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आखिर कहां अटकी है पीडब्ल्यूडी के दागी अफसरों की ईओडब्ल्यू-लोकायुक्त जांच, किसकी दम पर की गई है ३ दोषी अधिकारियों की पदस्थापना

डिजाइन- ड्राइंग में मनमाने बदलाव और गुणवत्ताहीन कार्यों की हुई थी शिकायत, मामला ठंडे फाइल में
1 दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी अब तक नहीं हुई कार्यवाही
प्रमुख अभियंता से लेकर तकनीकी स्तर तक के अधिकारी हैं जांच के घेरे में

नगर प्रतिनिधि, रीवा

भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे मध्यप्रदेश के लोक निर्माण विभाग के इंजीनियर मलाई काट रहे हैं। डिजाइन-ड्राइंग में मनमाने बदलाव, सडक़ और भवनों के गुणवत्ताहीन निर्माण के मामलों में ढेरों शिकायतें ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त के पास लंबित हैं। कोई जांच 12 साल से चल रही है तो कोई 10 साल से अटकी हुई है। ऐसे 15 से ज्यादा इंजीनियर विभाग में ऊंचे पदों पर काबिज हैं और सरकार में अपने दखल का सहारा लेकर जांचों को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे मामलों में दो से तीन साल में जांच पूरी होने के बाद न्यायालय में सुनवाई शुरु हो जाती है लेकिन विभाग की मेहरबानी से ये एक दशक से भी ज्यादा समय से बचे हुए हैं। आर्थिक अनियमितता, निर्माण में गड़बड़ी की आंच में प्रमुख अभियंता, अधीक्षण यंत्री और कार्यपालन यंत्री स्तर के तकनीकी अधिकारी भी घिरे हैं। ऐसे अधिकारियों के मामले जांच एजेंसियों में सालों से दबे हुए हैं। शिकायतों के बावजूद इन अधिकारियों पर कार्रवाई तो हुई नहीं उल्टा ये अपने रसूख के सहारे लगातार ऊंचे पदों का प्रभार हासिल करने में कामयाब होते रहे हैं। ऐसे ही दागी अफसरों का दबदबा पीडब्ल्यूडी में कायम है और इसी वजह से घटिया निर्माण, ठेकेदारों से साठगांठ के मामलों में जांच आगे ही नहीं बढ़ पा रही है। इसका लाभ रीवा में बैठे ३ दागी कार्यपालन यंत्रियों को भी मिल रहा है।
जांच में डाल रहे हैं अड़ंगा
लोक निर्माण विभाग में जीएम, एजीएम, डीजीएम स्तर के ऊंचे ओहदेदार अफसर ही नहीं संभाग और जिलों में कार्यरत कार्यपालन यंत्री, सहायक यंत्री भी सडक़ और भवन निर्माण में गुणवत्ता की अनदेखी कर रहे हैं। इससे ठेकेदार को मुनाफा होता है जिसका एक हिस्सा इन अधिकारियों तक भी पहुंचता है। टेंडर के लिए साठगांठ हो या फिर डिजाइनड्राइंग में बदलाव कर निर्माण एजेंसी को फायदा पहुंचाना हो, लाक निर्माण विभाग के तकनीकी अधिकारी आरोपों से बचे नहीं हैं। इनकी शिकायत भी लगातार विभाग और ईओडब्लू लोकायुक्त जैसी जांच एजेंसियों तक पहुंचती हैं। हांलाकि ये अधिकारी अपनी पहुंच के सहारे शिकायतों को दबा देते हैं, उन पर जांच आगे ही नहीं बढ़ती। एक दशक से ज्यादा के अंतराल में लगातार पीडब्लूडी के इंजीनियर भ्रष्टाचार और तकनीकी गड़बडिय़ों के आरोपों से घिरे रहे लेकिन न जांच पूरी हुई और न कार्रवाई।
लंबी जांचों से प्रभावित साक्ष्य
