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कभी पुरातत्व विभाग ने डाली थी नजर, राजनेताओं की अनदेखी से रह गया वीरान, रीवा जिले का दुर्मनकूट, जिसमें नजर आता है चित्रकूट

देवरहा बाबा की तपोस्थली पर नहीं पड़ी अब तक किसी की नजर
पौराणिक आध्यात्मिक स्थल है दुर्मनकूट धाम, पर्यटन की दृष्टि से भी बन सकता है महत्वपूर्ण स्थल

अनिल त्रिपाठी, रीवा

संभागीय मुख्यालय रीवा से केवल 27 किलोमीटर दूर गुढ़ इटार पहाड़ की वीडियो में स्थापित है दुर्मनकूट धाम। चारों तरफ पहाड़ी, बीच में कल-कल करता झरना, अगल-बगल स्थापित चट्टानो के अंदर की गुफाएं, सृष्टि के रचयिता भगवान शिव और वीर बजरंगबली की अलौकिक प्रतिमा के साथ अन्य देवी देवताओं के मंदिर लोगों को पर्याप्त तरीके से आकर्षित करते हैं। इस क्षेत्र पर किसी की नजर न पडऩे की वजह से यह वीरान सा नजर आता है लेकिन अगर प्रशासनिक पहल हो जाए तो यह दुर्मन कूट धाम रीवा जिले का एक प्रमुख आध्यात्मिक पौराणिक तथा पर्यटक स्थल बन सकता है। खास बात यह है कि अगर गंभीरता से नजर डाली जाए तो यह चित्रकूट का दूसरा स्वरूप नजर आता है।
बीते दिवस स्थानीय प्रबुद्ध जनों के आग्रह पर क्षेत्रीय समाजसेवी जितेंद्र मिश्र के साथ जब दुर्मन कूट धाम के विचरण का अवसर मिला तो पहली नजर में ही यह चित्रकूट का दूसरा अवतरण सा दिखाई दिया। रामचरितमानस में भी किष्किंधा कांड में दुर्मन कूट का उल्लेख है, लेकिन इसका प्रचार प्रसार न हो पाने की वजह से यह दुर्मन कूट जस का तस रह गया।
भारतवर्ष के ख्याति प्राप्त संत और महर्षि की उपाधि प्राप्त बाबा देवरहा स्वयं अपने आध्यात्मिक तप के लिए विंध्य की इस वादी को ही चुना था। कहां जाता है कि 200 साल पहले यहां पर वीरान जंगल हुआ करता था और भारी संख्या में शेर चीते भी मौजूद रहा करते थे। देवरहा बाबा को 12 महीने चलने वाला झरना वाला यह स्थल पसंद आया और यहीं पर तप करने बैठ गए। उनकी साधना स्थली के लिए कोई अतिरिक्त कुटी नहीं बनी थी, बल्कि एक चट्टान को ही उन्होंने अपनी कुटिया बना डाला था। चट्टान के अंदर ही सारी सुविधाएं मौजूद थी, चट्टान के अंदर स्व निर्मित बिस्तर नुमा पत्थर आज भी मौजूद है, जहां बिना खटके भरपूर विश्राम किया जा सकता है। किवदंती है कि भगवान शिव और भगवान राम को अपना आराध्य मानते हुए ऐसा तप किया कि उन्हें प्रकट होना पड़ा। देवरहा बाबा एक ऐसे संत रहे हैं जिनके भारतवर्ष में हजारों की संख्या में आज भी शिष्य मौजूद हैं जिसका उदाहरण वर्ष 2008 में यहां पर हुआ भव्य यज्ञ है, इसके बारे में कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि यहां पर भी इतना भव्य यज्ञ हो सकता है।

