नगर निगम के कर्मचारियों द्वारा प्रताडि़त किए जाने के बाद कोई ठेका लेने को तैयार नहीं
ठेका आवंटित होने के बाद ऐसी करते हैं प्रताडऩा, साल काटना हो जाता है मुश्किल
विशेष संवाददाता, रीवा
नगर पालिक निगम रीवा के अधिकारियों और कर्मचारियों पर ऐसे आरोप लगे हैं कि किसी से कोई जवाब देते नहीं बन रहा है। मामला शहर की पार्किंग के ठेके से जुड़ा हुआ है। इन ठेकों को लेने के लिए कोई ठेकेदार सामने ही नहीं आ रहा। नगर निगम के अधिकारी ठेकेदारों से व्यक्तिगत तौर पर भी ठेका लेने की बात कहते हैं लेकिन कोई भी ठेकेदार इसलिए तैयार नहीं हो रहा कि ठेके का एग्रीमेंट होने के एक हफ्ते के बाद ही अंतिम दिवस तक ऐसी प्रताडऩा नगर निगम के कर्मचारी और अधिकारी ठेकेदार की करते हैं कि दोबारा वह ठेका लेना मतलब अपने पांव में कुल्हाड़ी मार लेना समझ लेता है।
शहर की पार्किंग के ठेकों के लिए इस समय नगर निगम परेशान है। तीन बार निविदा आमंत्रण के बाद नगर निगम को एक ऐसा ठेकेदार नहीं मिला जो कोई भी एक पार्किंग ले ले। इसके बाद 10 फ़ीसदी ठेका प्रीमियम राशि में कटौती भी कर दी गई है इसके बाद भी कोई लेने को तैयार नहीं है। कहां जाता है कि ठेकेदार से जहां पहले ही 35 फ़ीसदी राशि जमा कर ली जाती है वहीं हर महीने 6 महीने तक अलग से किश्त ली जाती है। यहां तक तो ठीक है। लेकिन जैसे ही ठेकेदार द्वारा पार्किंग का ठेका शुरू किया जाता है उसके एक हफ्ते बाद ही नगर निगम के कर्मचारी अपने हित साधन के लिए वहां पहुंचने लगते हैं। फिर शुरू होती है नियम कायदों की बात। ठेकेदार पर दबाव बनाकर मंथली वसूली के लिए कर्मचारी परेशान करते हैं। इतना ही नहीं अपने ही लोगों से झूठी शिकायतें करवा कर जांच के नाम पर और ठेका निरस्त करने के साथ पूरे पैसे राजसात करने की धमकी दी जाती है। इस मामले में नगर निगम के राजस्व शाखा से जुड़े एक अधिकारी के निचले स्तर पर सीधी भर्ती वाले पुराने दबंग शहरी ऐसा दबाव बनाते हैं कि ठेकेदार कई बार आत्महत्या तक करने की सोच लेता है। पिछले दो सालों में ऐसी स्थिति बनी कि लगातार नौटंकी का दौर चला और ठेकेदारों ने अपनी इज्जत बचाते हुए किसी प्रकार अपना समय पूरा किया। अब जब पूरी स्थितियां ठेकेदारों को मालूम हो गई तो कोई सामने आने को तैयार नहीं है। नगर निगम रीवा 10 फ़ीसदी कटौती करके भी ठेका देने को तैयार है उसके बाद भी कोई ठेके लेने को तैयार नहीं है। इसके पीछे सबसे बड़ा मूल कारण यह है कि नगर निगम के अधिकारी ठेकेदारों की समस्याएं सुनने को तैयार ही नहीं होते। जो समस्या पैदा करता है उसी को जांच करने के लिए लिख देते हैं। फिर यहीं से शुरू होता है मनमानी का खेल, इसका परिणाम यह हुआ कि अकेले पार्किंग से नगर निगम रीवा को लगभग जो 70 लख रुपए आने वाले थे वह अब केवल 5 से 6 लाख में निपट रहा है। इस व्यवस्था से राजस्व शाखा का एक अधिकारी, उडऩ दस्ता से जुड़े दो कर्मचारी और 6 मोहरिर काफी खुश है, क्योंकि जब तक ठेका नहीं चलेगा तब तक उनके ही पौ बारह रहेंगे। जनप्रतिनिधियों के यहां नियमित हाजिरी देने वाले और पार्किंग क्षेत्र में मोहारिर की ड्यूटी लगवाने वाले दबंगई के साथ अपना काम कर रहे हैं और मूंछों में ताव देते हुए सीधे कमाई में जुटे हुए हैं।
पार्किंगो का है यह हाल
हमारे सूत्रों ने जानकारी देते हुए बताया कि सिरमौर चौराहा ओवर ब्रिज से जहां रोजाना ?5000 के हिसाब पर ठेका चलता था वहां से अब 700 से 800 की वसूली का जमा हो रहें है। शिल्पी प्लाजा पार्किंग क्षेत्र से जहां ठेकेदार द्वारा?3500 जमा होते थे वहां से अब केवल 600 या 700 ही जमा होते हैं। गांधी कंपलेक्स पार्किंग से जहां ठेकेदार रोजाना?4000 नगर निगम को देता था वहां से मात्र 300 से ?400 जमा हो रहे हैं। अशोक मिष्ठान भंडार के बगल वाली पार्किंग जहां से नगर निगम को ?3600 से ज्यादा जमा होते थे वहां से नगर निगम को केवल 600 से 700 रोजाना जाम हो रहा है।
न कोई सर्वे, न कोई रणनीति
पार्किंग क्षेत्र से कितनी राशि रोजाना की आ सकती है इसके लिए नगर निगम के पास फिलहाल कोई रणनीति नहीं है। एक अधिकारी दूसरे अधिकारी पर दोष मढ़ते हैं जबकि यह मामला राजस्व विभाग का है। नगर निगम आयुक्त और महापौर को भी इस मामले में ध्यान देना चाहिए लेकिन शायद किसी के पास वक्त ही नहीं है । एक और जहां नगर निगम को 50 लाख सालाना का नुकसान हो रहा है उसे दिशा में किसी का ध्यान न देना अपने आप में महत्वपूर्ण बात है। दूसरी बात सबसे बड़ी यह है कि नगर निगम में समस्या का निराकरण ना हो पाना इस बात को इंगित करता है कि नगर निगम के अधिकारी खुद नहीं चाहते कि यहां का राजस्व बढ़े। अलबत्ता पार्किंग क्षेत्र की वसूली के लिए अब ठेकेदार मिल नहीं रहे हैं वहीं ठेकेदार अब यह रहे हैं कि नगर निगम का काम करने की वजह वह कहीं और हाथ पांव मार लेंगे लेकिन यहां के अधिकारियों कर्मचारियों से भगवान बचाए। इस हालत में नगर निगम का राजस्व कैसे बढ़ेगा, अपने आप में सोचनीय है।