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रेलवे भूमि अधिग्रहण के नाम पर पटवारी ने कर दिया 54 लाख का मुआवजा घोटाला … तो यह है रीवा जिले में जनसुनवाई की असलियत !

मई 2022 से अब तक दिए जा चुके हैं 41 आवेदन, हर बार जांच का आश्वासन
जिनका नहीं हुआ था गजट नोटिफिकेशन उनको मिल चुका है मुआवजा
जिनका प्रकाशित हुआ था नोटिफिकेशन वह भटक रहे मुआवजे के लिए

अनिल त्रिपाठी, रीवा

कलेक्टर की जनसुनवाई, यानी कि सब कुछ सामने ही निराकरण, कुछ गंभीर मामलों में हफ्ते दो हफ्ते का समय भी बता दिया जाता है। लेकिन एक गंभीर मामले में 41 जनसुनवाई में लगातार आवेदन दिए जाने के बाद केवल जांच कराए जाने की बात की जा रही है। पटवारी बदल गए, राजस्व निरीक्षक बदल गए, तहसीलदार बदल गए, कलेक्टर बदल गए लेकिन आज तक जांच पूरी नहीं हो पाई है। जिन लोगों को मुआवजा नहीं मिला है उनकी चप्पलें कलेक्ट्रेट की सीढिय़ां चढ़ते चढ़ते घिस चुकी हैं, लेकिन उन्हें आश्वासन से अलावा कुछ नहीं मिल पाया। यह है जनसुनवाई की असलियत। गंभीर मामलों में कोई कुछ नहीं कर पा रहा है।
जिले में रेलवे भूमि अधिग्रहण के नाम पर हुजूर तहसील की अंतर्गत आने वाले राजस्व निरीक्षक मंडल गोविंदगढ़ में एक बड़ा घोटाला सामने आया था। इसमें पटवारी हल्का बांसा के पटवारी संतोष पांडे ने गजट नोटिफिकेशन के बावजूद रीवा सीधी सिंगरौली रेल लाइन के लिए भूमि अधिग्रहण के नाम पर फर्जी तरीके से 31 लोगों का नामांकन कर उनका अवार्ड बना दिया, इसमें हल्का पटवारी एवं पंचायत सरपंच की मिली भगत के चलते 54 लाख रुपए का घोटाला हुआ, इसके विपरीत दूसरा खास मामला यह था कि जिन लोगों का गजट नोटिफिकेशन हुआ था वह आज भी मुआजी की राशि के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं।
इस संबंध में बांसा के निवासी बृजनंदन शर्मा बताते हैं कि उनका गजट नोटिफिकेशन हुआ था और लगभग 3 लाख से ज्यादा का अवार्ड भी मंजूर हुआ था। लेकिन आज तक अवार्ड नहीं मिला। इन्होंने बताया कि उनकी आराजी नंबर 1039/3 थी, जिस पर पटवारी ने कहा कि बाद में मिलेगा और उसके बाद तो यह कहने लगा कि हमने जो लिखना था लिख दिया जिसे मिलना था मिल गया, अब भटकते रहो। उधर 1039/6 का नोटिफिकेशन नहीं हुआ लेकिन उन्हें 3 लाख का मुआवजा दिला दिया गया।
बृजनंदन शर्मा बताते हैं कि उनकी जमीन का अधिग्रहण रेल मार्ग के लिए किया गया था कि तत्कालीन हल्का पटवारी संतोष पांडे ने फर्जी मुआवजा निर्धारण राघवेंद्र पांडे के नाम स्वीकृत कर दिया गया इस मामले में उन विभागीय अधिकारी के समक्ष पुनरावलोकन के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया जो विचाराधीन है जिसमें नया तहसीलदार गोविंदगढ़ से वस्तु स्थिति प्रतिवेदन मंगाया गया है किंतु 2 साल से आज तक ना तो मौके की जांच की गई और ना ही प्रतिवेदन दिया गया और बृजनंदन लगातार न्याय के लिए भटक रहा है इस मामले में जिला कलेक्टर के सामने सबसे