©शिवेंद्र तिवारी 9179259806

डाकू ददुआ को कुर्मी समाज के लोग भगवान की तरह पूजते हैं ये तो आप सबने सुना होगा लेकिन क्या आपको पता है कि एक डकैत कभी अहिरों का भी भगवान हुआ करता था.. उसका जो दबदबा हुआ करता था उसके आगे ददुआ भी कुछ नहीं . यादव समाज भगवान कृष्ण के बाद उसे अपना दूसरा भगवान मानता था.. उसके एक इशारे पर वोट पड़ते थे.. उसके दर्शन और पांव पूजन के लिए हजारों लोग उमड़ते थे. उसने दो दर्जन मुलिसवालों की हत्या की.. एक बार तो उसने एक दरोगा समेत 9 पुलिसवालों को एक साथ मारा डाला था. एक विधायक को उसने जिन्दा गाड़ दिया था . हम बात कर रहे हैं अस्सी के दशक में इतावा -मैनपुरी इलाके में 12 साल तक अपनी सामनानंतर हुकूमत चलाने वाले डकैत छविराम यादव की…
: कहानी की शुरुआत छविराम के उदय से करते हैं..छविराम मैनपुरी जिले के कुरावली थानांतर्गत हरनागरपुर गाँव में निरंजन यादव के घर पैदा हुआ था। उसकी शिक्षा कक्षा सात तक हुई, पर गलत साथ हो जाने के कारण उसने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया.. वाह राहजनी करने लगा। उस समय यादवों कई गिरोह हुआ करते थे लेकिन जरमन यादव हीरो बना हुआ था। छविराम उसी के गिरोह में शामिल हो गया। जरमन के मारे जाने के बाद गिरोह का नेता अलवर हुआ। छविराम तब तक काफी सक्रिय हो चुका था। अलवर के मारे जाने के बाद गिरोह में यह नम्बर दो पर रहा. इसके बाद एक डकैत काशी गैंग का सरगना बना और उसकी मृत्यु के बाद छविराम ने एक और डाकू पोथी से मिलकर एक संयुक्त गिरोह बना लिया। पोथी बेहटी गाँव, थाना कलां, जिला शाहजहाँपुर के चिरौंजी अहीर का रहने वाला था। छविराम-पोथी गिरोह बहुत कम समय में कुख्यात हो गया.
इस गिरोह के पास सामान्य हथियारों के अतिरिक्त एलएजी., एसएलआर. थ्री नॉट थ्री राइफल, सेमी ऑटोमेटिक राइफल, स्टेनगन, थर्टी कारबाइन जैसे घातक हथियार थे। इस सूचीबद्ध गिरोह ने मैनपुरी, एटा, फतेहगढ़, बदायूँ व शाहजहाँपुर जिलों में हत्या, डकैती, लूट व अपहरण के 140 से ज्यादा अपराध किए। 15 अक्टूबर 1977 को इस गिरोह ने मुखबिरी के सन्देह में पांच व्यक्तियों को एटा जिले के जैथरा क्षेत्र में काली नदी में डुबा कर मार डाला। 19 नवम्बर, 1979 को मैनपुरी के ऑछा थाने के बदनपुर गाँव में इस गिरोह ने 11 हरिजनों को गोली से भून दिया, इनमें पाँच महिलाएँ भी थीं।

दिसम्बर ’79 में एटा जिले के सकीट थानांतर्गत गठकोई ग्राम में सात व्यक्तियों की हत्या इसी गिरोह ने की थी। मई 81 में जैथरा थाना के कुँअरपुर गाँव के 11 हरिजनों की हत्या में भी इसी गिरोह का हाथ था। अगस्त 81 में एटा जिले के अलीगंज थानांतर्गत नथुआपुर ग्राम में सनसनीखेज डकैती व हत्या तथा अक्टूबर 81 में मैनपुरी
के औंछा थानांतर्गत फकीरपुर गाँव में पाँच महिलाओं सहित 12 ठाकुरों की हत्या और लूटपाट छविराम -पोथी के गिरोह ने की । इस गिरोह ने फिरौती के लिए सैकड़ों अधिक अपराध किए। बाद में महाबीरा, पोथी तथा अनार सिंह ने अपना-अपना अलग गिरोह बना लिया। पर निर्देशन वे छविराम से ही लेते रहे। जैसे राधे, छोटवा वगैरह पाठा में ददुआ के अधीन अलग -अलग गैंग बनाकर रहते थे..
