सरकार को रीवा मऊगंज जिले में नहीं मिला एक भी बेरोजगार युवक
अनिल त्रिपाठी, रीवा
प्रदेश में युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से अगस्त 2023 से शुरू ‘मुख्यमंत्री सीखो-कमाओ योजना’ अपने लक्ष्यों को पूरा करने में विफल साबित हो रही है। योजना के तहत हर साल एक लाख युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण देना और 8 से 10 हजार रुपए मासिक स्टाइपेंड प्रदान करना था। लेकिन इस वर्ष 32 जिलों में एक भी बेरोजगार को प्रशिक्षण नहीं मिल पाया है। 16 मई को प्रदेश स्तरीय समीक्षा में सामने आया कि एमएमएसकेवाई पोर्टल पर अब तक 45,425 रिक्तियां प्रकाशित की गई थीं, जबकि ईपीएफओ पोर्टल पर 71,7575 उम्मीदवार उपलब्ध थे। इसके बावजूद मार्च तक सिर्फ 1,633 बेरोजगारों को ही काम के प्रशिक्षण के लिए बुलाया गया। इनमें से अप्रेल तक सिर्फ 275 को ही रोजगार मिल पाया, जो कि कुल संख्या का महज 0.3 फीसदी है।
दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह रही है कि प्रदेश के 32 जिलों में किसी भी बेरोजगार को प्रशिक्षण का अवसर नहीं मिला। इसमें विंध्य क्षेत्र की हालत और गंभीर है। प्रदेश के जिन जिलों में यह योजना फ्लॉप रही है उसमें रीवा, शहडोल, सीधी, उमरिया, मऊगंज, अनूपपुर, मैहर, मंदसौर, टीकमगढ़, नीमच, दमोह, शाजापुर, रतलाम, खरगोन, उज्जैन, आगर मालवा, अलीराजपुर, बड़वानी, भिण्ड, बुरहानपुर, डिंडोरी, गुना, झाबुआ, खंडवा, मंडला, निवाड़ी, पांढुर्ना, पन्ना, राजगढ़, सीहोर, श्योपुर और विदिशा जिले शामिल हैं।
टॉप फाइव जिलों की भी स्थिति अच्छी नहीं
योजना में सबसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले जिलों की स्थिति भी निराशाजनक रही। कुल मिलाकर रीवा संभाग में हालत चिंताजनक रही है। 0.5 फीसदी उपलब्धि के साथ सतना और सिंगरौली में केवल 9-9 बेरोजगारों को नियोजन मिला, जबकि रीवा और सीधी में किसी को भी रोजगार नहीं मिल सका।
एनएपीएस योजना भी पिछड़ी
केंद्र सरकार की नेशनल अप्रेंटिसशिप प्रमोशन स्कीम (एनएपीएस) भी फलीभूत नहीं हो सकी। 29 जिलों में एक भी प्रशिक्षणार्थी को संस्थानों ने आपरेंटिंस का अवसर नहीं दिया। इसमें 81,078 संभावित वैकेंसी के मुकाबले केवल 20,485 को प्रशिक्षण और मात्र 1,147 को ही रोजगार मिला। योजना के क्रियान्वयन में संस्थागत ढांचे की कमजोरी, स्टाइपेंड में देरी और प्रशिक्षण की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। युवाओं की बढ़ती बेरोजगारी के बीच यह योजना उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई है।
युवाओं की पीड़ा
पडऱा निवासी राजेश त्रिपाठी का कहना है कि संस्थानों में प्रशिक्षण के दौरान कई-कई महीनों तक स्टाइपेंड नहीं आता है। इसके अलावा प्रशिक्षण की खानापूर्ति होती है। इस वजह से युवा इस ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं। वहीं सिरमौर निवासी नवीन सिंह ने बताया कि हमने डीसीए कर रखा है। पोर्टल पर पंजीयन भी कराया था, लेकिन किसी भी कंपनी से कोई बुलावा नहीं आया। अब तो पोर्टल देखना ही बंद कर दिए।