शिवेंद्र तिवारी

रीवा। जिला आबकारी अधिकारी ने सिंडिकेट सहित निज लाभ के लिए नित नए शगुफा छोड़ते हैं। जो व्यक्ति घर का झाड़ू, पोछा, और बर्तन तक धुलवाने के लिए कंपनी के आश्रित रहता हो वह व्यक्ति निजी स्वार्थ के लिए कहां तक जा सकता है। इस बात का आकलन करना असंभव है। मजे की बात तो यह है कि जिला आबकारी अधिकारी इन दिनों दोनों हाथों से मलाई खाने में व्यस्त है। इसके लिए सिंडिकेट का ढाल बना रहे हैं और सिंडिकेट भी जिला आबकारी अधिकारी की उंगलियों पर नाच रहा है। सिंडिकेट बनाने के दौरान जिला आबकारी अधिकारी के इशारे पर शराब ठेकेदारों ने समस्त ब्रांड की शराब एमआरपी से महंगे दामों पर बेच रहे थे। जिसका जमकर विरोध भी हुआ आए दिन मीडिया की सुर्खियों पर जिला आबकारी अधिकारी और शहर के ठेकेदार बने रहे। विरोध करने वाले कोई और नहीं मध्यमवर्गी के सुरा प्रेमी थे जो शाम ढलते ही रॉयल स्टेज, ब्लेंडर, रॉयल चैलेंज से अपना गला तर करते थे।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि उक्त ब्रांड की शराब 1200 से 1400 प्रति बोतल बेचते रहे। जो एमआरपी से ऊपर बताई जाती है। वहीं दूसरी ओर सर्वाधिक बिकने वाली मदिरा प्लेन 65 के स्थान पर 80 रूपए प्रति सीसी शराब ठेकेदारों को बेचने का फरमान जिला आबकारी अधिकारी ने दे रखा था। गरीबों की आवाज तो जिला आबकारी अधिकारी के कानों को नहीं भेद पाई लेकिन मध्यमवर्गी सर प्रेमियों की गुहार से जिला आबकारी अधिकारी की कुर्सी हिलने लगी थी जिसे बचाने के लिए जिला आबकारी अधिकारी ने एक नया शगुफा छोड़ दिया। सूत्र बताते हैं कि सिंडिकेट में शामिल ठेकेदारों की बैठक कर यह जिला आबकारी अधिकारी ने यह फरमान जारी किया की सर्वाधिक बिकने वाली सी कंपनी के शराब रॉयल स्टेज, रॉयल चैलेंज एवं ब्लेंडर की कीमत एमएसपी से भी काम किया जाए साथ ही कहा कि गरीबों का पसीना चूसने में कोई नरमी न बढ़ती जाए। क्योंकि गरीब अपनी गुहार कहां जाकर लगाएंगे, सूत्र की माने तो सिंडिकेट में शामिल शहर के शराब ठेकेदारों ने जिला आबकारी अधिकारी के फरमान को सर आंखों में रख सी कंपनी की शराब एमएसपी से कम करते हुए सीधे 1 हजार रूपए बोतल कर दी गई है।
चाहे वह ब्लेंडर हो या फिर रायल स्टेज और रॉयल चैलेंज जबकि एमएसपी से कम और एमएसपी से ज्यादा कीमत पर शराब बेचने का अधिकार न तो ठेकेदार का हैं और बिकवाने का अधिकार जिला आबकारी अधिकारी को है। उसके बावजूद भी एक और एमएसपी से कम दामों पर सी कंपनी की शराब बेची जा रही है। और दूसरी और देसी मदिरा प्लेन की सीसी और बियर एमआरपी से ज्यादा की कीमत पर बेची जा रही है। आश्चर्य तो यह लगता है कि जिला प्रशासन की कुर्सी पर बैठे कलेक्टर के कानों तक सिंडिकेट और जिला आबकारी अधिकारी के कारनामों की खबर क्यों नहीं पहुंच रही है।