पुलिस को इस गिरोह के कारण कई बार भारी क्षति उठानी पड़ी। 9 मई 81 को मैनपुरी जिले के घिरोर थाना क्षेत्र में हुई मुठभेड़ में इन्स्पेक्टर मुंशीलाल शर्मा और पांच सिपाही इस गिरोह के हाथ मारे गए। 29 मई 81 को आगरा जिले के पिनाहट थाना क्षेत्र में इस गिरोह
[: से मुठभेड़ में कांस्टेबल श्रीपत राम और शिव सिंह शहीद हो गए.। 17 अगस्त को एटा के अलीगंज थाना क्षेत्र में हुई मुठभेड़ में इन्स्पेक्टर राजपाल सिंह सहित पुलिस के नी जवानों और तीन ग्रामीनों को छविराम गिरोह ने घेरकर मार डाला.. छविराम के गिरोह में 90 लिस्टेड सदस्य थे जिनके पास पुलिस से भी अच्छे असलहे हुआ करते थे.. यही वजह थी कि हर मुठभेड़ में पुलिस पर भारी पड़ जाया करता था. हालांकि छविराम के मरने के पहले उसके भी 34 सदस्य मारे और 12 पकड़े गए.. लेकिन रक्तबीज की तरह वह अपने गिरोह के सदस्यों की संख्या बढा लेता था.
[.. ज़ब कभी उसे बड़ी वारदात करनी होती तो रात में यादव समाज के दो से ढाई सौ लोग उसके साथ हो जाते.. रात में बंदूक लेकर उसके साथ होते और दिन के उजाले में उजले काम करने लगते.. छविराम ज़ब यादव बाहुल्य गाँवों में जाता तो भगवान की तरह लोग उसके दर्शन को आते. पांव पूजा के लिए कतार लगती..
[ छविराम के दुस्साहद का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि उसने 1982 में एटा के अलीगंज के तत्कालीन सीओ को पकड़ कर यूपी सरकार को खुली चुनौती दी। हालांकि छविराम ने 1 दिन बाद ही सीओ को छोड़ दिया, लेकिन इस घटना से प्रदेश सरकार की खूब बेइज्जती हुई और छविराम की हिम्मत और ज्यादा बढ़ी।
[
छविराम के दुस्साहस की एक और कहानी की चर्चा कर लेते हैँ फिर आते हैं उसके अंत पर..छिबरामऊ की एक औरत थी, फूलश्री. उसके पति को पुलिस पकड़ ले गई. डकैतों का साथ देने के जुर्म में. फूलश्री को लगा कि आदमी अब मार दिया जाएगा. वो पुलिस कप्तान के पास गिड़गिड़ाई. बोली, हम आपको विधायक के अपहरण की जानकारी देंगे. मगर हमारे मरद को बख्श दो. कप्तान ने कहा कौन सा विधायक? कैसा किडनैप? फूल श्री एटा जिले की अतरौली सीट से जनसंघ के टिकट पर विधायक बने सतीश शर्मा की चर्चा कर रही थी.. वह अचानक गायब हो गए. शोर मचा कि उठा लिया गया है.. इलाके में छविराम डकैत का ही आतंक था.. तीन चार महीने बीत गए. विधायक जी का कुछ पता नहीं चला. फूल श्री ने . पुलिस को बताया कि विधायक जी गड़े हैं. जिंदा नहीं मुर्दा. एक जगह और उन्हें गाड़ा है महावीरा ने. जो छविराम गैंग का मेंबर है. लाश खोदी गई. सबूत भी मिल गया. नाम सामने आया लटूरी सिंह यादव का. जो सतीश शर्मा से चुनाव हारे थे. उसके पहले और बाद में कई बार विधायक रहे. उनके भाई साधु सिंह समेत कई लोगों को आरोपी बनाया गया लेकिन अब पानी सिर से ऊपर हो चुका था
. छविराम को कांग्रेस के कई सांसद विधायक ख़ासकर यादव समर्थन दे रहे थे. इसी लिए वो दर्जनों पुलिस कर्मियों की हत्या के बाद भी जिन्दा बचा था लेकिन अब सरकार सीधे विपक्ष के निशाने पर आ गई थी. इसलिए उसके खिलाफ निर्णायक अभियान चलाने का फैसला लिया गया.. लेकिन ये इतना आसान नहीं था क्योंकि पूरी यादव बिरादरी उसकी ढाल थी. वो किस तरह उसका बचाव कर रही थी इसकी भी एक कहानी सुना देते हैं.. उसने कुरावली के पास पड़रिया चौराहे पर बड़ा बड़ा यज्ञ किया.. 8 दिन चले इस यज्ञ में छविराम पूरे समु मौजूद था लेकिन पुलिस कुछ नहीं कर पायी… 40 हजार लोग उसकी ढाल बने थे..