पहले 10 मई 2022 को जनसुनवाई में आवेदन दिया गया था और लगातार आवेदन दिया जाता रहा गया। अंतिम आवेदन अभी हाल में 10 दिसंबर 2024 को एक बार फिर दिया गया है। हर बार इनका आवेदन लिया जाता है और नया नंबर देकर जनसुनवाई की सील लगा ली जाती है किंतु आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई। कुल मिलाकर जनसुनवाई का जिस तरह से रीवा जिले में मजाक उड़ाया गया, वह अपने आप में एक रिकॉर्ड ही माना जा सकता है।
मनमानी तरीके से कर लिए गए नामांतरण
शासकीय नियमों के अनुसार गजट नोटिफिकेशन के बाद सभी भूमिया शासकीय योजना के दायरे में आ जाती हैं इसके बाद इनका राजस्व रिकॉर्ड में परिवर्तन अधिकार सभी का समाप्त हो जाता है। इसके बावजूद बांसा गांव के पटवारी ने मनवाणी तरीके से 31 लोगों का फर्जी तौर पर नामांतरण करते हुए शासन की राशि को ही हजम कर लिया है। बताया गया है कि रीवा सीधी सिंगरौली नई रेल लाइन भूमि अधिग्रहण हेतु राजस्व निरीक्षक मंडल गोविंदगढ़ की भूमियों का गजट नोटिफिकेशन स्वयं कलेक्टर द्वारा किया गया था उसके बावजूद पटवारी ने नियम विरुद्ध काम किया। खास बात यह थी कि सरपंच से मिली भगत के साथ एक ही दिन में 31 लोगों का फर्जी तौर पर नामांतरण भी कर लिया जो अपने आप में संदेह के दायरे में आता है।
विधायक नागेंद्र सिंह भी विधानसभा में उठा चुके हैं सवाल
इस मुआवजा घोटाले के मामले में ऐसा नहीं है कि जनप्रतिनिधि चुप रहे हो। क्षेत्र के विधायक नागेंद्र सिंह ने विधानसभा में यह मामला उठाया था और यह कहा था कि गोविंदगढ़ राजस्व निरीक्षक मंडल के बांसा गांव के सरपंच और पटवारी संतोष पांडे ने मिलकर फर्जी बाड़े को अंजाम दिया है। उक्त मामले में कार्रवाई के नाम पर सिर्फ इतना ही हुआ की जांच के लिए ऊपर से लिख दिया गया लेकिन आज तक जांच नहीं हो पाई। अब इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि विधानसभा में मामला उठने के बावजूद इस मामले में कोई कार्यवाही नहीं हो पाई है।
तो कलेक्टर से बड़ा हो गया पटवारी….
राजशाही के जमाने में किसी परिवार का कोई लडक़ा पढ़ लिख कर आगे बढ़ता था तो बुजुर्ग लोग उसे आशीर्वाद दिया करते थे की जा दादू पटवारी बन जा। वह सही कहा करते थे क्योंकि ग्रामीण स्तर पर पटवारी से बड़ी कोई पोस्ट नहीं होती जो कलेक्टर से बड़ी होती है। यानी कि पटवारी की एक लाइन के चलते पूरा मामला और सिस्टम घूमता रहता है। रीवा के तत्कालीन कलेक्टर अमर सिंह भी कहा करते थे कि रीवा में पटवारी सबसे बड़ी पोस्ट होती है। यहां यह भी गौरतलब है कि हाईकोर्ट जबलपुर में रेवेन्यू से जुड़े सबसे ज्यादा मामले रीवा जिले के ही है जो अधिकांश तौर पर पटवारियो की देन होती है। भ्रष्टाचार के मामले में अव्वल यह पटवारी कुछ भी कर सकते हैं। इसका प्रमाण लोकायुक्त संगठन है जो साल में दर्जनों पटवारी को रिश्वत लेते हुए पकड़ता है।

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