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प्रेम सिंह, डकैत, बागी या संत?

प्रेम सिंह, डकैत, बागी या संत?
आज कहानी प्रेम भैया की.. प्रेम भैया यानि प्रेम सिंह बरौधा की.. जो सत्तर के दशक में बागी बने फिर व्यवसाय और राजनीति में आए लेकिन जीवन संत सा जिया.सांसद, विधायक बनने के बाद लोगों की प्रॉपर्टी बढ़ जाती है लेकिन उनकी घट गई.. कई साल तक बागी रहे लेकिन किसी हिंसक वारदात के आरोप उन पर नहीं लगे ब्राह्मणों से दुश्मनी में बागी बने लेकिन आजीवन ब्राह्मणों को पूजते रहे. हलांकि ये मेरा मानना हैँ किसी के पास उनकी जिंदगी से जुडा कोई नकारात्मक पक्ष हो तो बता सकता है


“प्रेम भैया” ने बंदूक कब उठायी इसकी सटीक जानकारी तो मेरे पास नहीं हैँ लेकिन वो शायद सत्तर के दशक के शुरूआती साल थे. प्रेम सिंह कोलउंहा गांव के रहने वाले थे. ये गांव बरौधा से नीचे घाट उतरने पर फतेहगज के रास्ते पर अंदर पड़ता हैँ.बांदा जिला लगता हैँ… प्रेम सिंह रघुवंशी ठाकुर थे और बरौधा राजपारिवार से उनका परिवार ताल्लुक़ रखता था. रियासत के बटवारे में कोलउंहा इलाका उनके पूर्वजों को मिला था जो कालांतर में खेतिहर हो गए.. प्रेम सिंह के पिता का नाम रघुवेन्द्र सिंह था.. प्रेम सिंह तीन भाई थे. बड़े भाई लल्ला सिंह और छोटे गोला सिंह.
[अब बात प्रेम सिंह के बन्दूक उठाने की.. प्रेम सिंह के पिता जी के बड़े भाई यानि ताऊ निसंतान थे.. उन्हें अफीम की बुरी लत थी . उन्होंने अपने हिस्से के एक खेत पटरहाई बाँध का सौदा गांव के यज्ञसेन पयासी के साथ कर लिया.. प्रेम सिंह के पिता जी और परिवार के दूसरे सदस्यों ने रोका तो नहीं मानें.. बोले मेरी सम्पत्ति हैँ जो चाहूंगा वो करूंगा.. प्रेम सिंह की उम्र 18 -20 साल रही होगी. वो उस समय कुश्ती लड़ा करते थे दरअसल बांदा में ये परम्परा ही थी कि एक लड़का चराया जाता था.सांड की तरह.. दूसरे शब्दों में कहें कि पहलवान बनाया जाता हैँ जिससे वो परिवार की इज्जत के लिए लड़ -भिड़ सके खैर प्रेम सिंह के बड़े पिता जी नहीं माने.. एक दिन वो अपनी जमीन की रजिस्ट्री यज्ञसेन पयासी के नाम कराने तहसील जा रहे थे.. परिवार में सबसे बड़े थे इसलिए परिवार उनसे जमीन ना बेचने की मिन्नत कर रहा था. उसी समय प्रेम सिंह अखाड़े से कुश्ती कर घर आए.. वो भी पहले तहसील जाने के लिए घोड़ी पर सवार ताऊ को मानते रहे और ज़ब वो नहीं माने तो प्रेम सिंह के अंदर का पहलवान जाग उठा.. उन्होंने घोड़ी का मुंह पकड़ा और पटक दिया .. घोड़ी हिनहिना कर भागी और ताऊ जी जमीन पर.. यज्ञसेन पयासी अपने कुछ लोगों के साथ गांव के बाहर महुआ के पेड़ के नीचे उनके ताऊ का इंतजार कर रहे थे.. प्रेम सिंह लाठी लेकर दौड़ते गए और उनसे भी भिड़ गए.. कहासूनी हुई.. प्रेम सिंह के गांव में दो मित्र थे. चंगू और मंगू पाण्डेय.. उनके घर लायसेंसी दूनाली बंदूक थी.. जो खूटी पर टंगी रहती थी.. प्रेम सिंह उनके घर में घुसे और बंदूक -कारतूस का पट्टा लेकर जंगल में भाग गए.. हल्ला हो गया प्रेम बागी बन गया.. हालांकि इससे पयासी परिवार डरा नहीं.. कुछ दिन बाद ही उनके ताउ से उसने जमीन की रजिस्ट्री करा ली और उसमें कब्जा कर लिया.. लेकिन प्रेम सिंह जंगल की राह ले चुके थे. वो पयासी परिवार को अपनी पुस्तैनी जमीन पर खेती नहीं करने दे रहे थे.. लेकिन गांव में दो ब्राह्मण परिवार उनके दुश्मन बन चुके थे एक उनके ताऊ से जमीन खरीदने वाले यज्ञसेन पयासी और दूसरे वो चंगू -मंगू पाण्डेय जिनके घर से वो बंदूक लेकर भागे थे दोनों ने रपट लिखाई और पुलिस प्रेम सिंह के पीछे पड़ गई.. पुलिस का दबाव बढा तो प्रेम सिंह उस इलाके में सक्रिय डकैत बच्चा सिंह के गिरोह में जा मिले.. बच्चा सिंह भी ठाकुर थे जो पडमई गांव के रहने वाले थे..