आपराधिक मामलों में केस दर्ज होने के बाद पुलिस को जांच पूरी कर कोर्ट में चालान पेश करने अवधि तय है। जबकि लोकायुक्त और ईओडब्लू जैसी एजेंसियों को जांच पूरी करने समयावधि की बाध्यता नहीं है। यानी शिकायत मिलने के बाद दोनों एजेंसियां कितने ही दिन, महीने या साल जांच पड़ताल में लगा सकती हैं। यही वजह है कि एक दशक और उससे भी ज्यादा समय लगने के बाद भी इन एजेंसियों की अधूरी जांच पर कोई सवाल नहीं उठा पा रहा है। वहीं भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे अधिकारियों की जांच के लिए ईओडब्ल यौर लोकायुक्त पुलिस को सहयोग नहीं करते। बार_बार पत्र के बाद भी शासन स्तर से जांच की अनुमति ही नहीं मिल पाती।
3 अधिकारियों का रीवा में अड्डा
कई आरोपों से घिरे कार्यपालन यंत्री मनोज द्विवेदी मार्च माह में सेवा मुक्त हो चुके हैं लेकिन उनके जाने के बाद भी रीवा के पीडब्ल्यूडी विभाग में ३ दागी अधिकारियों का आज भी जलवा कायम है। के.के. सिंगारे जो मुख्य अभियंता कार्यालय में कार्यपालन यंत्री पद में पदस्थ हैं इनकी भी शिकायत लोकायुक्त पहुंची है। इसी प्रकार अनामिका ङ्क्षसह जो वर्तमान में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन रीवा में कार्यपालन यंत्री के प्रभार में हैं इनके विरूद्ध विगत ८ वर्ष पहले ईओडब्ल्यू में शिकायत दर्ज कराई गई थी। इसी तरह मुख्य अभियंता कार्यालय रीवा में ही पदस्थ कार्यपालन यंत्री रमेश चंद्र तिरोले के विरूद्ध १ वर्ष पूर्व लोकायुक्त में शिकायत दर्ज कराई गई थी। लेकिन वर्षों गुजर जाने के बाद भी अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।
अधूरी जांचों की फेहरिस्त
*रमेश चंद्र तिरोले कार्यपालन यंत्री हैं और रीवा मुख्य अभियंता कार्यालय में पदस्थ हैं। उनके विरुद्ध लोकायुक्त पुलिस भोपाल द्वारा वर्ष 2024 से केस दर्ज किया गया था। अब ये मामला जांच में अटका है।
*एससी वर्मा कार्यपालन यंत्री (इलेक्ट्रिकल) भवन शाखा मेंपदस्थ हैं। साल 2022 में केस दर्ज कर लोकायुक्त पुलिस द्वारा जांच की जा रही है। वहीं वर्मा के विरुद्ध विभागीय जांच भी लंबित हैं।
*केके सिंगारे के विरुद्ध भवन शाखा में कार्यपालन यंत्री रहते हुए शिकायत लोकायुक्त पुलिस तक पहुंची थी। साल 2019 से लोकायुक्त पुलिस जांच कर रही है। फिलहाल सिंगारे रीवा में कार्यरत हैं।
*अनामिका सिंह के खिलाफ साल 2017 में शिकायत हुई थी। ये शिकायत पन्ना में प्रभारी संभागीय परियोजना यंत्री रहने के दौरान दर्ज की गई थी। फिलहाल अनामिका सिंह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन रीवा में कार्यपालन यंत्री के प्रभार पर हैं।
*अभिषेक ठाकुर के साल 2023 में उमरिया में प्रभारी संभागीय परियोजना यंत्री के व दौरान ईओडब्लू ने प्रा…. की थी। दो साल से जांच चल र लेकिन अभी तक पूरी नहीं हुई।
*जेएस चौहान कार्यपालन यंत्री भवन शाखा में प्रमुख अभियंता का दायित्व भी संभाल रहे हैं। ग्वालियर संभागायुक्त द्वारा विभागीय जांच कराई गई थी लेकिन उसमें क्या हुआ ये पता ही नहीं चला।
*गणेश प्रसाद पटेल उज्जैन में कार्यपालन यंत्री हैं। उनके पास अधीक्षण यंत्री का भी प्रभार है। उनके विरुद्ध वर्ष 2019, वर्ष 2020 और वर्ष 2024 में तीन अलग-अलग शिकायत की गई थी जो अब तक विचाराधीन हैं।

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