शासन और प्रशासन की कड़ाई के बाद भी अभिभावकों को नहीं मिल रही राहत
शासन की कड़ाई से अभिभावकों को राहत के बदले मिली आफत
नगर प्रतिनिधि, रीवा
निजी स्कूलों के संचालक अपने ऊपर शासन व प्रशासन का शिंकजा कस्ते देख बड़े होशियारी से काम लेते हुए जो काम पहले प्रत्यक्ष रूप से करते थे उसे अब अप्रत्यक्ष रूप से अंजाम देने लगे हैं। जिले के अगर कुछ निजी स्कूलों को छोड़ दिया जाय तो ८० फीसदी से ज्यादा स्कूल संस्थान व्यवसायिक अड्डा बनकर रह गये हैं। स्कूल संचालकों का मकशद छात्रों को उच्च शिक्षा देना नहीं बल्कि उनके अभिभावकों को लूटना मकशद रह गया है। शासन के लाख कोशिश के बाद भी निजी स्कूल संचालकों के लूट-खसोट रवैये पर अंकुश नहीं लग पाया है और छात्रों के परिजन पूर्व की ही तरह इस वर्ष भी लूटे जा रहे हैं। इतना ही नहीं स्कूलों में प्रवेश के दौरान इंग्लिश मीडियम के नाम पर ज्यादा प्रवेश शुल्क वसूले जा रहे हैं। जबकि वस्तु स्थित यह है कि जिले में सीबीएससी से संबंद्ध कुछ ही स्कूले हैं। जबकि इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई का झांसा देने वाले स्कूलों की संख्या एक सैकड़ा से ऊपर है। उनके द्वारा बाहरी ताम-झाम बनाकर अभिभावकों को लूटा जाता है।
स्कूल के बदले दुकान में रखते हैं किताब कॉपी और ड्रेस
स्कूल संचालकों द्वारा जो दुकानदारी अपने स्कूल में चलाई जाती थी उसमें अंकुश लगने के बाद अब स्कूल संचालक स्कूल ड्रेस और किताब और कॉपियों में स्कूलों में न बेंचकर एक निश्चिित दुकान में रखकर बेंच रहे हैं। बताया गया है कि इसके बदले दुकानदारों को स्कूल संचालक की तरफ से कमीशन दिया जाता है। सूत्रों ने बताया कि स्कूल संचालक इंदौर सहित अन्य बड़े शहरों के कपड़ा व्यवसायी तथा पुस्तक विक्रेताओं से संपर्क कर ४० से ५० फीसदी कमीशन में किताब कांपी और ड्रेस खरीदते हैं और उस माल को एक निश्चिित दुकानदार द्वारा संबंधित शहर से उठाया जाता है और इसके बाद स्कूल संचालक तथा दुकानदार आपसी सांठ-गांठ कर दुगने-तिगुने दाम में किताब, कॉपी और ड्रेस बेंचते हैं। छात्रों के परिजनों द्वारा बताया गया है कि स्कूल प्रबंधन द्वारा ही यह बताया जाता है कि मेरे स्कूल की किताबें और ड्रेस फला दुकान में मिल रहीं हैं वहां जाकर किताब और ड्रेस की खरीददारी करें।
गत वर्ष की अपेक्षा मंहगी हुई कॉपी-किताब
गत वर्ष तक किताबों के प्रकाशक और ड्रेस के डीलरों से कमीशन के खेल में सिर्फ स्कूल संचालक जुड़े होते थे जिसके चलते पुस्तक और ड्रेस की कीमत में कमी देखने को मिलती थी लेकिन चालू वर्ष इस कमीशनखोरी में दुकानदारों का भी हिस्सा हो गया है जिसके चलते गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष किताब-कॉपी और ड्रेस काफी मंहगे मिल रहे हैं।
दुकानदार पहले करते हैं फोन
स्कूल संचालकों के बताये अनुसार जब अभिभावक दुकानों में स्कूल ड्रेस और किताब-कॉपी खरीदने पहुंचते हैं तो पहले दुकानदार उनका परिचय लेकर स्कूल संचालक को फोन के जरिये अवगत कराते हैं और फिर आंगे की बाते होती हैं। ऐसा लगता है कि स्कूल प्रबंधन ऐसे अभिभावकों की सूची बनाकर बैठे हैं कि जिन्हे समझते हैं कि ज्यादा कीमत लेने पर ये विरोध कर सकते हैं और उनकी कलई खुल सकती है ऐसे अभिभावकों को उचित दाम में समान उपलब्ध कराने के लिए दुकानदारों को कहा जाता है और जो बेचारे सीधे-साधे गरीब और जिनके आंगे-पीछे कोई नहीं होता उनसे मनमानी तरीके से वसूली की जाती है।