बच्चा सिंह के साथ मिलकर प्रेम सिंह गिरोह लेकर यज्ञसेन पयासी के घर धावा बोलने लगे.. वो जमीन वापस करने का दबाव बना रहे थे लेकिन पयासी परिवार इसके लिए तैयार नहीं था..अब पुलिस प्रेम सिंह -बच्चा सिंह के पीछे लग गई और कई बार पुलिस के साथ गिरोह की मुठभेड़ हुई.इसी दौरान एक दिन इलाके में पड़ने वाली बानगंगा नदी पार करते समय मुठभेड़ हुई जिसमे बच्चा सिंह गड्ढा में गिर गए.. उन्हें निकालने की कोशिश में प्रेम सिंह के हाथ में पुलिस की गोली लग गई.. वो बच्चा सिंह को नहीं निकाल पाये.. उन्हीं के कहने पर भागे और बच्चा सिंह पकड गए.. बच्चा सिंह के गिरफ्तार होने के बाद प्रेम सिंह गैंग के सरदार बन गए.. इस गैंग में अमोल सिंह पथरा, कल्लू यादव तेरा,भूक्खी धोबी बदौसा सिंह. लक्ष्मी शुक्ला उर्फ़ रज्जू नन्ना जैसे खतरनाक डाकू थे.. इस गैंग का क्षेत्र बरौधा से लेकर बांदा के बदौसा,,कालिंजर और पन्ना के धर्मपुर तक था..पुलिस प्रेम सिंह को तलाश रही थी तो प्रेम सिंह का एक ही मकसद था.. पयासी परिवार से जमीन वापस पाना.. कहते हैं कि प्रेम सिंह के बागी बनने के बाद उनके पिता जी ने वचन ले लिया था कि वो पयासी और पाण्डेय परिवार ही नहीं किसी की भी हत्या नहीं करेंगे.. ब्राह्मण का सम्मान करना ना भूलेंगे. और गरीबों को सताएँगे नहीं प्रेम सिंह ने इन्ही वचनों का पालन किया. कहते हैं कि एक बार केल्हौरा के किसी व्यापारी के पास उनके नाम से 10 हजार भेजनें की चिट्ठी पहुंच गई. ये चिट्ठी दूसरे डकैत रामसहाय ने भेजी थी..इसका पता चला तो प्रेम सिंह खुद उसके घर ये बताने पहुंच गए कि उन्होंने ये चिट्ठी नहीं भेजी और उसे ये पैसे नहीं देने होंगे.. ये गारंटी उनकी.. हालाँकि ज़ब मैं क्षेत्र में घूमा तो मुझे इसके विपरीत कहानियाँ भी सुनने को मिली. इनमे से तीन सुनाता हूं


पहली ये कि पहाडीखेरा से लगे दिया गांव के एक ब्राह्मण परिवार ने बताया कि उनकी हीरे की खदाने थी.. अच्छा खासा हीरे का व्यापार था.. प्रेम सिंह की गैंग ने घर में डकैती डाली और हीरों के साथ गहने जेवर सब लूट ले गए.. इस सदमे में परिवार के मुखिया की हार्ट अटैक से उसी दिन मौत हो गई.. और परिवार गांव छोड़कर चला गया.. दूसरी घटना बरौधा क्षेत्र के बनसांकर के इलाकेदार ब्राह्मण परिवार ने बताई कि जिस दिन बहु का डोला घर आया उसी दिन प्रेम सिंह का गैंग चढ़ाई करने आ गया लेकिन बहु दबंग परिवार से आई थी उसने ससुर की रायफल उठाकर खुद फायर झोंक दिया… करिया आगे पांव ना बढ़ाये. .. उसका दुर्गा स्वरूप देखकर गैंग को वापस लौटना पड़ा.. कौहारी के एक बुजुर्ग व्यापारी ने बताया कि सरेंडर करने के बाद प्रेम सिंह ने अपने साथी सुरेन्द्र सिंह कंदर के साथ डकैत बुद्धा नाई को उनके घर डेहरी बंधवाने के लिए भेजा.. डेहरी मतलब हफ्ता या प्रोटकसन मनी..
खैर कोई डकैत बने और लूटपाट ना करे ये बात वैसे भी हजम नहीं होती. ये बात दीगर हैँ कि प्रेम सिंह ही नहीं बहुत से ऐसे डकैत रहे हैं जिन्होने अगर अमीरों से चार पैसे लूटा तो दो पैसे गरीबों में बांटे भी.. अब आगे बढ़ते हैँ. प्रेम सिंह सिर्फ अपनी जमीन वापस पाने के लिए बागी बने थे.. पयासी परिवार एक डकैत गिरोह से कब तक लडता.. उसे झुकना पड़ा.. उसने जमीन वापस कर दी और इसके बाद प्रेम सिंह ने अपनी ननिहाल के लोगों की मदद से बांदा में सरेंडर कर दिया. उनकी ननिहाल पन्ना जिले के नारायणपुर क्षेत्र के पैठारी गांव में थी. वहां के दबंग रामभगत सिंह ने उन्हें हाजिर कराया.. आज इतना ही अगर पढ़ना चाहेंगे तो आगे बतायेंगे सरेंडर के बाद की कहानी.. कैसे बरौधा थाने के अंदर मारे गए प्रेम सिंह के साथी से दुश्मन बने साधु सिंह और कैसे राजनीति में आए प्रेम सिंह.. इस कहानी में अगर कुछ बातें गलत हों या छूट रही हों तो जरूर बताएं. कहानी संशोधित की जाएगी

©Shivendr@ tiwari_9179259806

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