Headlines

वृक्षारोपण अभियान के नाम पर 5 करोड़ से ज्यादा हुए खर्च पेड़ तो लगाएं, पर इन्हें अब कौन बचाए ?

डेढ़ महीने लगातार चली पेड़ लगाने की कवायद, लेकिन अब इन्हें कोई देखने वाला नहीं ?
सडक़ों के किनारे दिख रही केवल जालियां, अधिकांश सूख गए पेड़ या हुए गायब
कई जगह जालियां भी गिरी पड़ी हालत में, खूब हुआ सरकारी धन का दुरुपयोग

अनिल त्रिपाठी, रीवा

डेढ़ महीने तक खूब चला पेड़ लगाओ अभियान, लेकिन उसके बाद के हालातों पर नहीं है किसी का ध्यान। मां के नाम पर लगाएं गए थे पेड़, लेकिन अधिकांश रहे दम तोड। मानिटरिंग के लिए तैनात किए गए थे अफसर, लेकिन रिकॉर्डों में वे भी रहे है दम भर। हकीकत यह है कि 7 लाख़ पेड़ लगाने का लक्ष्य कागजों में पूरा हो गया है, लेकिन यदि 70 हज़ार भी बच जाएं तो एक उपलब्धि मानी जा सकती है।
यहां यह उल्लेखनीय है कि जून और जुलाई के महीने में एक पेड़ मां के नाम का अभियान इस साल चालू किया गया था। जिसमें 7 लाख से ज्यादा पेड़ लगाए जाने का लक्ष्य रखा गया था। इस अभियान की तैयारी भी की गई थी। विभिन्न सरकारी दफ्तरों के अलावा निजी स्तर पर भी पेड़ लगाए जाने की अभियान में लोगों ने बढ़ चढक़र हिस्सा लिया। सबने संकल्प भी लिया कि वह पेड़ लगाएंगे और मां की तरह उन पेड़ों की सुरक्षा भी पर्याप्त तरीके से करेंगे। इस मामले में वन विभाग ने अपने स्तर पर सरकारी धनराशि तो खर्च की ही उसके अलावा भी अन्य सरकारी दफ्तरों में भी इसके लिए अतिरिक्त मद के माध्यम से राशि खर्च की गई है। प्रथम दृष्टया जो आंकड़े सामने आए हैं उसके अनुसार कुल मिलाकर 5 करोड़ से ज्यादा की राशि अब तक वृक्षारोपण अभियान में खर्च की जा चुकी है।
अब चलिए इसकी सच्चाई भी देखते हैं कि पेड़ों के लगाए जाने की 1 महीने के बाद उन पेड़ों की स्थितियां क्या है। केवल दो मार्गों का जब निरीक्षण किया गया तो जो देखने में वस्तु स्थिति सामने आई है वह चौंकाने वाली थी। चोरहटा से रतहरा के बीच लगाए गए पौधों का जब निरीक्षण किया गया तो स्पष्ट हुआ कि अभी हाल फिलहाल बरसात की दिनों में ही 50 फ़ीसदी ही बचे हुए हैं, शेष में केवल जालियां लगी हुई है पेड़ों का पता नहीं है। इसी प्रकार बड़ी पॉल निपानिया मोड़ से रौसर मार्ग में भी लगभग 1000 पौधे सडक़ के किनारे लगाए गए हैं और उनकी व्यवस्थाओं के लिए जालियां भी लगाई गई है। इस मार्ग में जब निरीक्षण किया गया तो यहां भी स्थिति गंभीर ही पाई गई है। इसके पीछे स्थानीय लोगों से जब कारण पूछा गया तो पता लगा कि पेड़ तो लगा दिए गए लेकिन बीच में पड़ी तेज गर्मी और धूप के चलते कुछ पेड़ सूख गए और कुछ जल गए। कमों बेस यही स्थिति हर जगह है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि पेड़ों की सुरक्षा के लिए मॉनिटरिंग दल बनाया गया था लेकिन मॉनिटरिंग दल ने क्या किया, यह किसी को नहीं मालूम है।
काबिले गौर तथ्य यह है कि हर साल रीवा को हरा भरा करने के लिए व्यापक वृक्षारोपण अभियान चलाया जाता है लेकिन गर्मी के दिनों में जब पेड़ों के छाया की जरूरत होती है तब पेड़ दिखते ही नहीं है। शहर के मार्गों में उजड़ा चमन जैसी स्थिति दिखाई देती है। अब सवाल यह उठता है कि जब प्रशासनिक तौर पर पूरी व्यवस्थाएं हो नहीं पा रही हैं तो सब कुछ प्रशासन अपने जिम में ले क्यों लेता है। विभिन्न सामाजिक संगठन भी अभियान में तो बढ़ चढक़र भाग लेते हैं लेकिन पेड़ लगाए जाने के बाद वह स्वयं भूल जाते हैं कि हमने कहीं पेड़ भी लगाए थे। लिहाजा जो स्थितियां दिखाई दे रही है उसे यह लग रहा है कि एक बार फिर वृक्षारोपण का अभियान केवल कागजों तक ही सिमट कर रह जाएगा और ग्रीन रीवा का सपना अधूरा ही पड़ा दिखाई देगा।
पिछले 5 साल में खर्च हो चुके हैं 20 करोड़ से ज्यादा