स्थापित वीर बजरंगबली की प्रतिमा अपने आप में अदभुत
दुर्मन कूट धाम के आकर्षण का केंद्र यहां पर विराजमान उच्च विशालकाय वीर बजरंगबली की प्रतिमा भी बनी हुई है। कई किलोमीटर दूर से यह प्रतिमा नजर आने लगती है और सामान्य रूप से लोग दूर से ही अपनी आस्था प्रकट करते हुए वीर बजरंगबली को प्रणाम करते हुए अपनी आस्था का प्राकट्य करते हैं। अब धीरे-धीरे लोगों की आस्थाएं यहां पर बढऩे लगी है क्षेत्र के ग्रामीण अक्सर देवराहा बाबा की तपोस्थली पर पहुंचकर नमन करने के साथ तमाम देवी देवताओं के दर्शन करते हैं इसके अलावा स्थानीय ग्रामीणों द्वारा समय-समय पर भजन पूजन कीर्तन भी किया जाता है जिससे ग्रामीणों की आस्था अब और तेजी के साथ बढऩे लगी है। विभिन्न तिथि त्योहार पर लोग अपने बच्चों का मुंडन और कर्णछेदन भी यहां पर कराना काफी शुभ मानते हैं, साथ ही बाबा की तपोस्थली पर मन्नतें मांगते हैं। लोग यह मानते हैं कि यहां की मन्नत कभी खाली नहीं होती, श्रद्धा के साथ जिसे जो मांगा उसे बाबा का आशीर्वाद मिला है, इसके कई प्रमाण भी स्थानीय जन देते हैं।
कैसे पता चला दुर्मनकूट धाम के बारे में
अब इस क्षेत्र में भी थोड़ी बाड़ी आवा जाही शुरू हो गई है क्योंकि बरसैंता से मनिकबार के के बीच इटार पहाड़ मुख्य मार्ग से महज डेढ़ किलोमीटर दूरी के अंदर में पहाड़ के बीच यह दुर्मनकूट है। यहां पर मिले क्षेत्र के समाजसेवी योगेश अग्निहोत्री बताते हैं कि वर्ष 1980 में उनके पिता स्वर्गीय लव कुश प्रसाद अग्निहोत्री सपनों में कई बार दुर्मन कूट जाने का आभास कराया गया था। ऐसा एक बार नहीं दो-तीन बार हुआ, तब वह यहां पर पहुंचे और काफी तलाश की। एक वृद्ध चरवाहे ने उन्हें यह बताया कि कोई संत यहां पर रहा करते थे और यह सिद्ध स्थल है। जब स्थलों की तलाश की जाने लगी तो एक स्थल पर सब कुछ स्पष्ट नजर आने लगा जैसा उन्हें सपनों में दिखाई दिया था। शिक्षकीय कार्य करने के साथ इस घटनाक्रम के बाद स्वर्गीय लवकुश अग्निहोत्री ने इस स्थल के संरक्षण का शुरुआती प्रयास किया। कुछ पेड़ पौधे लगाए, छोटे-मोटे धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू हुआ और क्षेत्र के लोग इस सिद्ध स्थल में आकर मनौती मांगने लगे। बहुत लोगों का भला हुआ तो थोड़ी सी प्रसिद्धि इस क्षेत्र को मिली। फिलहाल संरक्षण का दायित्व उनके पुत्र योगेश अग्निहोत्री और स्वर्गीय लवकुश अग्निहोत्री के भाई रामायण प्रसाद अग्निहोत्री उठा रहे हैं लेकिन अभी तक किसी राजनेता का संरक्षण न मिल पाने की स्थिति में क्षेत्र का विकास नहीं हो सका है। वहीं सरपंच बृजभान पटेल कहते हैं कि इस क्षेत्र के विकास के लिए दुर्मनकूट धाम का विकास आवश्यक है।
कई अवतार स्वरूप प्रदर्शित हैं चट्टाने
दुर्मन कूट धाम अपने आप कई विशेषताओं के चित्रण के साथ स्थापित है। यहां कई चट्टाने ऐसी है जो रुद्रावतार , शेषवतार, मत्स्यावतार के रुप में प्रदर्शित होती हैं। कई चट्टानों में गणेश की प्रतिमाएं और हनुमान की प्रतिमाएं अपने आप दिखाई देती हैं। कई चट्टानों को अगर हाथ से साफ करने का प्रयास किया जाए तो उसमें कुछ अस्पष्ट रूप से लिखा हुआ प्रतीत होता है। कई गुफाओं में भित्ति चित्र जैसे प्रदर्शित होते दिखाई देते हैं। लोग बताते हैं की बहुत पहले पुरातत्व विभाग के लोगों ने तीन चार बार आकर सर्वेक्षण किया लेकिन उसके बाद उनका आना बंद हुआ और उसके बाद कोई नहीं आया। इसी प्रकार लक्ष्मण स्फटिक शिला रूप में स्थापित चट्टान अपने आप में अद्वितीय सी दिखाई देती है। बीच में झरना टाइप का है जैसे ऋषिकेश में लक्ष्मण झूला स्थापित है ऐसे ही यहां भी अगर नजर डाली जाए तो लक्ष्मण झूला जैसी ही स्थिति बन सकती है। वन विभाग की कर्मचारी बताते हैं कि दूर-दूर तक कई जगह इसी तरह प्रतिमाएं नजर आती हैं लेकिन उन्हे सामान्य तौर पर समझा नहीं जा सकता है। अलबत्ता पुरातत्व विशेषज्ञ इन सब चीजों पर शोध की बात अवश्य करते रहे, लेकिन सभी बातें आई-गई हो गईं।
ऐसा भी कहा जाता है…. जब रात में बजने लगती हैं घंटियां
देवरहा बाबा जहां पर तप किया करते थे उसे स्थल के बारे में यह कहा जाता है कि आज भी सुबह होते ही जब कोई वहां जाता है तो वहां नए फूल चढ़े मिलते हैं। इसके बारे में क्षेत्रीय लोग को बताते हैं कि रात में दो महात्मा आते हैं , फूल चढ़ाते हैं , चिमटा बजाते हैं और फिर उसके बाद चले जाते हैं। ताजे फूल इसका प्रमाण है। यह भी बात सही है कि इस घटनाक्रम को अभी तक किसी ने देखा नहीं है। लेकिन तरह-तरह की चर्चाएं होती हैं। लोग रात में वहां पर इसी कारण से विश्राम नहीं करते हैं।
पूरे एरिया में नहीं पी सकता कोई शराब
क्षेत्र को लोग बताते हैं कि इस दुरमन कूट क्षेत्र में कई बार कुछ असामाजिक तत्वों ने यहीं बैठकर शराब पीना शुरू किया। लेकिन जैसे ही वह शराब पीना शुरू करते हैं कई नागराज एक साथ मंडराने लगते हैं। जिसे देखते ही लोग भाग खड़े होते हैं। लोगों ने यह भी बताया कि स्थानीय स्तर का एक आदिवासी युवक चोरी के कार्य में सलंग्नित रहता था। एक दो बार वह हनुमान जी की मूर्ति से चांदी की आंखें चुरा ले गया था, इस दौरान उसे सर्प ने डसा भी, लेकिन वह मान नहीं रहा था। एक बार फिर उसने ऐसी ही हरकत की तो उसके पीछे-पीछे सांप उसके घर तक गया और घर में तीन बार डसा। जिससे उसकी मौत हो गई। लोग बताते हैं कि जब सर्प ने उसे डसा तो घर वालों ने प्रत्यक्ष रूप से देखा, लेकिन जब तक उसे मारने का प्रयास करते, तब तक वह ओझल हो चुका था।

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