लेकिन छविराम ने जल्दी ही अपनी मौत खुद बुला ली वो कैसे ये बताते हैं… 16 फरवरी 1982 को छविराम गिरोह को पुलिस ने घेर लिया.. आठ घंटे तक भीषण मुठभेड़ चली और उसमें बच निकलने के बाद वो गिरोह के साथ भूमिगत हो गया लेकिन इसके तीन दिन बाद ही 19 फरवरी की रात में बल्लमपुर गांव में छविराम गिरोह के एक सदस्य भूरा ने अपने पड़ोसी मुरारी यादव और उसके बेटे ओमप्रकाश को गोली मार दी। जब इन्हें बचाने मुरारी यादव की पत्नी और उसकी छोटी बेटी आई, तो भूरा ने उन्हें भी मार दिया और मुरारी की बड़ी लड़की ओमवती को लेकर भाग निकला। उसने 16 साल की ओमवती को बरी के नगला में एक यादव के यहां रखकर उसके साथ बलात्कार किया. 22 फरवरी को वो ओमवती को लेकर छविराम के पास आ गया.. छविराम ने ओमवती के अपहरण के लिए भूरा को डॉटा-फटकारा। पर भूरा ने ओमवती को छोड़ने से इनकार कर दिया. ओमवती गिरोह में ही भूरा के साथ रहने लगी.
[
2 मार्च को छविराम ने ओमवती से कहा को वो गांव चली जाए और अपने चाचा के साथ रहे क्योंकि वो भाग-दौड़ में बोझ साबित हो रही थी। ओमवती जैसे ही अपने गांव पहुँची कि पुलिस को पता चल गया. पुलिस ने उससे पूछताछ की तो पता चला कि छविराम बरी के नगला के आसपास है.. तत्कालीना एसपी कर्मवीर सिंह ने पीएसी के लगभग छह सौ और पुलिस के सौ सिपाहियों के साथ 3 मार्च को छविराम की तलाश शुरू की।
पुलिस दल ज़ब मैनपुरी से आगरा जानेवाली रेलवे लाइन में पड़ने वाले ताखा रेलवे स्टेशन के सामने बसे खेरिया के पास पहुंचा , तो गांव में कुछ असामान्य हलचल का आभास हुआ। दरअसल उस समय गांव में छविराम के पैर छूने की रस्म चल रही थी.. पुलिस ने गांव को घेर लिया.. छविराम का गिरोह बाहर निकला तो मुठभेड़ शुरू हुई.. इस बार छविराम का पाला सात सौ पुलिस वालों से था लेकिन मुठभेड़ बराबर की चल रही थी.. इसी दौरान डकैतों की एक गोली पीएसी के एक सिपाही किशनचंद पाण्डेय का माथा चीरते हुए निकल गई. अपने एक साथी की शहादत के बाद पीएसी के जवानों ने तब तक गोलियां बरसाई ज़ब तक कि डकैतों की बंदूकें खामोश नहीं हो गई.. डकैतों की तारीफ से फायरिंग रुकने के बाद ज़ब तलाश की गई तो छविराम समेत 13 डकैतों के शव मौके पर मिले.. बाकी फरार हो गए.. आज भी उस अंचल में छविराम की याद में बिरहा गाया जाता हैँ जिसमे कहा जाता हैँ कि छवीराम और उसके साथियों को जहर देकर मारा गया..