इस संबंध में सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार लगातार हर साल चलाए जा रहे वृक्षारोपण अभियान में पिछले 5 साल के दौरान 20 करोड़ से ज्यादा की धनराशि का ब्यय होना दिखाया जा चुका है। इसमें वन विभाग द्वारा पेड़ों के लगाने की तैयारी से लेकर उनकी सुरक्षा व्यवस्था और श्रमिक खर्च भी शामिल है। इस मुद्दे पर सबसे बड़ी बात यह है कि जब प्रशासन के पास स्वयं की मॉनिटरिंग व्यवस्था नहीं है तो पेड़ों को बचाया जाना कैसे संभव हो पाएगा।
10 फ़ीसदी पेड़ भी बच जाए तो मानी जाएगी बड़ी उपलब्धि
सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि अगर 100 पेड़ लगाए जाएंगे तो उसमें 75 से 80 पेड़ सुरक्षित बचने चाहिए। ऐसा वन विभाग भी मानता है। लेकिन यहां स्थितियां पूरी तरह से उल्टी है। कहां जा रहा है कि अभी तक जितने पेड़ लगाए जा रहे हैं उनमें से अगर 10 फ़ीसदी भी बच जाए तो एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जाएगी। सच्चाई यह है कि जब पेड़ लगाए जाते हैं तो वह शैशवावस्था में होते हैं और उनकी देखरेख होना आवश्यक है। लेकिन यहां पर स्थित यह है कि पेड़ लगाने के बाद उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। लिहाजा उसके दुष्परिणाम हर साल देखने को मिल जाते हैं। वहीं पेड़ों की सुरक्षा के लिए लगाई जाने वाली जालियां भी हर साल 50 फ़ीसदी से ज्यादा गायब हो रही है। ऐसे में जब पेड़ों की सुरक्षा ही नहीं हो पाएगी तो वह पनप कैसे पाएंगे।
मॉनिटरिंग दल केवल कागजों तक ही सीमित, एक बार भी नहीं किया निरीक्षण
वृक्षारोपण अभियान के तहत 38 प्रमुख स्थानों पर आरोपित किए गए पौधों के हालातो की मॉनिटरिंग करने के लिए दाल बनाया गया था। कलेक्टर श्रीमती प्रतिभा पाल ने अधिकारियों की तैनाती की थी। जिसमे अपर कलेक्टर श्रीमती सपना त्रिपाठी को टीआरएस महाविद्यालय, कन्या महाविद्यालय, न्यू साइंस कालेज, मॉडल साइंस कालेज, विधि महाविद्यालय तथा संस्कृत महाविद्यालय में पौधारोपण की निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है। संयुक्त कलेक्टर पीके पाण्डेय को पशु चिकित्सा महाविद्यालय, कृषि महाविद्यालय, इंजीनियरिंग कालेज, शिक्षा महाविद्यालय तथा पॉलिटेक्निक कालेज में तैनात किया गया है। संयुक्त कलेक्टर डॉ अनुराग तिवारी को अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय आयुर्वेद महाविद्यालय, जेएनसीटी कालेज, शासकीय मार्तण्ड उमावि क्रमांक दो एवं डिप्टी कलेक्टर श्रेयश गोखले को उमावि गोड़हर, हाईस्कूल समान, उमावि करहिया तथा शासकीय मार्तण्ड उमावि क्रमांक तीन में तैनात किया गया है। सच्चाई यह है कि जिन प्रमुख अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी उनके पास यह समय ही नहीं निकल पाया कि वह एक भी पेड़ का निरीक्षण कर पाते और यह देखते कि वह पेड़ बचे भी हैं कि नहीं।
फॉरेस्ट विभाग में होने वाला भ्रष्टाचार रहता है चर्चाओं में
वृक्षारोपण के नाम पर हर साल वन विभाग की कार्यशैली और यहां होने वाले कागजी भ्रष्टाचार हमेशा चर्चाओं में रहते हैं। अधिकारी से लेकर निचले स्तर तक जिस तरह की गतिविधियां संचालित होती है वह अपने आप में कई बार संदेह के दायरे में आ जाती है। वर्तमान में हालात यह है कि पेड़ लगाए जाने के नाम पर बीट प्रभारी मनमानी कर रहे हैं जहां पर जितने पेड़ लगाए जाने थे उतने गड्ढे तक नहीं खोदे गए हैं जबकि गड्ढे खोदने के नाम पर खर्च दिखा दिया गया है। यहां पदस्थ आईएफएस डीएफओ के पास यह कुछ देखने को फुर्सत ही नहीं है। अब ऐसे में मां के नाम एक पेड़ लगाओ अभियान कैसे सफल हो पाएगा इसमें प्रश्न चिन्ह लगता जा रहा है। वहीं सामान्य चर्चा में लोग यह कहते हैं कि वृक्षारोपण अभियान का फायदा आम जनता को मिले या न मिले, कुछ अधिकारियों को अवश्य ही मिल जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *