे पाएगा।
बताया गया है कि राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद NCTE की पश्चिमी क्षेत्रीय समिति ने एक सख्त कार्रवाई करते हुए मध्यप्रदेश सहित चार राज्यों के कुल 380 बी एड कालेजों की मान्यता सत्र 2025 -26 के लिए समाप्त कर दी है।जिसमें रीवा के अवधेश प्रताप सिंह विश्व विद्यालय का बी एड विभाग भी शामिल है।मध्यप्रदेश के कुल ग्यारह बी एड कालेजों की मान्यता निरस्त की गई है।जिसमें रीवा जिले का अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय और नीराँचलम शिक्षा महाविद्यालय मंनगवा भी शामिल है।
एन सी टी ई की बैठक में लिए गए निर्णय की पुष्टि पश्चिमी क्षेत्रीय समिति के चेयरमैन शैलेश नारायण ने की है।यह कदम उन संस्थाओं के खिलाफ उठाया गया है जिन्होने निर्धारित समय पर परफॉर्मेंस अप्रेजल रिपोर्ट PAR दाखिल नहीं की थी। विश्व विद्यालय के शैक्षणिक ढांचे में कमी,नियमित प्राध्यापकों की अनुपलब्धता तथा प्रशिक्षण मानकों का उल्लंघन आदि कारणों से NCTE ने विश्वविधालय की मान्यता समाप्त की है।
विश्वविद्यालय का बी एड विभाग अंतर्भारती भवन के दो कमरों में संचालित है।जहां एक भी नियमित प्राध्यापक पदस्थ नहीं हैं।बी एड विभाग अतिथि विद्वानों के सहारे संचालित हो रहा था।यहां तक कि विभागाध्यक्ष भी हिंदी के प्राध्यापक को बनाया गया था।जिसकी शिकायत NCTE को मिली थी। शिकायत में उल्लेख किया गया था कि विश्वविद्यालय अतिथि विद्वानों के आधार पर बी एड विभाग संचालित कर रहा है,किंतु झूठी जानकारी और गलत शपथ पत्र देकर विश्वविद्यालय ने बी एड की मान्यता हासिल की है।जिस पर NCTE ने विश्वविदयालय के बी एड विभाग की मान्यता समाप्त कर दी है।मान्यता समाप्त होने से अब विश्वविद्यालय सत्र 2025 -26 के लिए बी एड पाठ्यक्रम में प्रवेश नहीं दे पाएगा।
गौरतलब है कि इसके पहले विश्वविद्यालय की मनमानी के चलते बी एड प्रायोगिक परीक्षा भी विवादों से घिरी थी।प्रायोगिक परीक्षकों की नियुक्ति में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों ने आपसी बंदरबांट कर ली थी।जबकि वे एम एड न होने के कारण अपात्र थे।जिस पर मामला न्यायालय पहुंच गया था।बाद में दुर्भावनावश शासकीय शिक्षा महाविद्यालय के प्राध्यापकों को बी एड प्रायोगिक परीक्षाओं में परीक्षक न बनाने तथा विश्वविद्यालय के अतिथि विद्वानों को प्रायोगिक परीक्षाओं में परीक्षक बनाने का मामला भी न्यायालय पहुँचा था। जिसमें विश्वविद्यालय के एक शोध सहायक की अतिथि विद्वान पत्नी को नियम विरूद्ध तरीके से 26 जगह परीक्षक बनाए जाने का मामला सुर्खियों में था।मान्यता समाप्त होने के पीछे भी शोध सहायक की मनमानी को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। अंततः शोध सहायक की मनमानी और जिद विश्वविद्यालय को महंगी पड़ी।जिसका खामियाजा बी एड विभाग के अतिथि विद्वानों को भुगतना पड़ा।