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सौरभ सोनवड़े सब पर भारी, दो जगहों के बन गये प्रभारी जिले के कई महत्वपूर्णं विभाग प्रभार के नाम पर हाईजैक

देवेन्द्र दुबे, रीवा

जिले में प्रभार को लेकर लंबे-लंबे खेल खेले जा रहे हैं। जहां एक तरफ धरना प्रदर्शन के बाद प्रभारी जिला पंचायत सीईओ को हटाकर नियमित पदास्थापना करने के बजाय फिर से पूर्व जिला पंचायत सीईओ और वर्तमान आयुक्त नगर निगम को जिला पंचायत का प्रभार सौंप दिया गया है वहीं शिक्षा विभाग में सीनियर को दरकिनार करके जूनियर को जेडी का प्रभार दिया गया है। इतना ही नहीं घोटाले के मामले में जग-जाहिर स्वास्थ्य विभाग में भी जुगाड़ बनाकर जेडी से लेकर निचले स्तर तक के अधिकारी और कर्मचारी सेटिंग बनाके प्रभार की मलाईदार कुर्सी में बैठे हुए हैं।
जनप्रतिनिधियों का नहीं चला जोर
जिला पंचायत के सीईओ का पद लंबे समय से खाली था। अपर कलेक्टर को प्रभारी सीईओ बनाया गया था। उन पर आरोप था कि जिला पंचायत के कार्यों के प्रति उदासीन रवैया रहता है। जिला पंचायत सदस्यों ने पूर्णकालिक सीईओ की पदस्थापना की मांग को लेकर धरना भी दिया था। अब अपर कलेक्टर की जगह नगर निगम के आयुक्त सौरभ सोनवणे को सीईओ का प्रभार सौंपा गया है। इसके पहले वह जिला पंचायत में ही सीईओ रहे हैं, लेकिन उन्हें नगर निगम का आयुक्त बनाया गया तब से सीईओ का पद खाली है। इन दिनों सौरभ सोनवणे मऊगंज के प्रभारी कलेक्टर भी हैं।
जेडी से लेकर कर्मचारी तक बैठे हैं प्रभार में
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के कई मुख्य पद जिले में रिक्त पड़े हैं, इनकी नियमित पदस्थापना को लेकर अभी तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। जब रीवा जिले से प्रदेश को स्वास्थ्य मंत्री व उप मुख्यमंत्री मिले को यह कहा जाने लगा कि अब इस प्रकार के महत्वपूर्ण बिंदुओ पर जल्द निर्णय होगा लेकिन अभी तक इन महत्वपूर्ण बिंदुओ पर कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। इतना ही नहीं, लगभग 15 वर्षों से यही हालात बने हुए हैं। मानव संसाधन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन जिला रीवा की बात की जाए तो जिले में कई पद रिक्त हैं। बता दें कि जिले में डिस्ट्रिक प्रोग्राम मैनेजर (डीपीएम) सहित डिस्ट्रिक एकाउंट मैनेजर (डीएएम), एपीएम का पद रिक्त है। इसके अलावा भी पद अनुसार पदों में भर्ती नहीं की गई है, जिससे स्वास्थ्य व्यवस्थाएं ठीक से संचालित नहीं हो पा रही हैं।
कई घोटाले आए सामने
बता दें कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के इन वरिष्ठ पदों के रिक्त होने से इन पर सीएमएचओ द्वारा प्रभार में काम कराया जा रहा है। इन पदों में बैठने वाला ने जमकर भ्रष्टाचार किया। हाल ही में एपीएम शिवशंकर तिवारी को लेकर शिकायत हुई, जिसमें उन्होंने भर्ती के नाम पर कई लोगों ने रुपयों की वसूली की। इसके अलावा नोकरी से हटा देने की धमकी देते हुए डाटा इंट्री ऑपरेटर से अश्वीनता का आरोप लगाया गया। हैरानी तो यह है कि इन्हें जब पद से हटा दिया गया तो वह कोर्ट से स्टे लेकर चले आए और अब स्वास्थ्य विभाग की इनकी जानकारी हाईकोर्ट के सामने प्रस्तुत नहीं कर पा रहा है। इसके अलावा पूर्व के प्रभारी डीपीएम व एपीएम पर व डीएएम पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लग चुके हैं, कइयों में वह दोषी भी मिले हैं।
सीनियर को दरकिनार कर जूनियर को बना दिया गया जेडी
एसके त्रिपाठी संयुक्त संचालक लोक शिक्षण के पद पर पदस्थ रहे। 31 दिसंबर को वह पद से रिटायर हो गए। संयुक्त संचालक का पद शासन के निर्देशानुसार कार्यालय के सबसे वरिष्ठ अधिकारी को सौंपने के निर्देश हैं। जेडी कार्यालय में सबसे वरिष्ठ पद पर उप संचालक नीरव दीक्षित पदस्थ हैं। इसके बाद भी उप संचालक को दरकिनार कर सहायक संचालक को जेडी का अस्थाई प्रभार का आदेश जारी कर दिया गया है। शासन के नियमों के विपरीत आदेश और प्रभार सौंपने की कार्रवाई की गई है। हालांकि जो प्रस्ताव कमिश्नर के पास भेजा गया है। उसी में जेडी कार्यालय से गड़बड़ी की गई। कमिश्नर रीवा संभाग रीवा को धोखे में रखकर आदेश जारी कराया गया। दरअसल केपी तिवारी सहायक संचालक हैं लेकिन प्रस्ताव उप संचालक का बनाकर भेजा गया। इसके बाद भी यदि वरिष्ठता देखी जाए तो नीरव दीक्षित केपी तिवारी से कई साल नौकरी और पद में वरिष्ठ हैं। ऐसा खेल क्यों किया गया, यह सभी जानते हैं। अब इसी पद को लेकर कार्यालय में खींचतान मचना तय है। अब जूनियर के अंडर में सीनियर को काम के दौरान दिक्कतें होंगी और नोंकझोंक की स्थिति भी निर्मित होगी।
नियमित पदस्थापना से होगा सुधार
बता दें कि इन पदों पर नियमित पदस्थापना नहीं होने से प्रभार में काम करने वाले अधिकारी-कर्मचारी मनमानी कार्य करते हैं। इतना ही नहीं, इसके लिए उन्हें भोपाल तक की दौड़ लगानी पड़ती है। सूत्र बताते हैं कि कुछ चढ़ावा भी देना पड़ता है तब जाकर वह कुर्सी में डटे रहते हैं। शायद यही वजह है कि इन पदों पर हमेशा ही भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। यदि इन पदों पर नियमित पदस्थापना कर दी जाए तो बड़ा सुधार हो सकता है।
वरिष्ठता के मामले में सबसे आंगे
कोई स्कूल शिक्षा विभाग में यदि वरिष्ठता की बात करें तो उप संचालक नीरव दीक्षित से वरिष्ठ कोई भी नहीं है। नीरव दीक्षित के पदस्थ होने के बाद भी स्कूल शिक्षा विभाग में प्रभार को लेकर गड़बड़ी की गई। यह सारा तानाबाना जेडी कार्यालय में पदस्थ कर्मचारियों और अधिकारियों का खेल माना जा रह है। जेडी कार्यालय में संतोष त्रिपाठी के रहते कई गड़बडिय़ां हुईं हैं। इसी को छुपाने के लिए ही यह सारा खेल किया जाना माना जा रहा है।

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