पुराने सरपंचों के खिलाफ कार्यवाही का जारी हुआ है आदेश, 73 सरपंचों से वसूली जाएगी राशि
जब चलता है निर्माण कार्यों का दौर, तब नहीं देखे जनपद वाले, अब करेंगे कार्यवाही
अधिकांश पैसा डूबंत खाते में जाना संभावित, पूरे जिले में है यही हालत
अनिल त्रिपाठी, रीवा
त्रिस्तरीय पंचायत राज में राज करने के लिए हर 5 साल में अट्टा चढ़ी का खेल चलता है। यानी कि सरपंच बनने के लिए ग्रामीण स्तर पर हर तरीके के तिकड़म अपनाए जाते है। सरपंची जीतने के लिए काफी पैसा भी खर्च किया जाता है, जबकि सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि सरपंच को सरकार की ओर से कुछ खास मिलता नहीं है केवल जन सेवा के लिए गांव के विकास के लिए राशि मिलती है। इसके उलट सच्चाई यह है कि अब यह माना जाने लगा है कि सरकारी तौर पर गांव की विकास के लिए जो पैसा आने वाला है उसमें से 30 से 40 परसेंट तक की राशि सरपंच की व्यक्तिगत है। इसलिए लूटो खाओ और अपना विकास करो। उधर त्यौंथर जनपद क्षेत्र अंतर्गत पिछले कार्यकाल के 73 सरपंचों पर जिला पंचायत रीवा से वसूली के आदेश जारी किए गए हैं जिसकी रकम डेढ़ करोड़ के आसपास की बनती है।
इस संबंध में बताया गया है कि यह सभी राशि गांव के विकास के दौरान निर्माण कार्यों के लिए जारी की गई थी लेकिन निर्माण कार्य ही नहीं हुए और पैसा सरपंच द्वारा निकालकर स्व उपयोग में ले लिया गया। इस मामले में सबसे बड़ी बात यह है आती है कि सरपंच के पास न तो आहरण का अधिकार रहता है और न ही वितरण का अधिकार रहता है, यह सारी जिम्मेदारी गांव के सचिव और उसके बाद जनपद पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पास रहती है। इतना ही नहीं निर्माण कार्यों का अवलोकन करने के लिए हर जनपद में उप यंत्रियो की नियुक्ति क्षेत्रवार की गई है। लेकिन जब निर्माण कार्य का दौर चलता है तो उप यंत्री भी अपना हिस्सा कमीशन लेकर आगे चले जाते हैं। अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि प्रशासन को जिन 73 लोगों से वसूली कराई जानी है उनमें से 99 फीसदी तो इस बार सरपंच भी नहीं है। इसके अलावा उनकी अचल संपत्ति से वसूली कराया जाना संभव नहीं दिखाई देता। इससे यह स्पष्ट होता है कि प्रशासन ने केवल अपनी खाना पूर्ति की है।
इस मामले में कलेक्टर पंचायत जिला रीवा द्वारा 10 जुलाई 2024 को जारी आदेश में एक सूची जारी कर कहा गया है कि 73 पूर्व सरपंचों से राशि वसूला जाना है। कलेक्टर रीवा ने इस पत्र में मुख्य कार्य पर अधिकारी जिला पंचायत रीवा को कहा है कि मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 40 / 92 के प्रकरणों में धारा 89 के तहत युक्त युक्त सुनवाई का अवसर प्रदान करते हुए भू राजस्व के बकाए की राशि वसूली किए जाने हेतु आदेश पारित किया गया है। इस संदर्भ में मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा से कहा गया कि पूर्व में भी जानकारी दी गई थी और कार्यवाही का प्रतिवेदन चाहा गया था लेकिन दोषियों के खिलाफ कार्यवाही का प्रतिवेदन अभी तक प्रस्तुत नहीं किया गया है। इस संबंध में यह भी उल्लेखित किया गया है कि 1 फरवरी 2022 एवं 10 अगस्त 2022 को भी इस संबंध में कार्रवाई के लिए कहा गया था लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई यानी कि 2 साल के दौरान जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी के मामले में कार्रवाई करने में पूरी तरह से असफल रहे हैं।
अब सवाल उठता है यह…
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह है कि वर्ष 2022 में जुलाई माह में पंचायत राज के चुनाव हुए थे यानी नए सिरे से सरपंचों के चुनाव की कार्यवाही हुई थी। उसके पहले धारा 40 के मामलों का निराकरण भी हो गया था। इस 2 साल में पत्राचार ही केवल चल रहा है। सूत्रों ने बताया है कि एक दो बार कार्यवाही के प्रयास भी हुए लेकिन राजनेताओं के फोन ने उसमें अड़ंगा डाल दिए और मामला यथावत टंगा रह गया। अब एक बार कलेक्टर ने फिर से जिला पंचायत के सीईओ को कार्रवाई के लिए लिखा है।
बड़े वसूली कर्ताओं के नाम है यह..
जिला पंचायत द्वारा जारी सूची में जिन 73 लोगों के नाम वसूली कराए जाने के लिए शामिल किया गया है उसमें त्यौंथर जनपद क्षेत्र अंतर्गत कोरांव की सरपंच श्रीमती सियावती साकेत से 15,32,790 रुपए, ग्राम टंगहा की श्रीमती बिठोल से 4, 40, 650 रूपए, टंगहा की ही रेखा देवी से 3,93,493 रूपए, चौखड़ा के पन्नालाल से 6,40,469 रूपए, मझिगवा की श्रीमती कोईली देवी से 5,00,841 रूपए, अमाव के श्रीमती रतन देवी से 2,24,000 रूपए, कुठिला के गंगाधर से 6, 86, 022 रुपए, गोंदकला की श्रीमती निर्मला देवी से 5, 28, 642 रुपए, झोंटिया की श्रीमती शिवराज काली साहू से 3,65, 917 रुपए समेत अन्य से वसूली किया जाना है।
सरपंचिन तो खूब कहलवाया, लेकिन अब वह पड़ रहा मंहगा
जिन 73 लोगों से जिला पंचायत द्वारा वसूली किए जाने के लिए सूची जारी की गई है उसमें 39 महिलाओं का नाम है। उसमें भी 80 फ़ीसदी आदिवासी या अनुसूचित जाति की महिला शामिल है। खास बात यह है कि उन्हें खुद ही नहीं मालूम की है यह वसूली किस बात के लिए हो रही है। सच्चाई यह है कि उन्होंने तो कोई काम किया ही नहीं, काम उनके पति और गांव का सचिन या जी आर एस ही करता रहा। वह तो केवल अपने हस्ताक्षर या अंगूठा लगाकर कोरम पूर्ति ही करती रही। 5 साल तो उन्हें सरपंचिन की उपाधि तो मिली लेकिन अब यह उपाधि उनके लिए गले की फांस बन गई है। यह नोटिस साल भर पहले ही उनके पास पहुंच गई थी जिसके बाद हडक़ंप तो मच गया था लेकिन बीच में दो चुनाव के चक्कर में मामला दब गया था। नेताओं ने अधिकारियों पर दबाव डालकर मामला दबबा दिया था। अब एक बार फिर मामला उठा है लेकिन देखना यह है कि क्या इस बार प्रशासन 25 फ़ीसदी भी अपने अभियान में सफल हो पाएगा।