अंतरकलह के कोलाहल में डूबी कांग्रेस, हार पर हार के बाद भी गुटबाजी का दौर
आखिर सीधी को ही लगातार राष्ट्रीय स्तर पर महत्व क्यों, इस पर भी उठ रहे सवाल
अनिल त्रिपाठी, रीवा
कांग्रेस और गुटबाजी का चोली दामन का साथ रहा है। कांग्रेस में गुटबाजी, खेमेबाजी, टांग खिंचाई और क्षत्रपों के बर्चस्व के बर्चस्व की लड़ाई एक पुराना इतिहास रहा है। पहले कमलेश्वर पटेल को सीडब्ल्यूसी मेंबर बनाना और अब मनोज चौहान को पार्टी में राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी देने के पीछे पार्टी की क्या सोच है, यह तो पार्टी के जिम्मेदार पदों पर बैठे नेता ही बता सकते हैं, लेकिन पूरे विंध्य में पार्टी केवल सीधी जिले के नेताओं को ही राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी क्यों दे रही है वह भी अजय सिंह राहुल को बायकाट कर, यह उभरता हुआ सवाल है?
उल्लेखनीय है कि अजय सिंह राहुल को विंध्य क्षेत्र का कांग्रेस का क्षत्रप माना जाता रहा है। पूरे प्रदेश में कांग्रेस के जितने भी गुट थे , उनमें एक गुट अजय सिंह राहुल का माना जाता था। राष्ट्रीय राजनीति में ऐसे कई सितारे रहे हैं जो कभी अपनी अपनी पार्टियों की पहचान हुआ करते थे। कुंवर अर्जुन सिंह और श्री युत श्री निवास तिवारी तिवारी के बाद विंध्य का सबसे सशक्त चेहरा अजय सिंह राहुल को ही माना जाता रहा है। विंध्य की सियासत के मजबूत योद्धा माने जाने वाले अजय सिंह राहुल वर्ष 2018 का अपना पिछला विधानसभा का चुनाव हार भी चुके हैं। कद्दावर होने के बाबजूद आज तक के इतिहास में अजय सिंह राहुल को अभी तक पार्टी में राष्ट्रीय स्तर की कोई जिम्मेदारी नहीं मिली। जबकि उनसे बहुत जूनियर कमलेश्वर पटेल को पार्टी में सीडब्ल्यूसी के मेबर जैसे महत्वपूर्ण पद से नवाजा गया। वह नेता प्रतिपक्ष तक बन पाने में असफल रहे, और मौके पर पार्टी के नेताओं ने ही उनका नाम नहीं लिया। वही इन सबसे अलग हटकर महत्वपूर्ण बात यह रही कि पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष विधानसभा चुनाव हारे जीतू पटवारी को सौंप दिया गया। अब एक बार फिर दिल्ली में रहकर कांग्रेस की राजनीति कर रहे सीधी जिले के ही निवासी मनोज चौहान को राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया। अजय सिंह राहुल को पार्टी द्वारा पीछे धकेलने के पीछे यह माना जा सकता है कि विधानसभा चुनाव में विंध्य में अधिकांश टिकट उनके ही इशारे पर दिए गए थे। विंध्य में विधानसभा के कुल तीस सीटें हैं। विधानसभा चुनाव में पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया। केवल पांच सीट में सिमट कर रह गई। यही कारण है कि अजय सिंह राहुल आज पार्टी के गर्म थपेड़े झेल रहे हैं। उनके कई करीबी विगत लोकसभा चुनाव में पार्टी को अलविदा कह कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। पर अभी भी विंध्य में उनके पार्टी के सबसे ज्यादा समर्थक हैं।
माना जाता है कि विंध्य की कांग्रेस में मोहरें बिछाने और उससे बिसात पर बाजी मारने में वह अब भी वही दम खम रखते हैं लेकिन पार्टी में अपना स्थान बना पाने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं और पार्टी की स्थितियां उनके अनुकूल नहीं हैं। उनका राजनैतिक कैरियर पर लगातार चोट पहुंचाई जा रही है और वे अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अजय सिंह राहुल की कांग्रेस में कथित उपेक्षा से नाराज मध्यप्रदेश के रीवा और सीधी के नेता खुलकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बच रहे हैं। एक समय ऐसा भी रहा है जब विंध्य में अजय सिंह राहुल के अच्छे खासे समर्थक हुआ करते थे , स्वागत करने वालों की लाइन लगा करती थी, लेकिन वक्त बदलने के साथ समर्थकों की संख्या भी अब घटी है।
सतना में तो उनके सारे समर्थक कमल थाम चुके हैं और बीजेपी जिंदाबाद के नारे लगाने में व्यस्त हो चुके हैं। विंध्य में कांग्रेस के जो विधायक जीते भी हैं, उनसे अजय सिंह राहुल के छत्तीस के आंकड़े हैं। जिस सिद्धार्थ कुशवाहा को अजय सिंह राहुल राजनीति का ककहरा सिखाकर प्रदेश कांग्रेस के पदाधिकारी बनवाने के बाद 2018 में टिकट दिलवाए थे, वही सिद्धार्थ कुशवाहा अब दूसरी बार भी विधायक बन गए और अजय सिंह राहुल की टांग खींचने में कोई कोर कसर बांकी नहीं रखते। सतना में अपने पिता के जन्मदिन पर आयोजित कार्यक्रमों में कांग्रेस के दूसरे बड़े नेताओं को बुलाते हैं लेकिन अजय सिंह को अब नहीं पूछते। इसी प्रकार सतना जिले के अमरपाटन से कांग्रेस के दूसरे विधायक राजेन्द्र सिंह से अजय सिंह की कभी पटरी नहीं बैठी, जबकि दोनो एक दूसरे के रिश्तेदार हैं। जिस प्रकार की राजनीतिक स्थितियां दिखाई दे रही हैं उससे कई संदेश सामने आ रहे हैं, इससे यह भी स्पष्ट हो चला है कि विंध्य में कांग्रेस नए नेतृत्व की तलाश में है।
खोद रहे सब एक दूसरे की जड़, कैसे बन पाएगा राजनैतिक फड़ ?
विंध्य क्षेत्र में राजनीतिक रूप से कांग्रेस अब आगे पनप पाएगी अथवा नहीं, यह एक सवाल राजनीतिक पंडितों की जेहन में रहता है। जब वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव हुए थे और उस दौर में इंद्रजीत पटेल सीधी संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार थे जबकि अजय सिंह राहुल सतना संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार हुआ करते थे, तब से मामला गंभीर हो चला है। इस बार सीधी जिले में एक जीत और एक हार के बाद अंदर ही अंदर जो माहौल बना है वह बाहर तक चर्चाओं में आ जाता है। कांग्रेस के लिए स्थितियां अभी तक जो है वह उसके पक्ष में कहीं से कहीं तक नहीं दिखाई दे रही है, अगर यही हालात बने रहे तो आगे कांग्रेस के लिए समतल जमीन मिल पाना मुश्किल सा दिखाई दे रहा है।