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मामला रहट गांव का : अतिक्रमण बताकर तोड़े गए 23 पीएम आवास, अब तंबू में परिवार, अब कैसे कटेंगी शब्द की रातें क्योंकि दर्द बड़ा बेदर्द …?

परेशान हाल लोगों की पीड़ा – ठंड से बच्चों की तबीयत बिगड़ी , लगता है सरकार मौत के बाद खबर लेगी
सात मकान बनाए गए थे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत, योजना के तहत डेढ़ लाख रुपए स्वीकृत हुए

विशेष संवाददाता, रीवा

संभागीय मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर दूर स्थित रहट गांव मैं अतिक्रमण बात कर हटाए गए लोगों की पीड़ा सुनने के लिए प्रशासन तैयार नहीं है। ठंड में लोग लगातार परेशान हो रहे हैं और उनकी सेहत खराब हो रही है। मामला 23 परिवारों का है। दो महीने पहले इनके मकानों को अतिक्रमण बताकर प्रशासन ने तोड़ दिया था। इसके बाद से यह सभी परिवार खुले में कडक़ड़ाती ठंड में रहने को मजबूर हैं। हालात यह हो गए हैं कि सर्दी के कारण बुजुर्ग और बच्चों की सेहत खराब होने लगी है, लेकिन प्रशासन ने अब तक इनके रहने का कोई इंतजाम नहीं किया है। गांव वालों का कहना है कि 10 लोगों को नोटिस मिला था, लेकिन 23 मकान बगैर किसी सूचना के तोड़ दिए गए। कार्रवाई के समय कुछ लोग तो घर पर भी नहीं थे। इसमें सात मकान प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बने हुए थे। योजना के तहत डेढ़ लाख रुपए स्वीकृत हुए थे। बाद में हमें एक लाख 20 हजार रुपए ही मिले। राशि कम पडऩे पर ब्याज से रुपए लेकर बड़ी मुश्किल से अपनी छत बनाई थी। अब हमारे विस्थापन के लिए प्रशासन कोई मदद नहीं कर रहा।
बताया गया है कि उन परिवारों का जिनके प्रधानमंत्री आवास अतिक्रमण में पाए जाने के कारण गिराए गए। वादे के मुताबिक उनकी व्यवस्था नहीं की गई। हालांकि कलेक्टर प्रतिभा पाल का कहना है कि मामला संज्ञान में आया है। अतिक्रमण पर कार्रवाई की गई थी, लेकिन यह मालूम नहीं था कि ठंड में परिवार समस्या झेल रहे हैं। जल्द ही उनकी व्यवस्था बनाई जाएगी।
बताया गया है कि रहटगांव में 4 पीढिय़ों से जहां यह लोग रह रहे थे, उन मकानों को अतिक्रमण में आने के कारण तोड़ दिया गया। हाईकोर्ट में रामकिशोर ने जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कोर्ट ने तालाब के आस-पास मौजूद घरों को अतिक्रमण माना। हाईकोर्ट के आदेश पर 8 अक्टूबर को 23 पक्के मकान तोड़ दिए गए। मकानों को तोडऩे के पहले जिला प्रशासन ने इनके विस्थापन की कोई व्यवस्था नहीं की। लिहाजा परिवार छोटे-छोटे बच्चों को लेकर मलबे के ढेर के बीच तंबू लगाकर रह रहे हैं। पीडि़तों का आरोप है कि पंचायत ने सरकारी जमीन पर प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत किया था। अब अतिक्रमण बताकर तोड़ दिया गया। बता दें कि एक व्यक्ति को केवल एक ही बार प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए पात्र माना जाता है। अब जिनके घर तोड़ दिए हैं उन लोगों का कहना है कि अगर ये अतिक्रमण था तो हमारी प्रधानमंत्री आवास की राशि क्यों खर्च करवा दी गई। पंचायत ने हमें इस जमीन पर आवास बनाने की स्वीकृति कैसे दी? हमें तो ये कहा गया था कि जो जिस जगह पर पीढिय़ों से बसा है, उसे उसी जगह पर आवास और जमीन का पट्टा दिए जाने का निगम है।
अब तंबू में गुजर रहीं गरीबों की रातें ?
फूलमती केवट ने बताया कि हमने भी बड़ी उम्मीद के साथ अपने घर बनाए थे। हमारी पिछली तीन पीढिय़ां इसी जगह पर कच्चे मकान में रहा करतीं थी। प्रधानमंत्री आवास योजना से मदद मिली तो ऐसा लगा कि सपनों को पर लग गए। लेकिन हमारे घर गिरा दिए गए। हम तंबू में रह रहे हैं। महीने भर के भीतर व्यवस्था बनाने का वादा किया गया था। हम पूछना चाहते हैं कि आखिरकार उस वादे का क्या हुआ। कहा गया था कि जमीन चिन्हित की गई है। उस जगह पर हमें पट्टे दिए जाएंगे। जिनके प्रधानमंत्री आवास तोड़ दिए गए, उन्हें आवास दिए जाएंगे। लेकिन सारे वादे धरे के धरे रह गए। संगीता केवट ने बताया कि बच्चे तंबू में रह रहे हैं। एक बच्चे की उम्र 2 साल है तो एक की 5 साल। हम तो किसी कदर ठंड बर्दाश्त कर पा रहे हैं, लेकिन बच्चे ठंड सहन नहीं कर पा रहे। डॉक्टर को दिखाने के लिए बार-बार रीवा जाना पड़ रहा है। ऐसे में आने-जाने में बार-बार ऑटो का किराया देना पड़ रहा है। घर गिरने के बाद खाने के लाले पड़े हैं। बार-बार बच्चे बीमार हो रहे हैं। अगर उन्हें कुछ हो गया तो उसके लिए कौन जवाबदार होगा।
प्रशासन के वादे पर पहले भी हमें भरोसा नहीं
गांव के जगदीश केवट ने कहा कि प्रशासन के वादे पर पहले भी भरोसा नहीं था। व्यवस्था बनाना तो दूर हमारा हाल तक जानने के लिए कोई यहां पर नहीं आया। हमारा घर गिराने के बाद सब हमें भूल गए। किसी को कोई मतलब नहीं कि हम जिंदा हैं या मर गए। किसके पास जाएं किसको अपना दुख बताएं। यहां पर कोई सुनने वाला नहीं है। अब तो ऐसा लगता है कि हमारी मौत के बाद ही हमारी व्यवस्था बनाई जाएगी।

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