जिला शिक्षा विभाग भी पूरी तरह लापरवाह
इस मामले में जिला शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी पूरी तरह से सुस्त हैं। उनके द्वारा स्कूलों का निरीक्षण करने के दौरान इस बात के लिए कार्यवाही नहीं की जाती कि यदि संबंधित स्कूल इंग्लिश मीडियम नहीं है तो प्रचार-प्रसार में धोखेबाजी क्यों की जा रही है। जिला शिक्षा विभाग की उदासीनता के चलते ही जिले में इंग्लिश मीडियम स्कूल कस्बों से लेकर गांवों तक खुल चुके हैं। ऐसे स्कूलों में न तो प्रशिक्षित शिक्षक हैं और न ही गुणवत्ता युक्त पढ़ाई की व्यवस्था है। ये अवश्य है कि शहर में कुछ ऐसी भी स्कूलें है जिनमें पठन-पाठन को लेकर पूरा ध्यान दिया जाता है। स्कूल संचालक स्वयं विद्यालय में होने वाली गतिविधियों पर नजर रखते हैं। साथ ही पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों पर उनका पूरा ध्यान केंद्रित रहता है। इसी वजह से इन स्कूलों का आज भी नाम है और अभिभावक भी यहां अपने बच्चों को प्रवेश दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाते हैं। शहर में कई ऐसी स्कूलें भी हैं जहां बच्चों के नवीन प्रवेश के दौरान दक्षता परीक्षा का आयोजन भी होता है। यदि छात्र पढ़ाई में कमजोर है तो उसको इन स्कूलों में दाखिला नहीं मिलता। कुछ विद्यालयों में पठन-पाठन में कमजोर बच्चों को जिन कक्षाओं में प्रवेश चाहिए उसकी बजाय एक कक्षा नीचे प्रवेश दिया जाता है।
ड्रेस एवं किताब के नाम पर भी लूट नए शैक्षणिक सत्र में अभिभावकों पर बच्चों का प्रवेश स्कूलों में कराने के साथ ही ड्रेस एवं किताबों की खरीदी के नाम पर भी लुट रहे हैं। कुछ अभिभावकों ने चर्चा के दौरान बताया कि अधिकांश प्रायवेट स्कूलों में सप्ताह के दिनों में कई तरह के ड्रेस निर्धारित किए गए हैं वहीं इंग्लिश मीडियम पढ़ाई के नाम पर निजी प्रकाशकों की कई तरह की किताबें खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है। कुछ स्कूलों में तो निजी प्रकाशकों की काफी महंगी किताबें सीधे दी जाती हैं जो अधिकांश स्कूलों के संचालकों द्वारा निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदी के लिए बुक स्टाल भी निर्धारित किए गए हैं। वहां जाने पर 20 पेज की किताब करीब 100 रूपए में दी जाती है। स्कूलों में निजी प्रकाशकों की निर्धारित पूरी पुस्तकों का सेट लेने पर नर्सरी एवं तीसरी तक के छात्रों के लिए 5-6 हजार रूपए लिए जाते हैं। वहीं स्कूलों में निर्धारित सभी ड्रेस लेने पर उसकी कीमत भी 5-6 हजार रूपए आती हैं। स्कूलों के प्रवेश के दौरान ही कई तरह के शुल्क मिलाकर प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों से 10-15 हजार रूपए लिए जा रहे हैं। एक शैक्षणिक सत्र में प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों से 25-30 हजार रूपए लिए जाते हैं। माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों से 35-40 हजार रू एवं हाई स्कूल व हायर सेकण्ड्री के विद्यार्थियों से 50-55 ह रूपए का शुल्क वसूला जाता है।