रमेश मिश्रा
लेखक- सेवानिवृत्त संयुक्त कलेक्टर

इससे बड़ी टिप्पणी, इससे बड़ी गाली, इससे बड़ी जलालत,इससे ज्यादा नँगा किसी को नहीं किया जा सकता।यह डूब मरने के लिये काफी है वैसे मरेगा कोई नहीं क्योंकि सब चिकने घड़े हैं। नैतिकता, शर्म,हया,कर्तव्य बोध,चरित्र, रास्ट्र प्रेम जैसी चीजें बचीं कहाँ हैं।
किसी के व्यक्तित्व को गिराना हो,किसी को निकम्मा बनाना हो,अत्याचारी बनाना हो तो उसे सरकार में नौकरी लगा दो,यह भीषण टिप्पणी है आज की पत्रिका की।इसमें भृत्य से कैबिनेट सचिव तक सब शामिल हैं।
जब मैं विद्यार्थी था तब इतनी भीषण स्थिति नहीं थी।मुझे स्मरण है कि जब स्नातक प्रथम वर्ष में निर्धनता योग्यता छात्रवृत्ति के लिए आय प्रमाण पत्र बनबाने तहसील दार के कार्यालय में 11 बजे आवेदन प्रतिवेदनों के साथ दिया और बाहर प्रतीक्षा करते 4 बज गए तो तहसील दार से मिलने का प्रयास करने लगा,भृत्य ने पहले रोंका फिर कुछ अपेक्षा की तो मैं उलझ गया आवाज तहसील दार तक पहुंच गई और उन्होंने मुझे बुला कर काम पूंछा तब तक बाबू ने नहीं बनाया था, तुरंत बनबा कर मुझे दिया।क्या आज कोई छात्र ऐसी अपेक्षा कर सकता है?
मैंने 36 वर्ष विभाग में सेवा की और नाना रूपों में भारतीय प्रशासनिक सेवा के सैकड़ों अधिकारियों से साक्षात्कार हुआ केवल एक अधिकारी ने कहा नाक कट जायेगी।बेहद कर्तव्य निष्ठ, ईमानदार अधिकारी थे।दूसरा कोई ईमानदार नहीं मिला बस मात्रा और तौर तरीके का अंतर रहा।किसी ने नाक कटने की कभी बात नहीं की क्योंकि वह सेवा में आते ही कटा चुके होते हैं।कुछ भ्रस्टाचार में साथ न देने वाले के साथ भी अच्छे से चला लेते हैं तो कुछ ऐसे लोगों को प्रताड़ित भी करते हैं तो कुछ बाध्य भी करते हैं।
सामान्य तौर पर नेताओं को भ्रस्ट माना जाता है पर मैं इससे सहमत नहीं हूँ,मेरा अनुभव यह है कि नेताओं को भ्रष्टाचार की अफीम अधिकारी चटाते हैं और एक बार स्वाद लगने के बाद नेता ऊपर हो जाते हैं और अधिकारी भीतर ही भीतर दीमक की भाँति खाते रहते हैं।आज तक कोई भी भ्रष्टाचार ऐसा नहीं हुआ जिसे नेता ने अकेले किया हो उसमें अधिकारी शामिल न हो।
बाबू, पटवारी, सिपाही, भृत्य,वन रक्षक, समयपाल से भले गलत करने की शुरुआत होती है पर इनका भ्रस्टाचार कोई मायने नहीं रखता क्योंकि इन्हें स्वयं कुछ करने का अधिकार नहीं होता।इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी ही होते हैं।
इस नैतिक पतन का कारण व्यक्ति का पालन पोषण है।बचपन से ही बच्चे को भौतिक सुखों की ओर मोड़ दिया जाता है और उसे पैसे कमाने की मशीन बनाया जाता है।जीवन में व्यक्तित्व भी कोई चीज है, नैतिकता का भी कोई मूल्य है और चरित्र वह चीज है जो समाज में जीने के लिए आवश्यक है यह सिखाया ही नहीं जाता।बिना बीजारोपण कोई पौध तैयार नहीं हो सकती।
मुझे पिता जी जो एक छोटे किसान थे, के वे शब्द आज भी याद है जो उन्होंने नौकरी के लिए चलते समय कहा था।विभाग की निन्दा करते हुए उन्होंने सीख दी थी कि अपनी कलम से कभी कोई गलत काम नहीं करना।जब भी मेरे सामने बड़ा दबाव/प्रलोभन आया इन शब्दों ने मेरी रक्षा की।सैकड़ों घटनायें हैं जिनमें से दो का उल्लेख कर रहा हूँ।
हजारों करोड़ की सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा चल रहा था और उसकी 28 वर्ष से लंबित फाइल जब मेरे सामने आई और मैं निपटाने पर हुआ तो मेरे सामने पांच करोड़ का प्रस्ताव आया जो जीवन भर की नौकरी से नहीं मिलना था।पिता जी के शब्द याद आये और मैंने मेहनत की 1860 तक के अभिलेख खंगाले और ऐसा आदेश बनाया की सर्वोच्च न्यायालय तक से वह बदल नहीं सका और शासकीय सम्पत्ति की रक्षा हुई।
दूसरा स्व.श्री निवास तिवारी जी ने 6वी बार फोन किया कि कर दो डरो नहीं मैं यहां हूँ कुछ नहीं होगा तो मैंने कहा कि यहां तो आप देख लेंगे पर मैं अपनी आत्मा को क्या जबाब दूंगा कि इतना गलत क्यों किया।वे झुंझला कर बोले जब इतनी कमजोर आत्मा है तो इस विभाग की नौकरी क्यों की।
पत्रिका ने सोचा समझा देश द्रोह कहा है यह बिल्कुल सटीक है।घोड़े की जगह गधे को भर दो देश का क्या होगा।एक तहसील में नकल का गढ़ था, हरियाणा तक के लड़के नकल करने आते थे,45 केंद्र हुआ करते थे मैंने 35 बन्द करवा दिये।नकल करवाना यह देश के साथ सबसे बड़ा अन्याय है।
यह सब मैं इस लिये लिख रहा हूँ कि सरकारी नौकरी करने वाले यह महसूस करें कि व्यक्तित्व, नैतिकता, चरित्र भी कोई चीज होती है जिसकी रक्षा की जानी चाहिये और पत्रिका की यह टिप्पणी सीधे गाल पर मारा गया जूता है जिसे प्रत्येक सरकारी नौकर को महसूस करना चाहिए और शर्मिंदा होना चाहिये।आज जो पूरे देश में चारों ओर भ्रस्टाचार का कीचड़ फैला हुआ है उसके लिए 70%अधिकारी कर्मचारी और 30% नेता जिम्मेदार हैं।
Shivendra Tiwari 9179259806